साक्ष्य के लिए 'ई-साक्ष्य' का इस्तेमाल करें, पुलिस BNSS के डिजिटल नियम अपनाए: केरल हाईकोर्ट

Praveen Mishra

28 July 2025 11:10 AM IST

  • साक्ष्य के लिए ई-साक्ष्य का इस्तेमाल करें, पुलिस BNSS के डिजिटल नियम अपनाए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने राज्य पुलिस को निर्देश दिया है कि वह 'भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023' के अनुरूप अपनी जांच प्रक्रियाओं में त्वरित और व्यापक सुधार करे। कोर्ट ने हत्या जैसे गंभीर अपराधों में फूलप्रूफ जांच की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि पुलिस को अपनी जांच क्षमताओं को आधुनिक प्रशिक्षण, अपडेटेड प्रोटोकॉल और फॉरेंसिक तकनीक में रणनीतिक निवेश के माध्यम से उन्नत करना चाहिए।

    जस्टिस राजा विजयराघवन वी और जस्टिस के वी जयकुमार की पीठ ने यह टिप्पणी एक हत्या के मामले में आरोपी को बरी करते हुए की, जहां जांच में गंभीर खामियां पाई गईं। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक जांच न्याय प्रणाली की रीढ़ है और इसमें वैज्ञानिक सटीकता और लगातार परिश्रम होना चाहिए।

    कोर्ट ने 'ई-साक्ष्य (e-Sakshya)' को BNSS ढांचे की प्रमुख तकनीकी कड़ी बताया। यह डिजिटल प्लेटफॉर्म इस सिद्धांत को अपनाता है कि एक बार जो भी साक्ष्य बनाया जाए, उसे तुरंत डिजिटल रूप में संरक्षित और साझा किया जाना चाहिए, ताकि न्याय प्रणाली उसका उपयोग कर सके।

    कोर्ट ने कहा कि राज्य पुलिस को BNSS के प्रावधानों का पालन सुनिश्चित करने के लिए e-Sakshya या अन्य सक्षम प्लेटफॉर्म को अपनाना होगा, खासकर निम्नलिखित के लिए:

    1. धारा 105 BNSS के तहत सभी तलाशी और जब्ती (Seizures),
    2. धारा 176(3) BNSS के तहत सात वर्ष या उससे अधिक दंडनीय अपराधों के क्राइम सीन,
    3. धारा 180 व 183 BNSS के अंतर्गत वीडियो पर दर्ज किए जाने योग्य इकबालिया बयान या गवाहों के बयान।

    कोर्ट ने कहा कि आज के प्रभावी जांचकर्ताओं को पारंपरिक जांच तकनीकों को वैज्ञानिक तरीकों के साथ मिलाकर काम करना चाहिए ताकि कोई भी साक्ष्य छूटने न पाए और सबूत अदालत में प्रस्तुत किए जा सकें।

    कोर्ट ने अपने फैसले में 'पूजा पाल बनाम भारत संघ [(2016) 3 SCC 135]', 'थोमासो ब्रूनो बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [(2015) 7 SCC 178]', और 'रॉलीमोल बनाम केरल राज्य [2024 KHC 7324]' मामलों का हवाला देते हुए कहा कि वैज्ञानिक और तकनीकी उन्नति से आपराधिक जांच की प्रक्रिया और अधिक प्रभावी हो सकती है।

    कोर्ट ने टिप्पणी की,“जांच के लिए आवश्यक उपकरण और ज्ञान उपलब्ध हैं – चाहे वह बेसिक क्राइम सीन मैनेजमेंट हो या एडवांस डीएनए सीक्वेंसिंग और साइबर फॉरेंसिक। आवश्यकता केवल इस बात की है कि इन तकनीकों को सही तरीके से और लगातार लागू किया जाए। हर मामले को इस सोच के साथ जांचना चाहिए कि त्रुटिपूर्ण जांच किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है।”

    कोर्ट ने कहा कि BNSS एक प्रमाण-केन्द्रित, तकनीक-सक्षम पुलिसिंग युग की शुरुआत करता है, जो औपनिवेशिक प्रक्रियाओं की जगह ऑडियो-विजुअल डॉक्यूमेंटेशन, वैज्ञानिक साक्ष्य संग्रह, और डिजिटल केस मैनेजमेंट को प्राथमिकता देता है।

    अंत में, कोर्ट ने राज्य पुलिस को यह सलाह दी कि वे इन सुधारों को लागू करने के लिए प्रशिक्षण, प्रोटोकॉल अपडेट और तकनीकी व फॉरेंसिक निवेश को प्राथमिकता दें ताकि जनता की अपेक्षाओं और BNSS की कानूनी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके, विशेषकर हत्या जैसे जघन्य अपराधों में।

    कोर्ट ने राज्य पुलिस प्रमुख और गृह विभाग को यह आदेश भेजने का निर्देश दिया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि BNSS के प्रावधानों के अनुसार त्वरित और प्रभावी जांच की जा सके।

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