ज्वेलर का ग्राहक को अपनी मर्ज़ी से सोना देना 'ट्रस्ट', चोरी इंश्योरेंस पॉलिसी के तहत कवर नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Shahadat
27 Dec 2025 9:34 AM IST

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाई कोर्ट ने कहा कि जहां इंश्योर्ड प्रॉपर्टी का कब्ज़ा भरोसे के आधार पर अपनी मर्ज़ी से ट्रांसफर किया जाता है तो ऐसा ट्रांसफर ट्रस्ट माना जाएगा। इससे होने वाले किसी भी बेईमानी से हुए नुकसान पर एक्सक्लूज़न क्लॉज़ लागू होंगे, भले ही यह काम कानूनी तौर पर चोरी क्यों न हो।
इस सिद्धांत को लागू करते हुए जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस संजय परिहार की डिवीजन बेंच ने जम्मू-कश्मीर स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन का आदेश रद्द कर दिया और ग्राहकों द्वारा सोने के गहनों की बेईमानी से अदला-बदली से जुड़े इंश्योरेंस क्लेम को खारिज करने के फैसले को यह फैसला सुनाते हुए सही ठहराया कि इंश्योरेंस कंपनी ज्वैलर्स कॉम्प्रिहेंसिव प्रोटेक्शन पॉलिसी के तहत ज़िम्मेदार नहीं है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद श्रीनगर के एक ज्वेलर, M/s हॉलीवुड ऑर्नामेंट्स द्वारा किए गए इंश्योरेंस क्लेम से शुरू हुआ, जिसने बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस कंपनी से ज्वैलर्स कॉम्प्रिहेंसिव प्रोटेक्शन पॉलिसी ली थी। पॉलिसी में दुकान के परिसर में रखे स्टॉक-इन-ट्रेड को कवर किया गया, जो तय शर्तों, नियमों और एक्सक्लूज़न के अधीन था।
2018 में दो विदेशी नागरिक ज्वेलर की दुकान में आए। शिकायतकर्ता के अनुसार, उन्होंने बेईमानी से दो सोने की चेन को नकली चेन से बदल दिया। ज्वेलर ने दावा किया कि इस घटना से ₹51.66 लाख का नुकसान हुआ, जिसमें लेबर और प्रॉफिट भी शामिल है। पुलिस में FIR दर्ज की गई और नुकसान की सूचना इंश्योरेंस कंपनी को दी गई, जिसने क्लेम का आकलन करने के लिए एक सर्वेयर नियुक्त किया।
हालांकि, कुछ समय बाद इंश्योरेंस कंपनी ने यह कहते हुए क्लेम खारिज कर दिया कि नुकसान पॉलिसी के तहत कवर नहीं है, क्योंकि कोई जबरदस्त एंट्री नहीं हुई, यह घटना धोखाधड़ी है, और चोरी नहीं, बल्कि सेंधमारी कवर है। इससे दुखी होकर ज्वेलर ने सेवा में कमी का आरोप लगाते हुए स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन से संपर्क किया।
कमीशन ने शिकायत यह मानते हुए स्वीकार की कि ग्राहकों को गहनों का कोई ट्रस्ट नहीं दिया गया और क्लेम को खारिज करना सेवा में कमी है। इंश्योरेंस कंपनी ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।
कोर्ट की टिप्पणियां:
कोर्ट द्वारा उठाया गया मुख्य मुद्दा यह था कि क्या गहनों का नुकसान, जो ग्राहकों को अपनी मर्ज़ी से सौंपे गए, जिन्होंने बाद में उन्हें नकली चेन से बदलकर हटा दिया, पॉलिसी के तहत कवर की गई चोरी है या जनरल एक्सक्लूज़न के क्लॉज़ 11(c) के तहत ट्रस्ट से होने वाला नुकसान है। बेंच ने ज्वैलर्स कॉम्प्रिहेंसिव प्रोटेक्शन पॉलिसी के तहत कवरेज के दायरे की जांच की, जिसमें दुकान में रखे स्टॉक का किसी भी कारण से होने वाले सीधे फिजिकल नुकसान या क्षति के सभी जोखिमों के खिलाफ बीमा किया गया, लेकिन कुछ अपवाद भी है।
