रिट याचिकाएं कारण बताओ नोटिस के विरुद्ध नहीं, जब तक कि वह अधिकार क्षेत्र से बाहर न हो, पहले से विचार कर जारी न की गई हो: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

23 July 2024 10:09 AM GMT

  • रिट याचिकाएं कारण बताओ नोटिस के विरुद्ध नहीं, जब तक कि वह अधिकार क्षेत्र से बाहर न हो, पहले से विचार कर जारी न की गई हो: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकार्ट ने पूर्व नियोजित कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद लीज डीड को रद्द करने के आदेश को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया है कि जब तक कारण बताओ नोटिस पहले से विचार कर (Premeditated Mind) से जारी नहीं किया जाता है, तब तक रिट याचिका आम तौर पर इसके खिलाफ नहीं होती है।

    प्रतिवादी जम्मू विकास प्राधिकरण (जेडीए) द्वारा लीज समझौते को रद्द करने के खिलाफ याचिका को स्वीकार करते हुए, जो कि पूर्व नियोजित कारण बताओ नोटिस का परिणाम था, जस्टिस वसीम सादिक नरगल ने कहा,“… कारण बताओ नोटिस और रद्द करने के आदेश में प्रयुक्त भाषा शब्दशः एक जैसी है, जिसका अर्थ है कि प्रतिवादियों ने केवल कारण बताओ नोटिस के माध्यम से भूखंड के आवंटन को रद्द करने का निर्णय लिया है और कारण बताओ नोटिस जारी करना केवल एक औपचारिकता थी, क्योंकि प्रतिवादियों ने पहले ही याचिकाकर्ता के पक्ष में आवंटन को रद्द करने का निर्णय ले लिया था”।

    अदालत ने कहा कि इस मामले में कारण बताओ नोटिस जारी करना एक बेकार की औपचारिकता होती, जब प्रतिवादी अधिकारियों द्वारा आवंटन को रद्द करने का निर्णय पहले ही पूर्व नियोजित मन से लिया जा चुका है और यह अदालत इस बात पर दृढ़ राय रखती है कि मामला 'बेकार की औपचारिकता सिद्धांत' के अंतर्गत आता है।

    जस्टिस नरगल ने दलीलों और दस्तावेजों की विस्तार से जांच की और पाया कि कारण बताओ नोटिस की भाषा आवंटन को रद्द करने के लिए पूर्व निर्धारित निर्णय का सुझाव देती है, जो याचिकाकर्ता के पूर्वाग्रह के दावे की पुष्टि करता है।

    “.. कारण बताओ नोटिस और रद्द करने के आदेश की सामग्री दर्शाती है कि कारण बताओ नोटिस और रद्द करने के आदेश दोनों में एक ही भाषा का इस्तेमाल किया गया है।”

    न्यायालय ने मेसर्स बीसीआईटीएस प्राइवेट लिमिटेड बनाम पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड और अन्य में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए अधिकारियों द्वारा खुले दिमाग से कारण बताओ नोटिस जारी करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। इस प्रकार इसने इस बात को पुष्ट किया कि पूर्व निर्धारित निर्णय के साथ जारी किया गया नोटिस वास्तविक कारण बताओ नहीं बल्कि पूर्व निर्धारित फैसला है।

    'बेकार औपचारिकता सिद्धांत' से बल प्राप्त करते हुए जस्टिस नरगल ने कहा, “इस मामले में कारण बताओ नोटिस जारी करना एक बेकार औपचारिकता होती, जब आवंटन को रद्द करने का निर्णय प्रतिवादी अधिकारियों द्वारा पहले से ही सोच-समझकर लिया गया हो।”

    विबंधन और स्वीकृति के महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हुए जस्टिस नरगल ने रेखांकित किया कि जेडीए ने याचिकाकर्ता द्वारा सभी औपचारिकताओं और भुगतानों का अनुपालन स्वीकार कर लिया है, इसलिए वह वैध कानूनी आधारों के बिना पांच साल बाद अचानक अपना रुख नहीं बदल सकता।

    पीठ ने कहा,

    “इस प्रकार, याचिकाकर्ता को जो अधिकार प्राप्त हुआ है, उसे कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना नहीं छीना जा सकता और वह भी पांच साल के लंबे समय के बाद, जब प्रतिवादियों ने बिना किसी शिकायत के याचिकाकर्ता के पक्ष में खुशी-खुशी और स्वेच्छा से कब्जा सौंप दिया है और लीज डीड की शर्तों के उल्लंघन का कोई आरोप नहीं है”।

    इन विचारों के आलोक में न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि कारण बताओ नोटिस की पूर्व निर्धारित प्रकृति और लीज डीड के माध्यम से आवंटन के लिए जेडीए की सहमति को देखते हुए निरस्तीकरण का विवादित आदेश अन्यायपूर्ण था।

    रिट याचिका को अनुमति दी गई, और निरस्तीकरण आदेश को रद्द कर दिया गया। याचिकाकर्ता को जेडीए के पास ₹36,76,471/- जमा करने का निर्देश दिया गया, जिसके बाद याचिकाकर्ता के पक्ष में संपत्ति का कब्ज़ा नियमित किया जाना था।

    केस टाइटल: कामरान अली खान बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य

    साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (जेकेएल) 199

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