[DV Act] घरेलू हिंसा के मामलों में गिरफ्तारी वारंट अनुचित, कार्यवाही सिविल प्रकृति की: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Amir Ahmad
24 July 2024 2:54 PM IST
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा के मामलों में गिरफ्तारी वारंट जैसी बलपूर्वक प्रक्रियाओं के उपयोग की स्पष्ट रूप से निंदा की।
जस्टिस संजय धर की पीठ ने ऐसे वारंट जारी करने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम (DV Act) के तहत कार्यवाही स्वाभाविक रूप से सिविल प्रकृति की है, न कि आपराधिक की।
यह आदेश याचिकाकर्ता कामरान खान और अन्य द्वारा बिलकीस खानम के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ताओं ने प्रतिवादी द्वारा घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) की धारा 12 के तहत दायर याचिका और उसके बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, बारामुल्ला द्वारा उनके खिलाफ प्रक्रिया जारी करने के आदेश को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, कामरान खान ने 2021 में बिलकीस खानम से शादी की थी और इस शादी से कोई संतान पैदा नहीं हुई।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि प्रतिवादी ने झूठे आरोपों के आधार पर डी.वी. अधिनियम याचिका दायर की। उन्होंने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने DV Act की कार्यवाही की दीवानी प्रकृति के बावजूद बिना उचित विचार किए उनके खिलाफ समन और यहां तक कि गिरफ्तारी के वारंट भी जारी किए।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि विवाद प्रतिवादी के क्रूर व्यवहार और बदला लेने के लिए कामरान खान के पूरे परिवार को तुच्छ मामलों में शामिल करने की उसकी प्रवृत्ति के कारण था।
अदालत की टिप्पणियां
मामले का फैसला सुनाते हुए जस्टिस धर ने जोर देकर कहा कि DV Act की धारा 12 के तहत कार्यवाही दीवानी है, आपराधिक नहीं। इसलिए मजिस्ट्रेट को प्रतिवादियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए गिरफ्तारी वारंट जैसे बलपूर्वक उपायों का उपयोग नहीं करना चाहिए ।
न्यायालय ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता समन का जवाब देने में विफल रहे तो ट्रायल कोर्ट के लिए उचित कार्यवाही गिरफ्तारी वारंट जारी करने के बजाय एकपक्षीय कार्यवाही करना था।
यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित हुए और याचिका पर अपना जवाब दाखिल किया, अदालत ने टिप्पणी की,
“याचिकाकर्ता के खिलाफ मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किए गए गिरफ्तारी वारंट लागू नहीं हैं। इसलिए इस संबंध में ट्रायल मजिस्ट्रेट को कोई निर्देश पारित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।”
फ्रिवोलिटी के आरोपों को संबोधित करते हुए न्यायालय ने बताया कि ट्रायल मजिस्ट्रेट याचिकाकर्ताओं के इस दावे पर विचार कर सकते हैं कि याचिका प्रतिशोधात्मक है। उनके जवाब की समीक्षा करते समय झूठे आरोपों पर आधारित है। पीठ ने कहा कि यदि जवाब को पर्याप्त माना जाता है तो मजिस्ट्रेट के पास आदेश वापस लेने और याचिकाओं को खारिज करने का अधिकार है।
न्यायालय ने कहा,
“इस मामले में मजिस्ट्रेट के पास याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर जवाब पर विचार करने के बाद उचित आदेश पारित करने का अधिकार होगा और यदि याचिकाकर्ताओं द्वारा कार्यवाही समाप्त करने के लिए आवेदन किया जाता है, तो उनके पास कार्यवाही समाप्त करने के आवेदन पर विचार करने का भी अधिकार होगा।”
याचिकाकर्ताओं को कार्यवाही समाप्त करने के लिए आवेदन के साथ ट्रायल मजिस्ट्रेट से संपर्क करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हुए अदालत ने ट्रायल मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वे पक्षों की दलीलों पर विचार करते हुए ऐसे आवेदनों को शीघ्रता से निपटाएं।
केस टाइटल- कामरान खान और अन्य बनाम बिलकीस खानम