परिस्थितियों में बदलाव न होने पर भी लगातार जमानत याचिका सुनवाई योग्य: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Praveen Mishra

23 Dec 2025 7:13 AM IST

  • परिस्थितियों में बदलाव न होने पर भी लगातार जमानत याचिका सुनवाई योग्य: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि किसी अधीनस्थ आपराधिक अदालत द्वारा पहले जमानत याचिकाएँ खारिज की जा चुकी हों, तब भी हाईकोर्ट के समक्ष successive (लगातार) जमानत याचिका पर विचार करने के लिए परिस्थितियों में बदलाव (change of circumstances) होना अनिवार्य नहीं है।

    जस्टिस संजय धर ने बलात्कार के एक मामले में आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि उच्च न्यायालय, एक वरिष्ठ (superior) अदालत होने के नाते, ऐसी तकनीकी सीमाओं से बंधा नहीं है। यह मामला धारा 376 आईपीसी के तहत दर्ज एफआईआर से संबंधित था, जिसकी सुनवाई श्रीनगर के द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत में लंबित है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    अभियोजन के अनुसार, पीड़िता के दादा द्वारा लिखित शिकायत दी गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसकी नातिन के साथ आरोपी ने बलात्कार किया और वह गर्भवती हो गई। जांच के दौरान मेडिकल परीक्षण में गर्भधारण की पुष्टि हुई और आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया। ट्रायल के दौरान पीड़िता सहित आठ गवाहों की गवाही हो चुकी थी। आरोपी की पहली और दूसरी जमानत याचिकाएँ ट्रायल कोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई थीं, जिसके बाद उसने उच्च न्यायालय का रुख किया।

    न्यायालय की टिप्पणियाँ

    हाईकोर्ट ने कहा कि जमानत पर निर्णय लेते समय अदालत को प्रथम दृष्टया मामला, अपराध की गंभीरता, सजा की प्रकृति, फरार होने की संभावना, गवाहों से छेड़छाड़ की आशंका और न्याय के समग्र हित जैसे कारकों पर विचार करना चाहिए। अदालत ने यह भी पाया कि ट्रायल कोर्ट ने केवल अपराध को “जघन्य” बताते हुए जमानत याचिकाएँ यांत्रिक रूप से खारिज कर दीं, जबकि अभियोजन साक्ष्यों पर सीमित स्तर पर भी विचार नहीं किया गया।

    न्यायालय ने यह भी नोट किया कि आरोपी लगभग दो वर्षों से हिरासत में था और सभी महत्वपूर्ण गवाहों की गवाही हो चुकी थी, जिससे साक्ष्यों से छेड़छाड़ की आशंका कम थी। सीमित उद्देश्य के लिए साक्ष्यों का अवलोकन करते हुए अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया मामला सहमति से संबंध (consensual) का प्रतीत होता है।

    महत्वपूर्ण सिद्धांत

    हाईकोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि

    “हाईकोर्ट, एक वरिष्ठ अदालत होने के नाते, ऐसे मामलों में भी successive जमानत याचिका पर विचार कर सकता है, जहाँ अधीनस्थ अदालत द्वारा पहले जमानत खारिज की गई हो और परिस्थितियों में कोई बदलाव न हो।”

    इन कारणों से, उच्च न्यायालय ने जमानत याचिका स्वीकार करते हुए आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

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