'धमकाने की कोशिश': झारखंड हाईकोर्ट ने जज के साथ तीखी बहस करने वाले वकील को जारी किया अवमानना नोटिस
Shahadat
19 Oct 2025 5:49 PM IST

झारखंड हाईकोर्ट ने एक वकील को आपराधिक अवमानना का नोटिस जारी किया। बता दें, उक्त वकील गुरुवार को अदालती कार्यवाही के दौरान सिंगल जज के साथ तीखी बहस करते हुए वीडियो में दिखाई दिया था। कोर्ट ने कहा कि वकील ने जज को धमकाने की कोशिश की।
चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान, जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद, जस्टिस रोंगोन मुखोपाध्याय, जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस राजेश शंकर की पांच जजों की पीठ ने शुक्रवार (17 अक्टूबर) को वकील के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेते हुए आपराधिक अवमानना का मामला शुरू किया था।
अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि अदालती कार्यवाही से संबंधित वीडियो "इंटरनेट और अन्य सोशल मीडिया पर वायरल" हो गया, इसलिए कोर्ट ने केंद्रीय परियोजना समन्वयक (सीपीसी) के माध्यम से वीडियो की मूल प्रति मंगवाई। कोर्ट ने प्रतिलिपि का भी अवलोकन किया और वीडियो को खुली अदालत में चलाया गया।
वीडियो का अवलोकन करते हुए पीठ ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि यह गुरुवार को सिंगल जज के समक्ष हुई कार्यवाही से संबंधित है, जिनके समक्ष वकील का नंबर 2 का मामला था और उसमें कुछ आदेश पारित किए गए।
बता दें, सिंगल जज ने गुरुवार को एक महिला का बिजली कनेक्शन काटने से संबंधित मामले की सुनवाई की थी, जिसने बिजली बिल का भुगतान नहीं किया था। कोर्ट ने अपने आदेश में निर्देश दिया कि यदि "याचिकाकर्ता बिजली बिल के रूप में 50,000 रुपये (पचास हजार रुपये) जमा करता है तो प्रतिवादी नंबर 2 को निर्देश दिया जाता है कि वह राशि जमा होने के 24 घंटे के भीतर याचिकाकर्ता का बिजली कनेक्शन बहाल करे।"
पीठ ने आगे कहा:
"हालांकि, जब नंबर 4 का मामला सुनवाई के लिए आया और प्रतिवादी द्वारा किसी भी पक्ष का प्रतिनिधित्व नहीं किया जा रहा था, तब भी विपक्षी पक्ष मंच के सामने खड़ा हो गया। अदालत की कार्यवाही में बाधा डाली। उसने न केवल असंयमित भाषा का प्रयोग किया, बल्कि जज जस्टिस राजेश कुमार को धमकाने की भी कोशिश की। इसके अलावा, प्रतिवादी ने यह कहकर अदालत को बदनाम करने की कोशिश की कि, "देश न्यायपालिका की आग में जल रहा है"। साथ ही इस बात पर अड़ा रहा कि "वह अपने तरीके से बहस करेगा"। इसके बजाय जज से "अपनी सीमाओं का उल्लंघन न करने" का अनुरोध किया, जबकि वह अपनी सीमा से बाहर जाकर कानून की गरिमा और अधिकार को कमज़ोर कर रहा था।"
पीठ के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित वकील ने कहा,
"अदालत में उसने जो कुछ भी किया या कहा, उसके लिए उसे कोई पछतावा या खेद नहीं है"।
पीठ ने कहा,
"प्रथम दृष्टया हमारा विचार है कि प्रतिवादी का कथन आपराधिक अवमानना के अंतर्गत आता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 215 और अदालत अवमानना अधिनियम के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए हम रजिस्ट्री को विपक्षी पक्ष के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेकर आपराधिक अवमानना का मामला दर्ज करने का निर्देश देते हैं। नोटिस जारी करें।"
वकील ने इस जवाब को दाखिल करने के लिए मांगे गए तीन सप्ताह के नोटिस को माफ कर दिया।
इसके बाद अदालत ने मामला 11 नवंबर के लिए सूचीबद्ध किया।
Case title: Court on its Own Motion v/s Mahesh Tewari

