हाईकोर्ट ने मंदिरों को RTI Act के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं घोषित करने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की
Shahadat
13 Jun 2024 5:58 AM GMT
कर्नाटक हाईकोर्ट ने बुधवार को जनहित याचिका खारिज की। उक्त याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई कि कर्नाटक राज्य में मंदिर सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) की धारा 2 (एच) के अर्थ में सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं हैं।
चीफ जस्टिस एन वी अंजारिया और जस्टिस के वी अरविंद की खंडपीठ ने मेसर्स अखिला कर्नाटक हिंदू मंदिर पुजारी आगमिका और अर्चक एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका खारिज की।
याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर 2 (हिंदू धार्मिक एवं बंदोबस्ती विभाग के आयुक्त) को 16-06-2007 की अपनी अधिसूचना, साथ ही 03/02/2017 की सहायक अधिसूचना और संबंधित संशोधनों को वापस लेने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।
उक्त अधिसूचना के अनुसार, अधिनियम के तहत सार्वजनिक सूचना अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है। यह प्रस्तुत किया गया कि मंदिरों को अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण के रूप में माना जाता है। केवल वे मंदिर जो कर्नाटक हिंदू धार्मिक एवं बंदोबस्ती संस्थान अधिसूचना 1997 के दायरे में आते हैं, विवादित अधिसूचना के तहत शामिल हैं।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि कुछ लोग जो खुद को व्हिसल-ब्लोअर कहते हैं, मंदिरों के अर्चकों और कर्मचारियों को परेशान करते हैंष यह अधिसूचना जिसके तहत मंदिरों में पीआईओ की नियुक्ति की जाती है, उन्हें उन्हें और अधिक परेशान करने के लिए उपकरण और लाभ प्रदान करेगी। सुप्रीम कोर्ट और अन्य हाईकोर्ट के निर्णयों पर भरोसा किया गया।
खंडपीठ ने कहा,
"जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया, शिकायत प्राधिकरण द्वारा कर्नाटक में मंदिरों को RTI Act के दायरे में मानने के लिए जारी की गई अधिसूचना के लिए है, मंदिरों की श्रेणी जैसा कि पहले ही देखा और प्रतिबिंबित किया गया। विवादित अधिसूचना कर्नाटक हिंदू धार्मिक और बंदोबस्ती संस्थानों के अंतर्गत आती है।''
इसमें यह भी कहा गया,
''न केवल यह विषयवस्तु जनहित याचिका नहीं बन सकती, बल्कि यह आधार भी अस्पष्ट है कि तथाकथित शिकायतकर्ता पुजारियों को परेशान करते हैं। इसलिए अधिसूचनाओं के खिलाफ याचिकाकर्ता का मामला स्वीकार नहीं किया जा सकता।''
इसके अलावा, इसने कहा कि अर्चकों और पुजारियों की शिकायत गलत है, जब उन्हें आशंका है कि शिकायतकर्ता उन्हें परेशान करेंगे।
न्यायालय ने कहा कि सूचना केवल पीआईओ द्वारा प्रदान की जाती है और पुजारियों को इस पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती। इस प्रकार इसने याचिका खारिज कर दी।
हालांकि, इसने स्पष्ट किया कि याचिका खारिज होने से व्यक्तिगत निकायों के लिए उचित याचिका में अपने अधिकारों के लिए आंदोलन करने के दरवाजे बंद नहीं होंगे, जिससे यह तर्क दिया जा सके कि मंदिर RTI Act के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण के दायरे में नहीं आते।
केस टाइटल: मेसर्स अखिला कर्नाटक हिंदू मंदिर पुजारी आगमिक और अर्चक संघ और कर्नाटक राज्य और अन्य