स्वीकृत पदों पर 15 वर्ष से अधिक लगातार सेवा देने वाले अस्थायी कर्मचारी बिहार पेंशन नियमों के तहत पेंशन के हकदार: झारखंड हाईकोर्ट
Avanish Pathak
8 Aug 2025 2:47 PM IST

झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस दीपक रोशन की पीठ ने कहा कि नियमित वेतन वाले स्वीकृत पदों पर 15 वर्ष से अधिक की निरंतर सेवा देने वाले अस्थायी कर्मचारी बिहार पेंशन नियम, 1950 (झारखंड राज्य द्वारा अपनाए गए) के नियम 59 के अंतर्गत पेंशन के हकदार हैं।
पृष्ठभूमि तथ्य
याचिकाकर्ताओं को राजस्व प्रभाग, रांची के अंतर्गत विभिन्न स्वीकृत पदों पर नियुक्त किया गया था, जैसे कि आवधिक किराया संग्राहक, लिपिक और अमीन। उनकी नियुक्तियां कार्यालय आदेशों के माध्यम से की गई थीं। उन्हें विशिष्ट वेतनमान और महंगाई भत्ता प्रदान किया गया था। उन्हें नियमित स्थापना मद से भुगतान किया जाता था। वे अपनी सेवानिवृत्ति तक बिना किसी अवकाश के सेवा करते रहे, हालांकि तकनीकी रूप से उनकी नियुक्ति अस्थायी आधार पर हुई थी।
सेवानिवृत्ति के बाद, याचिकाकर्ताओं ने पेंशन संबंधी लाभों की मांग करते हुए प्रतिवादी प्राधिकारियों के समक्ष बार-बार अभ्यावेदन दिया। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने 30 वर्षों से अधिक समय तक लगातार सेवा की है। हालांकि, उनकी सेवाओं को कभी नियमित नहीं किया गया। इसके अलावा, विभाग ने पेंशन के उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया।
पेंशन से इनकार किए जाने से व्यथित होकर, याचिकाकर्ताओं ने लागू पेंशन नियमों के तहत राहत की मांग करते हुए रिट याचिका दायर की।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि उनकी नियुक्ति अस्थायी आधार पर हुई थी, लेकिन उन्होंने नियमित वेतन और महंगाई भत्ते वाले स्वीकृत पदों पर 15 से 30 वर्षों तक लगातार सेवा की। इसके अलावा, उनके नाम कभी भी किसी आकस्मिक या मौसमी कर्मचारी सूची में नहीं दर्शाए गए। याचिकाकर्ताओं ने राजस्व प्रमंडल (नहर) के उप समाहर्ता द्वारा जारी दिनांक 16.07.2024 के प्रमाण पत्र का हवाला दिया, जिसमें प्रमाणित किया गया था कि उन्होंने 15 वर्षों से अधिक समय तक निर्बाध सेवा की है।
आगे दलील दी गई कि बिहार पेंशन नियमावली, 1950 (झारखंड द्वारा अंगीकृत) के नियम 59 के तहत, 15 वर्ष से अधिक की निरंतर सेवा देने वाले अस्थायी कर्मचारी पेंशन और ग्रेच्युटी लाभ के हकदार हैं। याचिकाकर्ताओं ने दिनांक 12.08.1969 और 13.01.1975 के सरकारी ज्ञापनों का भी हवाला दिया, जिनमें पेंशन लाभों के लिए ऐसे कर्मचारियों की पात्रता की पुष्टि की गई थी।
दूसरी ओर, प्रतिवादी राज्य की ओर से यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति कभी भी औपचारिक भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से नहीं की गई और उनकी नियुक्तियां पूर्णतः अस्थायी प्रकृति की थीं। यह तर्क दिया गया कि उन्हें आवश्यकता के आधार पर नियुक्त किया गया था और उनकी सेवाओं को कभी भी नियमित नहीं किया गया, जो पेंशन नियमों के तहत पेंशन लाभों का दावा करने के लिए एक आवश्यक शर्त है।
