धारा 311 CrPc के तहत गवाहों को बुलाने के विवेकाधीन अधिकार का प्रयोग मजबूत कारणों और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए: झारखंड हाईकोर्ट
Amir Ahmad
22 July 2024 12:54 PM IST
झारखंड हाईकोर्ट ने धारा 311 सीआरपीसी के तहत अदालतों की विवेकाधीन शक्ति की पुष्टि की, सच्चाई को उजागर करने में इसकी भूमिका पर जोर देते हुए इसके विवेकपूर्ण प्रयोग की आवश्यकता को रेखांकित किया।
जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने कहा,
"धारा 311 CrPc ऐसे कई प्रावधानों में से एक है, जो कानून द्वारा प्रक्रियात्मक मंजूरी के माध्यम से सच्चाई को उजागर करने के न्यायालय के प्रयासों को मजबूत करता है। साथ ही धारा 311 CrPc के तहत निहित विवेकाधीन शक्ति। न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मजबूत और वैध कारणों के लिए विवेकपूर्ण तरीके से और सावधानी और सावधानी के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए।”
इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया और अभियोजन पक्ष के साक्ष्य प्रस्तुत किए जाने के साथ कार्यवाही चल रही थी। इसके बाद प्रतिवादी नंबर 2 द्वारा धारा 311 सीआरपीसी के तहत आवेदन दायर किया गया था, जिसमें पांच गवाहों को वापस बुलाने के लिए कहा गया, जिनकी अभी तक जांच नहीं की गई।
ट्रायल कोर्ट ने इस आवेदन को खारिज किया, जिसके कारण सेशन कोर्ट के समक्ष अपील की गई, जिन्होंने ट्रायल कोर्ट का फैसला पलट दिया और गवाहों को वापस बुलाने की अनुमति दी। इसके बाद सेशन जज का फैसला रद्द करने की मांग वाली याचिका में इस आदेश को चुनौती दी गई।
हाईकोर्ट ने पाया कि आईपीसी की धारा 467 और 468 से संबंधित हेरफेर स्पष्ट है और राजेंद्र प्रसाद बनाम नारकोटिक्स सेल और मोहनलाल शामजी सानी बनाम भारत संघ में पिछले निर्णयों का संदर्भ दिया।
न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला,
“यदि उचित साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए गए और किसी असावधानी के कारण प्रासंगिक मामले को रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया तो न्यायालय को ऐसे कदमों को सुधारने की अनुमति देने में उदारता दिखानी चाहिए। माननीय सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय के अंशों का यह भाग स्वयं इंगित करता है कि धारा 311 सीआरपीसी में गवाहों की जांच करने के साथ-साथ प्रासंगिक सामग्रियों को स्वीकार करने की शक्ति शामिल है, जिन्हें रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया। न्यायालय ने आगे पाया कि पुनर्विचार न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को दिन-प्रतिदिन के आधार पर ट्रायल आयोजित करने का निर्देश दिया। गवाहों को सुनवाई की प्रत्येक तिथि पर उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया।”
इन विचारों के आधार पर हाईकोर्ट ने एडिशनल सेशन जज के आदेश में कोई अवैधता नहीं पाई और याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: अरुण कुमार ठाकुर बनाम झारखंड राज्य और अन्य।