पूर्व-निष्पादन चरण में निरोध आदेश रद्द करने की मांग करने वाले घोषित अपराधी के बचाव में नहीं आ सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Amir Ahmad

19 March 2025 6:51 AM

  • पूर्व-निष्पादन चरण में निरोध आदेश रद्द करने की मांग करने वाले घोषित अपराधी के बचाव में नहीं आ सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि संवैधानिक न्यायालयों के पास पूर्व-निष्पादन चरण में निरोध आदेश में हस्तक्षेप करने का सीमित अधिकार है। इसने कहा कि ऐसा उपाय अन्यथा उस व्यक्ति द्वारा भी नहीं मांगा जा सकता, जो न्यायालय की कानूनी प्रक्रिया से बच रहा है।

    याचिकाकर्ता ने पूर्व-निष्पादन चरण में निरोध आदेश को चुनौती देने की मांग करते हुए कहा कि न्यायालय द्वारा पहले के निरोध आदेश रद्द कर दिया गया। न्यायालय ने कहा कि वह पूर्व-निष्पादन चरण में निरोध आदेश में तभी हस्तक्षेप कर सकता है, जब इसे निरोध प्राधिकारी द्वारा गलत उद्देश्य या अस्पष्ट और अप्रासंगिक आधारों पर पारित किया गया हो।

    जस्टिस संजय धर ने कहा कि न केवल निरोध आदेश पहले दर्ज की गई आठ FIR पर आधारित है बल्कि याचिकाकर्ता ने यह स्वीकार किया कि उसे घोषित अपराधी घोषित किया गया। ऐसे तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय याचिकाकर्ता के बचाव में नहीं आ सकता।

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता का गंभीर आपराधिक गतिविधियों का इतिहास रहा है, जिसमें हत्या का प्रयास, हमला, दंगा, भूमि हड़पना और शस्त्र अधिनियम का उल्लंघन शामिल है।

    अदालत ने सुभाष पोपट लाल दवे के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अदालतें केवल विशिष्ट आधारों पर पूर्व-निष्पादन चरण में निवारक निरोध में हस्तक्षेप कर सकती हैं।

    इन आधारों में शामिल हैं, जब उस अधिनियम के तहत आदेश पारित नहीं किया जाता है जिसके तहत पारित किया जाना माना जाता है-

    (ii) इसे किसी गलत व्यक्ति के खिलाफ निष्पादित करने की मांग की जाती है।

    (iii) इसे गलत उद्देश्य के लिए पारित किया जाता है।

    (iv) इसे अस्पष्ट, बाहरी और अप्रासंगिक आधारों पर पारित किया जाता है या

    (v) जिस प्राधिकारी ने पारित किया था, उसके पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं था।

    याचिकाकर्ता ने जिला मजिस्ट्रेट जम्मू द्वारा उसके खिलाफ जारी किए गए निवारक निरोध आदेश को चुनौती दी। याचिकाकर्ता को पहले पांच FIR के आधार पर 2020 में पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया। हिरासत में रखने वाले अधिकारी द्वारा विवेक का प्रयोग न किए जाने के कारण सितंबर 2020 में हाईकोर्ट ने इस हिरासत रद्द कर दी थी।

    निरस्त किए जाने के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ 2021 और 2022 में तीन और FIR दर्ज की गईं।

    याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने इन FIR में शिकायतकर्ताओं के साथ समझौता कर लिया और उसकी नई हिरासत अनुचित है।

    पुलिस ने सितंबर 2024 में उसके आवास पर धारा 84/85 BNSS के तहत उद्घोषणा चिपका दी, जिसमें उसे फरार घोषित कर दिया गया। उसे जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया। साथ ही हिरासत का वारंट भी जारी किया गया जिसे वर्तमान याचिका के तहत चुनौती दी गई।

    केस-टाइटल: मोहम्मद असगर @ टोला बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर

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