कोर्ट ने कहा कि स्टॉक की चोरी आम तौर पर कवर होती है, लेकिन इस बात पर ज़ोर दिया कि क्लॉज़ 11(c) में साफ़ तौर पर उन नुकसानों को बाहर रखा गया, जो किसी ग्राहक द्वारा बीमाधारक द्वारा उन्हें सौंपी गई संपत्ति के संबंध में की गई चोरी या बेईमानी से होते हैं।
मामले के तथ्यों पर आते हुए कोर्ट ने पाया कि ग्राहक अनजान नहीं है। उन्होंने पहले सोने की चेन बनवाने का ऑर्डर दिया और उन्हें लेने के लिए दुकान पर आए। चेन उन्हें जांच और संतुष्टि के लिए सौंपी गईं, बिक्री की रकम लिए बिना ज्वैलर द्वारा उन पर किए गए भरोसे के आधार पर।
कोर्ट ने टिप्पणी की,
"सोने की चेन का प्रतिवादी से ग्राहकों को दिया जाना स्वेच्छा से और प्रतिवादी की सहमति से था... यह अलग बात है कि जिन ग्राहकों को सोने की चेन सौंपी गईं, उन्होंने बेईमानी से उन्हें नकली चेन से बदलकर अपने इस्तेमाल के लिए उनका गलत इस्तेमाल किया।"
कोर्ट ने माना कि गहनों का यह स्वेच्छा से सौंपना एक तरह से सौंपना ही है और बाद में किया गया बेईमानी का काम सौंपी गई चीज़ पर गलत कब्ज़ा करने जैसा है।
'चोरी' और 'सौंपने' की व्याख्या
यह मानते हुए कि यह काम इंडियन पैनल कोड (IPC) की धारा 378 और पॉलिसी की परिभाषा के तहत "चोरी" की परिभाषा में आता है, कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि असली सवाल यह था कि क्या चोरी उस ग्राहक ने की, जिसे प्रॉपर्टी सौंपी गई। इस पहलू पर बेंच ने निष्कर्ष निकाला कि यह मामला साफ़ तौर पर जनरल एक्सक्लूज़न के क्लॉज़ 11(c) के तहत आता है।
कोर्ट ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मेसर्स ईश्वर दास मदन लाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विस्तार से ज़िक्र किया, जिसमें सौंपने की अवधारणा को समझाया गया और यह साफ़ किया गया कि सौंपने का मतलब विश्वास और भरोसे के आधार पर कब्ज़े का ट्रांसफर है। हालाँकि, हाईकोर्ट ने इस मामले के तथ्यों को यह देखते हुए उस पिछले फैसले से अलग बताया कि ईश्वर दास मदन लाल मामले में चोरी एक अजनबी ने की थी, जबकि इस मामले में ग्राहक ज्वेलर को जानते थे और उन्हें स्वेच्छा से गहने सौंपे गए।
कोर्ट ने कहा,
"इसलिए यह बीमा की गई प्रॉपर्टी की चोरी का एक सीधा-सादा मामला है, जो उस ग्राहक ने की थी जिसे वह सौंपी गई। इसलिए यह एक्सक्लूज़न क्लॉज़ 11(c) के तहत आता है।"
यह मानते हुए कि नुकसान पॉलिसी के तहत पूरी तरह से बाहर है, डिवीजन बेंच ने फैसला सुनाया कि बीमा कंपनी का दावा खारिज करना सही है। कोर्ट ने अपील में दम पाया, कंज्यूमर कमीशन का आदेश रद्द कर दिया और बीमा कंपनी को ज्वेलर को हुए नुकसान की भरपाई की ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दिया।
Case Title: Bajaj Allianz General Insurance Company V/s M/s Hollywood ornaments at Hari Singh High Street, Sgr.

