आरोपी को पासपोर्ट जारी करने के लिए 'अनापत्ति' केवल समक्ष आपराधिक कार्यवाही लंबित करने वाले न्यायालय द्वारा दी जा सकती है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Shahadat
15 April 2025 2:39 PM

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही लंबित है, उसे पासपोर्ट तभी दिया जा सकता है, जब संबंधित आपराधिक न्यायालय अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार पासपोर्ट जारी करने के लिए 'अनापत्ति' दे।
याचिकाकर्ता ने अपने पासपोर्ट के नवीनीकरण के लिए पासपोर्ट कार्यालय से संपर्क किया, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि पुलिस सत्यापन रिपोर्ट में प्रतिकूल उल्लेख है कि वह PC Act की धारा 5(डी) के साथ धारा 5(2) के तहत एडिशनल सेशन जज (भ्रष्टाचार निरोधक मामले) जम्मू के समक्ष दर्ज FIR में शामिल है।
जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा कि आपराधिक मामले का लंबित होना पासपोर्ट जारी करने/नवीनीकरण खारिज करने का आधार बन सकता है, लेकिन यदि संबंधित न्यायालय जिसके समक्ष कार्यवाही लंबित है, उसे मंजूरी दे देता है और आरोपी को कोई आपत्ति नहीं देता है तो पासपोर्ट कार्यालय द्वारा पासपोर्ट जारी/नवीनीकृत किया जा सकता है।
अदालत ने आगे कहा कि FIR दर्ज करके या किसी भी अदालत के समक्ष किसी भी आपराधिक कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान पासपोर्ट जारी करने या नवीनीकरण की मांग करने पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।
इसके लिए अदालत ने भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि केंद्र सरकार किसी भी व्यक्ति, जिसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही लंबित है, उसको संबंधित अदालत से विदेश यात्रा की अनुमति मिलने के बाद सार्वजनिक हित में पासपोर्ट अधिनियम की धारा 6(2)(एफ) के संचालन से छूट दे सकती है।
इसलिए न्यायालय ने माना कि यदि उक्त न्यायालय याचिकाकर्ता के पक्ष में 'NOC' प्रदान करता है तो प्रतिवादी नंबर 2 को याचिकाकर्ता के विरुद्ध आपराधिक मामला लंबित होने के बावजूद भी उसके पक्ष में पासपोर्ट/यात्रा दस्तावेज जारी करने का पूरा अधिकार है।
न्यायालय ने कहा कि किसी भी नागरिक का पासपोर्ट कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना रोका नहीं जा सकता। इस प्रकार याचिकाकर्ता को अपने पक्ष में यात्रा दस्तावेज जारी करने के लिए आवेदन के साथ संबंधित आपराधिक न्यायालय में जाने की स्वतंत्रता प्रदान की।
याचिकाकर्ता ने पासपोर्ट के नवीनीकरण को अस्वीकार करने वाले प्रतिवादी द्वारा जारी संचार को चुनौती दी थी और तर्क दिया कि यह अवैध, मनमाना और पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की भावना के विपरीत है। उन्होंने तर्क दिया कि यात्रा करने का अधिकार उनके लिए गारंटीकृत मौलिक अधिकार है और कानून के अनुसार ही इसे अस्वीकार किया जा सकता है।
उन्होंने आगे तर्क दिया कि उक्त आपत्तिजनक संचार प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, क्योंकि इसे उन्हें सुनवाई का अवसर दिए बिना अस्वीकार कर दिया गया।
केस-टाइटल: अब्दुल हामिद बनाम भारत संघ और अन्य, 2025