S.311 CrPC | कार्यवाही के किसी भी चरण में किसी भी अदालत को गवाहों को बुलाने की अनुमति देने वाली धारा के व्यापक शब्दों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट
Amir Ahmad
16 May 2024 7:19 AM GMT
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 311 के तहत एक अदालत के पास न्यायपूर्ण निर्णय सुनिश्चित करने के लिए व्यापक विवेकाधिकार को दोहराया।
जस्टिस जावेद इकबाल वानी द्वारा पारित एक फैसले में अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि धारा के व्यापक शब्दों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए, जो कार्यवाही के किसी भी चरण में किसी भी अदालत को गवाहों को बुलाने की अनुमति देता है।
ये टिप्पणियां याचिकाकर्ता फारूक अहमद वानी से जुड़ी याचिका में आईं जिन पर प्रतिवादी तारिक अहमद खान के पक्ष में चेक बाउंस करने का आरोप है।
अनंतनाग के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष सुनवाई के दौरान वानी के वकील ने बचाव पक्ष में कोई सबूत पेश नहीं करने का विकल्प चुना।
बाद में वानी ने धारा 311 सीआरपीसी के तहत एक आवेदन दायर किया। इसमें गवाहों को बुलाने की अनुमति मांगी गई, इससे यह साबित हो सके कि उन्होंने अदालत के बाहर चेक की राशि का भुगतान किया था।
ट्रायल कोर्ट ने वानी के वकील के पहले के फैसले और मामले में बीत चुके समय का हवाला देते हुए आवेदन को खारिज कर दिया। पुनर्विचार अदालत ने इस फैसले को बरकरार रखा।
वानी ने इन आदेशों को हाइकोर्ट में चुनौती दी। उनके वकील ने तर्क दिया कि उन्होंने बचाव पक्ष को पेश न करने के शुरुआती फैसले को कभी अधिकृत नहीं किया।
इस बात पर जोर देते हुए कि धारा 311 का उद्देश्य सत्य को उजागर करना तथा सभी प्रासंगिक तथ्यों पर विचार करके न्यायसंगत निर्णय सुनिश्चित करना है।
जस्टिस वानी ने कहा,
“धारा में किसी भी न्यायालय तथा किसी भी स्तर पर शब्दों का प्रयोग स्पष्ट रूप से बताता है कि धारा को यथासंभव व्यापक शब्दों में व्यक्त किया गया है तथा यह किसी भी तरह से न्यायालय के विवेक को सीमित या सीमित नहीं करता।”
हालांकि न्यायालय ने यह भी कहा,
“उस व्यापक शक्ति के लिए ऐसी शक्ति के प्रयोग में तदनुरूप सावधानी तथा सतर्कता की आवश्यकता होती है तथा इस बात की भी आवश्यकता होती है कि इसका प्रयोग न्यायिक रूप से तथा न्याय के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए किया जाए, जिससे साक्ष्य में कमियों को पूरा करने के लिए उक्त शक्ति का प्रयोग न किया जाए।”
याचिकाकर्ता के इस कथन को स्वीकार करते हुए कि उसने कभी भी बचाव प्रस्तुत न करने के प्रारंभिक निर्णय को अधिकृत नहीं किया, जस्टिस ने कहा कि याचिकाकर्ता को बिना उचित निर्देश के अपने वकील द्वारा दिए गए बयान के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
इस अन्य विवाद से निपटते हुए कि क्या आरोपी याचिकाकर्ता के आवेदन को मामले की उम्र या उस पर सुनवाई में लगे समय के आधार पर ट्रायल कोर्ट द्वारा खारिज किया जा सकता था।
पीठ ने मंजू देवी बनाम राजस्थान राज्य और अन्य 2019 का हवाला दिया और दोहराया,
“जब किसी महत्वपूर्ण गवाह की जांच के लिए प्रार्थना की जाती है तो मामले की उम्रअपने आप में मामले का निर्णायक नहीं हो सकती।”
इन टिप्पणियों के आलोक में अदालत ने वानी की याचिका को स्वीकार कर लिया। विवादित आदेशों को खारिज कर दिया गया, जिससे उन्हें अपने आवेदन में उल्लिखित गवाहों को अगली सुनवाई की तारीख या अदालत द्वारा तय की गई किसी बाद की तारीख पर ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश करने की अनुमति मिल गई।
केस टाइटल- फारूक अहमद वानी बनाम तारिक अहमद खान