बीमाकर्ता बिना सहभागी लापरवाही साबित किए दायित्व से इनकार नहीं कर सकता, FIR दर्ज करने में देरी का दावा खारिज करने का कोई आधार नहीं: झारखंड हाईकोर्ट

Amir Ahmad

4 Feb 2025 12:14 PM IST

  • बीमाकर्ता बिना सहभागी लापरवाही साबित किए दायित्व से इनकार नहीं कर सकता, FIR दर्ज करने में देरी का दावा खारिज करने का कोई आधार नहीं: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में एक बीमा कंपनी द्वारा दायर अपील खारिज की, जबकि इस बात की पुष्टि की कि मोटर दुर्घटना मुआवजा दावे के मामले में सहभागी लापरवाही साबित करने की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की है।

    मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने इस बात पर जोर दिया,

    "जहां तक ​​सहभागी लापरवाही का सवाल है, कोई सबूत पेश नहीं किया गया। इसे साबित करने की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की है।"

    उपरोक्त फैसला मोटर दुर्घटना दावा मामले में सुनाया गया, जो बीमा कंपनी द्वारा मोटर वाहन दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT), रांची द्वारा पारित अवार्ड को चुनौती देने वाली अपील से उत्पन्न हुआ था।

    पृष्ठभूमि

    मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार मुआवजे की राशि 25 लाख रुपये के लिए मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत दावा मामला शुरू किया गया। सड़क दुर्घटना में संदीप उरांव नामक व्यक्ति की मृत्यु के कारण 21,00,000 का मुआवज़ा दिया गया, जिसमें उसकी मोटरसाइकिल को एक तेज़ रफ़्तार ट्रक ने टक्कर मार दी थी। कथित तौर पर मृतक अपने पीछे अपनी पत्नी, नाबालिग बेटे, बेटी और माता-पिता सहित अपने परिवार के पाँच सदस्यों को छोड़कर चला गया।

    बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि न्यायाधिकरण ने मृतक के वैध लाइसेंस के साथ-साथ बीमित वाहन की फिटनेस के संबंध में कोई निष्कर्ष नहीं दिया। यह भी तर्क दिया गया कि अपराधी वाहन भी प्रत्यारोपित था, क्योंकि उसका पंजीकरण नंबर FIR में उल्लेखित नहीं था। अपीलकर्ता कंपनी ने यह भी बताया कि मृतक चालक की ओर से भी लापरवाही बरती गई, जिसके बावजूद न्यायाधिकरण ने मुआवज़ा देने का आदेश पारित किया।

    बीमा कंपनी ने यह भी तर्क दिया कि घटना की तारीख से 38 दिनों के बाद FIR दर्ज की गई। यह भी बताया गया कि मृतक के पिता आश्रित नहीं थे। इसके बावजूद व्यक्तिगत कटौती निर्धारित करने में उनकी उपस्थिति को गिना गया। निर्णय के पैरा-17 में यह स्पष्ट है कि व्यक्तिगत कटौती और जीवन-यापन व्यय के लिए विचारित 1/4 बराबर हिस्से की गणना सही ढंग से की गई।

    निर्भरता गणना के उपरोक्त प्रश्न पर न्यायालय ने सरला वर्मा एवं अन्य बनाम दिल्ली परिवहन निगम एवं अन्य [(2009) 6 एससीसी 121] और नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी एवं अन्य [(2017) 16 एससीसी 680] के निर्णयों पर भरोसा करते हुए कहा कि भले ही मृतक का पिता आश्रित न हो, फिर भी व्यक्तिगत कटौती और जीवन-यापन व्यय के लिए विचारित 1/4 बराबर हिस्से की गणना सही ढंग से की गई।

    हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी उल्लेख किया,

    “इन दस्तावेजों के साथ-साथ मौखिक साक्ष्य के आलोक में ट्रिब्यूनल इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि पॉलिसी की कोई भी शर्त छूटी नहीं थी। बीमा कंपनी के विरुद्ध निर्णय दिया गया। इस न्यायालय ने पाया कि उक्त मुद्दे पर निर्णय लेने का वैध कारण ट्रिब्यूनल के निर्णय में प्रकट किया गया, जिसके मद्देनजर यह न्यायालय अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित वकील की दलील को स्वीकार नहीं कर रहा है।"

    देरी से दर्ज की गई FIR के संबंध में न्यायालय ने कहा,

    "आवेदन पहले ही किया जा चुका था। दुर्घटना के ठीक एक दिन बाद इस बात को देखते हुए कि FIR दर्ज करने के संबंध में अपीलकर्ता-बीमा कंपनी की ओर से उपस्थित वकील की दलील मान्य नहीं है क्योंकि आरोप पत्र प्रस्तुत किया जा चुका है, जिसे प्रदर्शित किया गया और दुर्घटना हुई थी और पोस्टमार्टम रिपोर्ट रिकॉर्ड पर थी।"

    न्यायालय ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) रांची द्वारा मोटर दुर्घटना दावा मामले में दिया गया निर्णय बरकरार रखा तथा चोलामंडलम एमएस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर अपील खारिज की।

    न्यायालय ने आदेश का समापन करते हुए निर्देश दिया,

    "बीमा कंपनी द्वारा जमा की गई वैधानिक राशि न्यायाधिकरण को वापस भेजी जाएगी तथा उस राशि का उपयोग दावेदारों के पक्ष में दिए गए निर्णय को संतुष्ट करने में किया जाएगा। यदि उक्त बीमा कंपनी द्वारा पूरी राशि पहले ही जमा कर दी गई तो वैधानिक राशि ट्रिब्यूनल द्वारा बीमा कंपनी को वापस कर दी जाएगी।"

    केस टाइटल: चोलामंडलम एमएस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम पंची ओरांव बनाम अन्य

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