गलती से अधिक वेतन मिलने पर राशि वसूली नहीं की जा सकती, लेकिन कर्मचारी गलत लाभ की निरंतरता की मांग नहीं कर सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Amir Ahmad
23 April 2025 10:49 AM

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि किसी कर्मचारी को गलतीवश अधिक वेतन प्रदान किया गया हो और बाद में उस गलती का पता चल जाए व उसे सुधारा जाए तो उस कर्मचारी द्वारा उस गलती के लाभ को जारी रखने की मांग पूरी तरह से अनुचित है और स्वीकार नहीं की जा सकती।
जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस पुनीत गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का यह तर्क सही है कि चूंकि उन्होंने अधिक वेतन पाने में कोई धोखाधड़ी या गलत प्रस्तुति नहीं की थी, इसलिए उनसे पहले से भुगतान की गई राशि की वसूली नहीं की जा सकती। लेकिन इसके साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि लाभ की गलती का पता चलने और उसे वापस लेने के बाद सरकार को वेतन को दोबारा निर्धारित करने से रोका नहीं जा सकता।
उत्तरदाता (सरकार) ने यह तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को जो वेतन लाभ मिला था, वह SRO 59 of 1990 के आधार पर दिया गया, जिसे 1996 में वापस ले लिया गया था। साथ ही याचिकाकर्ताओं ने उस समय शपथपत्र पर हस्ताक्षर किए कि अगर वे भविष्य में अयोग्य पाए गए तो वे लाभ वापस कर देंगे। सरकार ने यह भी कहा कि संबंधित लाभ गलती से दिया गया और उसे सुधारना कानूनन उचित है।
अदालत ने यह माना कि याचिकाकर्ताओं ने कभी यह विवाद नहीं किया कि उन्हें लाभ तथ्यात्मक गलती के कारण दिया गया और यह भी स्वीकार किया कि गलती सुधारी जा सकती थी। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ताओं ने कभी SRO 59 के तहत लाभ पाने का दावा नहीं किया और न ही इसके वापस लिए जाने को चुनौती दी।
कोर्ट ने माना कि ट्रिब्यूनल का यह निर्णय सही था कि वेतन का पुनर्निर्धारण कर्मचारी द्वारा की गई गलती को सुधारने के लिए किया जा सकता है, लेकिन जो कर्मचारी रिटायरमेंट के निकट हैं। उनसे भुगतान की गई राशि की वसूली सुप्रीम कोर्ट द्वारा रफीक मसीह मामले में स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ होगी।
इसलिए हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल का फैसला बरकरार रखा, जिसमें सरकार को वेतन का पुनर्निर्धारण करने की अनुमति दी गई, लेकिन पहले से भुगतान की गई राशि की वसूली पर रोक लगा दी गई। कोर्ट ने कहा कि सरकारी नियोक्ता गलतियों को सुधार सकते हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इससे कर्मचारियों को अनावश्यक कठिनाई न हो।
क्या था मामला?
याचिकाकर्ता पहले PHE (अब जल शक्ति) विभाग में दैनिक वेतन भोगी थे, जिन्हें बाद में क्लास-IV कर्मचारी के रूप में नियमित किया गया।
उन्हें पहले 750–940 के वेतनमान में रखा गया लेकिन बाद में उन्हें 950–1500 का उच्चतर वेतनमान प्रदान किया गया, जो कि 01.04.1998 से काल्पनिक रूप से और 01.07.2015 से वास्तविक रूप से लागू किया गया।
2021 में सरकार ने एक आदेश जारी कर इस उच्चतर वेतनमान को वापस ले लिया, यह कहते हुए कि SRO 59/1990 को 15.01.1996 से वापस ले लिया गया। उसने पहले से भुगतान की गई राशि की वसूली शुरू कर दी।
याचिकाकर्ताओं ने इसे केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण में चुनौती दी, जहां ट्रिब्यूनल ने वेतन के पुनर्निर्धारण को अनुमति दी लेकिन भुगतान की गई राशि की वसूली पर रोक लगा दी।
इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने ट्रिब्यूनल के उस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसमें वेतन का पुनर्निर्धारण अनुमति दी गई।