जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने 25 पुस्तकों की ज़ब्ती पर अंतरिम राहत देने से किया इनकार

Amir Ahmad

13 Oct 2025 11:58 AM IST

  • जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने 25 पुस्तकों की ज़ब्ती पर अंतरिम राहत देने से किया इनकार

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने सोमवार (13 अक्टूबर) को उन याचिकाओं में अंतरिम राहत देने से इनकार किया, जिनमें कथित तौर पर अलगाववाद को बढ़ावा देने के आरोप में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 98 के तहत 25 पुस्तकों की ज़ब्ती को चुनौती दी गई थी।

    चीफ जस्टिस अरुण पल्ली, जस्टिस रजनेश ओसवाल और जस्टिस शहज़ाद अज़ीम की तीन जजों की विशेष पीठ ने अंतरिम राहत देने से इनकार किया। हालांकि पीठ ने याचिकाओं पर नोटिस जारी किया।

    पीठ ने इस मुद्दे पर दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर नोटिस जारी करने से इनकार करते हुए कहा कि यह जनहित में नहीं था और इस मुद्दे को 90% लोग नहीं समझेंगे।

    यह याचिकाएँ केंद्र शासित प्रदेश सरकार द्वारा 5 अगस्त को जारी की गई अधिसूचना को चुनौती देती हैं, जिसमें कश्मीर के राजनीतिक और सामाजिक इतिहास पर लिखी गई 25 पुस्तकों को ज़ब्त करने की घोषणा की गई। आरोप है कि ये पुस्तकें अलगाववाद का प्रचार कर रही हैं।

    भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 98 राज्य सरकार को कुछ प्रकाशनों को ज़ब्त करने और उनकी तलाशी वारंट जारी करने की शक्ति देती है।

    सरकारी राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना में 25 सूचीबद्ध पुस्तकों को झूठे नैरेटिव और अलगाववाद को बढ़ावा देने के आरोप में ज़ब्त घोषित किया गया। एयर वाइस मार्शल (सेवानिवृत्त) कपिल काक, लेखक डॉ. सुमंत्र बोस, शांति विद्वान डॉ. राधा कुमार और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला द्वारा BNSS की धारा 99 के तहत यह याचिका दायर की गई।

    याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि ज़ब्ती का आदेश मनमाना, व्यापक और अविवेकपूर्ण है, जो धारा 98 BNSS के तहत कानूनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता।

    उन्होंने जोर देकर कहा कि अधिसूचना में यह बताने के लिए पुस्तकों के किसी विशिष्ट भाग की पहचान नहीं की गई कि वे किस तरह कथित तौर पर अलगाववादी नैरेटिव का प्रचार कर रहे हैं और न ही ज़ब्ती के लिए कोई तर्कसंगत आधार प्रदान किया गया।

    याचिका में कहा गया कि आदेश केवल वैधानिक भाषा को दोहराता है लेकिन पुस्तकों के ऐसे किसी तथ्य, अंश या प्रतिनिधित्व को इंगित नहीं करता है, जो कथित तौर पर कानून का उल्लंघन करते हों। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का हवाला दिया गया, जिनमें कहा गया कि अंतर्निहित आधारों का खुलासा किए बिना केवल वैधानिक प्रावधानों को उद्धृत करना तर्कसंगत आदेश की आवश्यकता को पूरा नहीं करता।

    याचिका में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि सरकार की 'राय' और उस राय को बनाने के आधारों' के बीच अंतर है और बाद वाला आदेश में ही दिखाई देना चाहिए।

    विवादित अधिसूचना में कहा गया है कि झूठे नैरेटिव और अलगाववादी साहित्य का व्यवस्थित प्रसार आतंकवाद का महिमामंडन, सुरक्षा बलों को बदनाम करने ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करने और अलगाववाद को बढ़ावा देकर जम्मू-कश्मीर में युवाओं के कट्टरपंथ में योगदान दे रहा है।

    अधिसूचना ने सूचीबद्ध पुस्तकों को धारा 98 BNSS के तहत ज़ब्त घोषित किया है आरोप है कि वे अलगाववाद को उत्तेजित करती हैं और भारत की संप्रभुता तथा अखंडता को खतरे में डालती हैं। इस प्रकार ये भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 152, 196, और 197 के प्रावधानों को आकर्षित करती हैं।

    ज़ब्त की गई 25 पुस्तकों की सूची में सुमंत्र बोस, ए.जी. नूरानी, अरुंधति रॉय, सीमा काज़ी, हफ्सा कंजवाल, और विक्टोरिया स्कोफील्ड जैसे विद्वानों और लेखकों की कृतियां शामिल हैं, जिनमें से कई ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस और रूटलेज जैसे प्रमुख शैक्षणिक प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं।

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