किसी भी चयन प्रक्रिया में प्रक्रियागत त्रुटियों के चलते निचले पद को मजबूरी में स्वीकार करना मूल दावे को नहीं करता समाप्त : जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Amir Ahmad

29 April 2025 11:14 AM IST

  • किसी भी चयन प्रक्रिया में प्रक्रियागत त्रुटियों के चलते निचले पद को मजबूरी में स्वीकार करना मूल दावे को नहीं करता समाप्त : जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा सब-इंस्पेक्टर पद की मांग के बावजूद मजबूरी में कांस्टेबल पद को स्वीकार करना उसके मूल दावे को समाप्त नहीं करता, क्योंकि यह लंबे संघर्ष और दबाव की स्थिति में किया गया।

    याचिकाकर्ता के पिता आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान शहीद हो गए थे। उन्होंने सहानुभूति के आधार पर एसआरओ 43 के तहत सब-इंस्पेक्टर पद पर नियुक्ति की मांग की थी। उन्होंने दावा किया कि उनका मामला जनरल एडमिनिस्ट्रेटिव डिपार्टमेंट (GAD) के पास नहीं भेजा गया, जो इस प्रकार के मामलों में निर्णय लेने का सक्षम प्राधिकरण है।

    जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि हमें ज्ञात है कि याचिकाकर्ता ने कांस्टेबल पद को अपनी सहमति से स्वीकार किया था, लेकिन हम उन परिस्थितियों की अनदेखी नहीं कर सकते जिनकी वजह से उसे अंततः जो भी पेशकश हुई उसे स्वीकार करना पड़ा।

    प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि सहानुभूति के आधार पर नियुक्ति एक रियायत है, अधिकार नहीं। याचिकाकर्ता ने कांस्टेबल पद स्वीकार कर लिया था, अतः वह अब उच्च पद की मांग नहीं कर सकता।

    कोर्ट ने पाया कि गृह विभाग (Home Department) ने याचिकाकर्ता का दावा अस्वीकार किया, जबकि वह इसके लिए अधिकृत नहीं था मामला जनरल एडमिनिस्ट्रेटिव डिपार्टमेंट (GAD) को भेजा जाना चाहिए था।

    कोर्ट ने कहा कि नियम 3(2) के तहत GAD को योग्य व्यक्तियों को उच्च पद (जैसे कि सब-इंस्पेक्टर) पर नियुक्त करने का विवेकाधिकार प्राप्त है, परंतु याचिकाकर्ता का मामला GAD के पास भेजा ही नहीं गया।

    कोर्ट ने निर्देश दिया कि पूरा केस फाइल GAD को भेजी जाए और वह याचिकाकर्ता की सब-इंस्पेक्टर पद पर नियुक्ति की मांग को अनुशंसाओं एवं समान पिछले मामलों के आधार पर तय करे।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि यह प्रक्रिया 10 सप्ताह के भीतर पूरी की जाए, जिसमें फाइल प्रस्तुत करने के लिए 4 सप्ताह और निर्णय के लिए 6 सप्ताह का समय दिया गया।

    मामला

    याचिकाकर्ता 2017 में आतंकवादी हिंसा में शहीद हुए सहायक उपनिरीक्षक (Assistant Sub Inspector) के पुत्र हैं।

    याचिकाकर्ता ने एसआरओ 43/1994 के तहत जम्मू-कश्मीर पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के पद पर सहानुभूति नियुक्ति की मांग की थी।

    प्रारंभ में पुलिस मुख्यालय ने उनकी सब-इंस्पेक्टर के रूप में नियुक्ति की सिफारिश की थी परन्तु गृह विभाग ने फाइल लौटाकर उन्हें कांस्टेबल के पद पर नियुक्त करने को कहा।

    याचिकाकर्ता ने विरोध के साथ कांस्टेबल पद स्वीकार किया और बाद में इस कार्रवाई को केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) में चुनौती दी, जहां से उनका मामला खारिज कर दिया गया।

    इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में यह रिट याचिका दायर की।

    केस टाइटल: इरशाद राशिद शाह बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश एवं अन्य, 2025

    Next Story