'सुस्त न्याय' पर सख्त टिप्पणी: चालान के स्तर पर ही कमजोर मामलों को छांटें आपराधिक अदालतें- जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का संदेश
Amir Ahmad
26 Dec 2025 12:34 PM IST

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने आपराधिक न्याय व्यवस्था की धीमी रफ्तार पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि आपराधिक अदालतें पुलिस रिपोर्टों की मात्र औपचारिक स्वीकृति करने वाली संस्था नहीं हैं। अदालतों का दायित्व है कि वे चालान पेश होते ही यह परखें कि मामला ठोस और संगठित तथ्यों पर आधारित है या फिर ऐसा टूटा-फूटा अभियोजन है जो अंततः गिरने के लिए ही बना है।
जस्टिस राहुल भारती ने यह टिप्पणी एक लंबे समय से लंबित आपराधिक मामले को रद्द करते हुए की। उन्होंने कहा कि इस तरह के कमजोर और तथ्यहीन मुकदमे ही आपराधिक न्याय प्रशासन की “घोंघा गति” के प्रमुख कारणों में से एक हैं, क्योंकि ये पहले से बोझिल अदालतों के डॉकेट पर अनावश्यक दबाव डालते हैं।
यह मामला सनी कश्यप नामक व्यक्ति की याचिका से जुड़ा था, जिसमें उन्होंने हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों का सहारा लेते हुए अपने खिलाफ दर्ज FIR और फाइनल पुलिस रिपोर्ट (चालान) को रद्द करने की मांग की थी। उनके खिलाफ रणबीर दंड संहिता की धाराओं 366, 376 और 343 के तहत अभियोजन प्रस्तावित किया गया था।
मामले की शुरुआत वर्ष 2015 में हुई, जब एक पिता ने हस्तलिखित शिकायत देकर आरोप लगाया कि उसकी 16–17 वर्षीय बेटी को याचिकाकर्ता ने अगवा कर यौन शोषण किया है। इसी आधार पर अपहरण का मामला दर्ज किया गया। हालांकि, कथित पीड़िता की बरामदगी के बावजूद जांच अधिकारी ने आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया, जिसे अदालत ने हैरान करने वाला बताया, क्योंकि आरोप संज्ञेय अपराध का था।
मेडिकल जांच में सामने आया कि युवती की उम्र 20 वर्ष थी और किसी हालिया यौन संबंध के संकेत नहीं मिले। यही तथ्य पीड़िता ने अपने न्यायिक बयान में भी दोहराया, जिससे FIR में पिता द्वारा दी गई उम्र संबंधी जानकारी गलत साबित हुई। अदालत ने माना कि उम्र का यह गलत उल्लेख FIR दर्ज करने के पीछे की मानसिकता को दर्शाता है, लेकिन जांच एजेंसी ने इस गंभीर विरोधाभास को नजरअंदाज कर दिया।
हाईकोर्ट ने यह भी रिकॉर्ड किया कि याचिकाकर्ता ने 2015 में ही बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल कर दावा किया कि पीड़िता बालिग है और दोनों ने अपनी मर्जी से विवाह किया। उस कार्यवाही में पीड़िता अदालत के समक्ष पेश हुई और उसने स्वेच्छा से विवाह की बात स्वीकार की थी। इसके बावजूद, पुलिस ने छह साल से अधिक समय बाद दाखिल चालान में न तो उस याचिका का जिक्र किया और न ही पीड़िता के बयानों का।
जस्टिस भारती ने जांच को रूढ़िवादी और पूर्वाग्रह से ग्रस्त करार देते हुए कहा कि स्पष्ट और आवश्यक तथ्यों को जानबूझकर छोड़ दिया गया, मानो अदालत से अपेक्षा की जा रही हो कि वह आंख मूंदकर पुलिस की कहानी स्वीकार कर ले। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि पिता द्वारा बेटी की उम्र गलत बताना सामान्य भूल नहीं हो सकती। फिर भी जांच अधिकारी ने इस पर कोई सवाल नहीं उठाया, जबकि जन्मतिथि से जुड़े दस्तावेज रिकॉर्ड पर मौजूद थे।
अदालत ने यह भी माना कि पूरे मामले का उद्देश्य अंतर-धार्मिक विवाह करने के कारण याचिकाकर्ता को प्रताड़ित करना प्रतीत होता है। ऐसे अभियोजन को जारी रखना न्याय के उच्च आदर्शों के विपरीत होगा।
इन सभी पहलुओं पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक अदालतों से अपेक्षा है कि वे चालान के स्तर से ही सक्रिय भूमिका निभाएं और यह सुनिश्चित करें कि निराधार मुकदमे आगे न बढ़ें।
अंततः जस्टिस राहुल भारती ने FIR, 25 जुलाई 2022 की फाइनल पुलिस रिपोर्ट और अनंतनाग सेशन कोर्ट में लंबित पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द की।