यह भी तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता मूलतः मौसमी कर्मचारी थे और उनका कार्य बिहार पेंशन नियमावली, 1950 के नियम 73 के तहत निरंतर पेंशन योग्य सेवा के रूप में योग्य नहीं था। प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि औपचारिक नियमितीकरण के बिना केवल लंबी अवधि तक सेवा में बने रहने से कोई व्यक्ति पेंशन का दावा करने का हकदार नहीं हो जाता। यह कहा गया कि याचिकाकर्ताओं के नाम विभाग की स्थायी सूची में कभी दर्ज नहीं किए गए। इसलिए, वे पेंशन के लिए किसी अधिकार का दावा नहीं कर सकते।
न्यायालय के निष्कर्ष
न्यायालय ने यह पाया कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति राजस्व विभाग के अंतर्गत स्वीकृत और रिक्त पदों पर की गई थी। इसके अलावा, उन्होंने सेवा में बिना किसी रुकावट के 15 से 30 वर्षों से अधिक समय तक काम किया था। न्यायालय ने यह पाया कि आधिकारिक आदेशों में उनकी नियुक्तियों को "अस्थायी" बताया गया था, लेकिन उनके रोजगार की प्रकृति, सेवा का नियमित विस्तार और नियमित स्थापना प्रमुख से प्राप्त भुगतान से संकेत मिलता है कि यह कार्य निरंतर और दीर्घकालिक प्रकृति का था।
न्यायालय ने यह माना कि याचिकाकर्ताओं द्वारा निरंतर सेवा का दावा करने और उसे डिप्टी कलेक्टर द्वारा जारी प्रमाण पत्र के साथ समर्थित करने के बाद, इसे गलत साबित करने का भार प्रतिवादियों पर आ गया। हालांकि, राज्य प्रमाण पत्र को चुनौती देने या याचिकाकर्ताओं के दावे को गलत साबित करने के लिए कोई रिकॉर्ड या प्रति-शपथपत्र प्रस्तुत करने में विफल रहा।
यह भी देखा गया कि याचिकाकर्ताओं का रोजगार "आकस्मिक" या "मौसमी" की श्रेणी में नहीं आता। यह निष्कर्ष निकाला गया कि नियमित वेतन वाले स्वीकृत पदों पर कई दशकों तक याचिकाकर्ताओं की निर्बाध सेवा ऐसे वर्गीकरणों के सार के विपरीत है। न्यायालय ने यह माना कि इस आधार पर पेंशन नियमों के तहत याचिकाकर्ताओं के रोजगार को विचार से बाहर नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा, न्यायालय ने झारखंड राज्य द्वारा अपनाए गए बिहार पेंशन नियम, 1950 के नियम 59 का भी हवाला दिया, जिसके अनुसार 15 वर्ष से अधिक की निरंतर सेवा पूरी कर चुके अस्थायी कर्मचारी पेंशन और ग्रेच्युटी लाभों के पात्र हैं।
न्यायालय ने गुजरात सरकार (मत्स्यपालन टर्मिनल विभाग) बनाम भीकूभाई मेघाजीभाई चावड़ा के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ऐसे मामलों में, सेवा की निरंतरता को गलत साबित करने का भार नियोक्ता पर होता है।
न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी अपने इस दावे को सही ठहराने में विफल रहे कि याचिकाकर्ता पेंशन के हकदार नहीं थे। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता झारखंड पेंशन नियमावली के नियम 59 के तहत पेंशन संबंधी लाभों के हकदार थे, जिसे 12.08.1969 और 13.01.1975 के सरकारी संकल्पों के साथ पढ़ा जाए।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, रिट याचिका स्वीकार कर ली गई। इसके अलावा, न्यायालय ने प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं की सेवा को पेंशन के लिए योग्य मानें। प्रतिवादियों को चार महीने की अवधि के भीतर पेंशन, ग्रेच्युटी और बकाया राशि सहित सभी परिणामी लाभ प्रदान करने का भी निर्देश दिया गया।

