मृतक ड्राइवर के कानूनी उत्तराधिकारी व्यक्तिगत दुर्घटना कवर के तहत मुआवजे के हकदार, भले ही ड्राइवर की गलती हो: झारखंड हाईकोर्ट

Amir Ahmad

5 Feb 2025 2:36 PM IST

  • मृतक ड्राइवर के कानूनी उत्तराधिकारी व्यक्तिगत दुर्घटना कवर के तहत मुआवजे के हकदार, भले ही ड्राइवर की गलती हो: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने माना कि मृतक ड्राइवर के कानूनी उत्तराधिकारी बीमा पॉलिसी के व्यक्तिगत दुर्घटना (PA) कवर के तहत मुआवजे के हकदार हैं भले ही दुर्घटना के लिए ड्राइवर खुद दोषी हो।

    अदालत ने फैसला सुनाया कि ऐसी परिस्थितियों में चालक मालिक की जगह आ जाता है और बीमा पॉलिसी के पीए कवरेज के अनुसार मुआवजे का हकदार होता है।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने मामले की अध्यक्षता करते हुए कहा,

    "बीमा पॉलिसी रिकॉर्ड में उपलब्ध है, जिसमें मालिक-चालक (CSI) के लिए धारा-III के तहत पीए कवर 2 लाख रुपये बताया गया। इसका अर्थ है कि बीमा है। इससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि यदि वाहन केवल मालिक ही चला रहा है, तो केवल वही क्लॉज लागू होगा। यह मालिक-चालक के रूप में है, जिसका अर्थ है कि जो भी वाहन चला रहा है, वह 2 लाख रुपये के पीए कवर का हकदार है। 2 लाख और अगर ऐसी स्थिति है, तो निश्चित रूप से मृतक ने मालिक की जगह ली है।''

    अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि बीमा पॉलिसी की शर्तों के अनुसार PA कवर केवल मालिक तक ही सीमित नहीं है बल्कि दुर्घटना के समय बीमित वाहन चलाने वाले किसी भी व्यक्ति को भी मिलता है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    झारखंड के पलामू जिले के डंडीला कला गांव के 8 निवासियों द्वारा दायर अपील में उपरोक्त निर्णय आया, जो प्रधान जिला न्यायाधीश-सह-मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा MACC मामले में पारित अवार्ड से व्यथित और असंतुष्ट थे, जिसके तहत न्यायाधिकरण ने अपीलकर्ताओं के मुआवजे का दावा खारिज कर दिया गया।

    यह मामला असमुद्दीन अंसारी की मौत से उत्पन्न हुआ, जो एक ट्रक चालक के रूप में कार्यरत था और बीमित वाहन चलाते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दुर्घटना तब हुई जब उसने ट्रक पर नियंत्रण खो दिया और एक पेड़ से टकरा गया। दुर्घटना के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 279, 304 (ए) और 427 के तहत FIR दर्ज की गई। मृतक के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया, जिसमें संकेत दिया गया कि दुर्घटना के लिए वह दोषी था।

    बीमा कंपनी की ओर से पेश हुए वकील ने दावे का विरोध करते हुए तर्क दिया कि मुआवजे का मामला मोटर वाहन अधिनियम की धारा 163-ए के तहत दावा किया गया। चूंकि मृतक की ओर से लापरवाही थी, इसलिए न्यायाधिकरण ने सही ढंग से उक्त अवार्ड पारित किया।

    उन्होंने आगे कहा कि यदि ऐसी स्थिति थी तो न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता।

    हाईकोर्ट ने पाया,

    "न्यायाधिकरण के आदेश में यह नहीं आया कि मृतक द्वारा वाहन को किस तरह से लापरवाही से चलाया जा रहा था। यह एक स्वीकृत स्थिति है कि मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों और उत्तराधिकारियों ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 163-ए के तहत मुआवजे का दावा किया। उन्होंने केवल यह कहा कि मृतक ने वाहन पर नियंत्रण खो दिया था। वाहन में ब्रेक फेल होने या किसी भी तरह की खराबी के कारण नुकसान हो सकता है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि मृतक वाहन को लापरवाही और जल्दबाजी में चला रहा था।”

    हाईकोर्ट ने न्यायाधिकरण का आदेश संशोधित किया और बीमा कंपनी को अपीलकर्ताओं को आवेदन की तिथि से 7.5% प्रति वर्ष ब्याज के साथ 2 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

    न्यायालय ने यह निर्देश देते हुए अपना निर्णय समाप्त किया,

    "उपर्युक्त निर्णय के मद्देनजर, अपीलकर्ता आवेदन की तिथि से 7.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से वैधानिक ब्याज के साथ 2 लाख रुपये की राशि के हकदार हैं। इस प्रकार, बीमा कंपनी को आज से आठ सप्ताह के भीतर अपीलकर्ताओं को आवेदन की तिथि से 7.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ 2 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया जाता है।"

    केस टाइटल: कुरेशा बीबी और अन्य बनाम पुष्पा देवी और अन्य

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