[S. 27 Evidence Act] तलाशी और घेराबंदी अभियान के दौरान आरोपियों से हथियार और गोला-बारूद बरामद करते समय BSF पुलिस अधिकारी के रूप में कार्य नहीं किया: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट

Amir Ahmad

16 March 2024 10:31 AM GMT

  • [S. 27 Evidence Act] तलाशी और घेराबंदी अभियान के दौरान आरोपियों से हथियार और गोला-बारूद बरामद करते समय BSF पुलिस अधिकारी के रूप में कार्य नहीं किया: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया कि तलाशी और घेराबंदी अभियान के दौरान सीमा सुरक्षा बल (BSF) द्वारा आरोपी के पास से हथियार और गोला-बारूद की बरामदगी भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 का उल्लंघन नहीं करती।

    साक्ष्य अधिनियम के तहत पुलिस अधिकारी के दायरे और सशस्त्र बल (जम्मू और कश्मीर) विशेष अधिकार अधिनियम 1990 के तहत BSF की शक्तियों पर इसके आवेदन को स्पष्ट करते हुए जस्टिस संजीव कुमार ने कहा,

    “ऐसी स्थिति में जब संघ का सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम 1990 (Special Power Act 1990) के तहत अशांत क्षेत्र के संबंध में शक्ति का प्रयोग करते हुए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करता है, या उससे कोई हथियार और गोला-बारूद बरामद करता है तो वह सख्ती से पुलिस अधिकारी के रूप में कार्य नहीं करता है। इसलिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 एक शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।”

    मामले की पृष्ठभूमि:

    मो. जमील को निचली अदालत ने शस्त्र अधिनियम के तहत हथियार और गोला-बारूद रखने का दोषी ठहराया। अभियोजन पक्ष का मामला कथित तौर पर जमील के कहने पर ऑपरेशन के दौरान BSF द्वारा इन हथियारों की बरामदगी पर आधारित है।

    जमील ने बरामदगी के दौरान स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति ऑपरेशन के आसपास की संदिग्ध परिस्थितियों और गिरफ्तारी के दस्तावेजीकरण में देरी का तर्क देते हुए दोषसिद्धि की अपील की।

    जमील के वकील ने आगे तर्क दिया कि अपीलकर्ता के कहने पर और अपीलकर्ता के कब्जे से कथित तौर पर की गई हथियारों की बरामदगी साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के संदर्भ में नहीं है, इसलिए कानून में उल्लंघन है।

    दूसरी ओर उत्तरदाताओं ने तर्क दिया कि अशांत क्षेत्र में विशेष अधिकार अधिनियम के तहत कार्य करने वाला BSF साक्ष्य अधिनियम के तहत पुलिस अधिकारी नहीं है। उनकी पुनर्प्राप्ति शक्तियां अलग-अलग हैं और धारा 27 के दायरे में नहीं आती हैं।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    साक्ष्य अधिनियम के तहत पुलिस अधिकारी के अर्थ का विश्लेषण करते हुए जस्टिस कुमार ने कहा कि यह शब्द पुलिस स्टेशन के अधिकारियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत समान जांच शक्तियों के साथ निहित अन्य लोगों तक भी विस्तारित हो सकता है।

    विशेष शक्ति अधिनियम के तहत BSF की शक्तियां अलग हैं, अदालत ने कहा कि ये शक्तियां अशांत क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने तक सीमित हैं और इसमें अपराधों की जांच या अभियोजन शामिल नहीं है।

    अदालत ने दर्ज किया,

    “गिरफ्तार किए गए व्यक्ति और जब्त किए गए हथियार और गोला-बारूद यदि कोई हो को सशस्त्र बल द्वारा एफआईआर दर्ज करने और जांच करने के लिए संबंधित पुलिस को सौंपना आवश्यक है। इन परिस्थितियों में यह सुरक्षित रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अपीलकर्ता से हथियारों और गोला-बारूद की बरामदगी करते समय BSF के कमांडेंट की अध्यक्षता वाली स्पेशल ऑपरेशन पार्टी ने पुलिस अधिकारी के रूप में कार्य नहीं किया, जो साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 की शरारत को आकर्षित करता है।

    अदालत ने कहा कि बरामदगी करने और फिर उन्हें पुलिस को सौंपने में BSF की सीमित भूमिका पर प्रकाश डालते हुए पीठ ने कहा कि वे सीआरपीसी के तहत जांच अधिकारी के रूप में कार्य नहीं कर रहे हैं। इसलिए साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 जो पुलिस अधिकारियों के सामने किए गए बयानों को प्रतिबंधित करती है, इस मामले में लागू नहीं होती है। इसलिए BSF द्वारा जमील से हथियारों की बरामदगी कानूनी है और अभियोजन द्वारा इस पर भरोसा किया जा सकता है।

    इन निष्कर्षों के आलोक में जमील की अपील खारिज कर दी गई और ट्रायल कोर्ट की सजा को बरकरार रखा गया।

    केस टाइटल- मो. जमील बनाम जम्मू और कश्मीर राज्य।

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