कमर्शियल लेन-देन के दौरान अपराध होना ही मुकदमे से बचने के लिए पर्याप्त नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Amir Ahmad
20 Feb 2025 10:49 AM

एक FIR और आरोपपत्र रद्द करने की मांग करने वाली याचिका खारिज करते हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि अपराध कमर्शियल लेन-देन के दौरान किया गया, यह निष्कर्ष निकालना पर्याप्त नहीं होगा कि शिकायत पर मुकदमा चलाने की आवश्यकता नहीं है। शिकायत में आरोपों की सत्यता का निर्धारण शिकायत मामले में मुकदमे के दौरान प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर किया जाना है।
याचिका खारिज करते हुए जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने कहा,
“यह नहीं कहा जा सकता है कि शिकायत में अपराध किए जाने का खुलासा नहीं किया गया। केवल इसलिए कि अपराध कमर्शियल लेन-देन के दौरान किया गया, यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि शिकायत पर मुकदमा चलाने की आवश्यकता नहीं है। शिकायत में आरोप सत्य हैं या नहीं, इसका निर्णय शिकायत मामले में मुकदमे के दौरान प्रस्तुत किए जाने वाले साक्ष्यों के आधार पर किया जाना है। यह निश्चित रूप से ऐसा मामला नहीं है, जिसमें आपराधिक मुकदमे को कम किया जाना चाहिए, क्योंकि शिकायत को खारिज करने से न्याय की गंभीर विफलता होगी।”
यह याचिका भारतीय जनता पार्टी के सदस्य और उद्यमी नागराज वी. द्वारा दायर की गई, जिसमें पुलिस स्टेशन अनंतनाग में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 के तहत दर्ज FIR और अनंतनाग के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) के समक्ष लंबित चार्जशीट रद्द करने की मांग की गई।
यह विवाद याचिकाकर्ता और प्रतिवादी नंबर 2 जो भारतीय सेना में सेवारत मेजर है, उनके बीच असफल कमर्शियल लेनदेन से उत्पन्न हुआ। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि प्रतिवादी ने शुरू में कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में व्यापारिक सहयोग का प्रस्ताव रखा और बाद में चेन्नई में याचिकाकर्ता के फिल्म निर्माण उद्यम में 76 लाख रुपये का निवेश किया। लाभ-साझाकरण और निवेश की वापसी को लेकर विवाद के बाद प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया और शिकायत दर्ज कराई जिसके कारण FIR दर्ज की गई।
FIR और अन्य संबंधित कार्यवाही पर हमला करते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि FIR प्रतिवादी द्वारा आधिकारिक शक्ति का दुरुपयोग है, जिसका उद्देश्य अनंतनाग जिले में अपने प्रभाव का लाभ उठाकर धन उगाही करना है। उन्होंने प्रतिवादी के इशारे पर पुलिस द्वारा हिरासत में यातना और जबरदस्ती करने का आरोप लगाया, जिसमें आतंकवादी गतिविधियों में झूठे आरोप लगाने की धमकी भी शामिल है।
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि व्यापारिक लेन-देन पूरी तरह से कमर्शियल था और विवाद प्रकृति में दीवानी था, जो धारा 420 IPC के तहत आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए उपयुक्त नहीं था। यूटी सीनियर एएजी मोहसिन कादरी का प्रतिनिधित्व करते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने एक संपत्ति सौदे के बहाने धोखाधड़ी से 1.06 करोड़ रुपए प्राप्त किए थे और बाद में बाउंस चेक के माध्यम से पुनर्भुगतान में चूक की।
शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता पर तमिलनाडु और अन्य राज्यों में इसी तरह के अपराधों के इतिहास के साथ एक आदतन अपराधी होने का आरोप लगाया तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के आचरण से धोखा देने का स्पष्ट इरादा प्रदर्शित होता है। उपलब्ध अभिलेखों की गहन जांच के बाद जस्टिस कौल ने दोहराया कि धारा 482 CrPC के दायरे का इस्तेमाल संयम से किया जाना चाहिए। इसका इस्तेमाल केवल कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने या न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए किया जाना चाहिए।
यह देखते हुए कि कमर्शियल लेनदेन को ढाल के रूप में नहीं माना जा सकता, न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि चूंकि कथित अपराध कमर्शियल लेनदेन के दौरान हुआ। इसलिए इसे दीवानी विवाद के रूप में माना जाना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आरोपों की सत्यता को प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर मुकदमे के दौरान परखा जाना चाहिए।
आर.पी. कपूर बनाम पंजाब राज्य और हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल जैसे ऐतिहासिक निर्णयों का हवाला देते हुए न्यायालय ने रेखांकित किया कि आपराधिक कार्यवाही तभी रद्द करना उचित है, जब आरोप अपराध न हों या कार्यवाही स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण हो। इस मामले में, रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के कारण पूर्ण सुनवाई की आवश्यकता थी।
न्यायालय ने कहा
“अदालत को FIR/शिकायत में लगाए गए आरोपों की विश्वसनीयता या वास्तविकता या अन्यथा के बारे में जांच करने का औचित्य नहीं है, जब तक कि आरोप इतने बेतुके और स्वाभाविक रूप से असंभव न हों कि कोई भी विवेकशील व्यक्ति कभी भी ऐसे निष्कर्ष पर न पहुंच सके।”
इसने रेखांकित किया प्रक्रिया के दुरुपयोग के तर्क को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि याचिका में यह दिखाने के लिए कोई ठोस आधार प्रस्तुत नहीं किया गया कि कार्यवाही जारी रखने से कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि याचिकाकर्ता कानून के अनुसार जमानत देने के लिए ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र होगा
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला और याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: नागराज बनाम बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश