प्रयोग से वक़्फ़ के रूप में मानी जाने वाली ज़ियारत को वक़्फ़ घोषित करने के लिए औपचारिक अधिसूचना की आवश्यकता नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Amir Ahmad
16 Jun 2025 1:22 PM IST

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि कोई ज़ियारत (दरगाह), दरगाह या अन्य धार्मिक संपत्ति जो जम्मू और कश्मीर वक़्फ़ अधिनियम, 1978 की धारा 3(ड)(i) के तहत प्रयोग से वक़्फ़ (Wakaf by user) के रूप में योग्य हो, उसे वक़्फ़ के रूप में मान्यता देने के लिए किसी औपचारिक घोषणा या अधिसूचना की आवश्यकता नहीं है।
जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस संजय परिहार की खंडपीठ ने ज़ियारत को लेकर जम्मू-कश्मीर वक़्फ़ बोर्ड द्वारा किए गए अधिग्रहण को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की। अदालत ने कहा कि प्रयोग आधारित वक़्फ़” कानून द्वारा संरक्षित हैं भले ही उनके लिए कोई राजपत्र अधिसूचना जारी न हुई हो।
पूरा मामला
यह मामला इंतजामिया कमेटी दरगाह और उसके प्रबंधक हाजी अब्दुल अहद अखून द्वारा दायर याचिका से उत्पन्न हुआ था। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर कर "ज़ियारत शरीफ सैयद खाज़िर साहिब (जिला गांदरबल में स्थित) के प्रबंधन के अधिग्रहण को चुनौती दी थी।
अखून ने दावा किया कि उन्होंने 5 कनाल ज़मीन (खसरा नंबर 323) पर ज़ियारतों का निर्माण किया, जिन्हें पहले उपेक्षित छोड़ दिया गया। उन्होंने इंटीज़ामिया कमेटी भी बनाई, जिसे स्थानीय लोगों का समर्थन मिला। 2015 में जब कुछ तीसरे पक्षों ने राजस्व विभाग से हस्तक्षेप करने की मांग की, तब विवाद उत्पन्न हुआ।
पहली याचिका को उस समय निरर्थक घोषित कर खारिज कर दिया गया, जब यह कहा गया कि जिस अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई की गई थी, वह अब निरस्त हो चुका है। लेकिन उसके बाद वक़्फ़ बोर्ड ने नए सिरे से 1985 के वक़्फ़ अधिनियम की धाराओं 67, 68 और 69 के तहत ज़ियारत का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया। इसे भी नई रिट याचिका में चुनौती दी गई, जिसे एकल पीठ ने खारिज कर दिया, जिसके विरुद्ध वर्तमान अपील दायर की गई।
मुख्य तर्क:
अपीलकर्ताओं ने दो प्रमुख आधारों पर वक़्फ़ बोर्ड की कार्रवाई को चुनौती दी:
1. जमीन निजी है और इसे वक़्फ़ के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया।
2. वक़्फ़ अधिनियम की धारा 6 के तहत सरकार के राजपत्र में कोई अधिसूचना प्रकाशित नहीं की गई।
कोर्ट का फैसला:
जस्टिस संजीव कुमार ने कहा कि जब किसी संपत्ति का धार्मिक उपयोग समुदाय द्वारा लगातार होता रहा हो तो वह “प्रयोग से वक़्फ़” के अंतर्गत आती है। उसे वक़्फ़ घोषित करने के लिए औपचारिक अधिसूचना आवश्यक नहीं होती।
कोर्ट ने अधिनियम की धारा 3(ड) का हवाला दिया, जिसमें वक़्फ़ की परिभाषा दी गई:
“वक़्फ़ वह स्थायी समर्पण है जो कोई मुस्लिम व्यक्ति किसी चल या अचल संपत्ति का धार्मिक, पुण्य या परोपकारी उद्देश्य के लिए करता है। इसमें मस्जिद, ईदगाह, दरगाह, खानकाह, मकबरा, कब्रिस्तान आदि 'प्रयोग से वक़्फ़' भी शामिल हैं।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 4 केवल वक़्फ़ की प्रारंभिक सर्वेक्षण की बात करती है, वक़्फ़ की रचना की नहीं। धारा 6 का उद्देश्य केवल वक़्फ़ संपत्तियों की सूची को राजपत्र में प्रकाशित करना है, न कि किसी संपत्ति को वक़्फ़ घोषित करना।
अंतिम निष्कर्ष:
कोर्ट ने वक़्फ़ बोर्ड की कार्रवाई को वैध ठहराया और अपील खारिज कर दी। साथ ही अपीलकर्ता को स्वतंत्र रूप से किसी भी वैध भू-संपत्ति अधिकार की रक्षा के लिए उचित मंच पर जाने की छूट भी दी। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस निर्णय से उनकी संपत्ति के मालिकाना दावे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
टाइटल: Intizamia Committee बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश

