[S.151 CPC] न्यायालय की न्याय करने की अंतर्निहित शक्ति गवाहों को वापस बुलाने, स्पष्टीकरण प्राप्त करने की उसकी शक्ति से प्रभावित नहीं होती: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट

Amir Ahmad

13 April 2024 6:36 AM GMT

  • [S.151 CPC] न्यायालय की न्याय करने की अंतर्निहित शक्ति गवाहों को वापस बुलाने, स्पष्टीकरण प्राप्त करने की उसकी शक्ति से प्रभावित नहीं होती: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट

    न्यायपालिका प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 151 के तहत न्यायालय की निहित शक्ति के महत्व को दोहराते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने माना कि न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति संहिता के आदेश 18 नियम 17 के तहत न्यायालय को किसी भी गवाह को वापस बुलाने और स्पष्टीकरण प्राप्त करने की स्पष्ट शक्ति से प्रभावित नहीं होती है।

    राम रति बनाम मांगे राम (मृत) कानूनी प्रतिनिधियों और अन्य के माध्यम से का हवाला देते हुए जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने स्पष्ट किया,

    “आदेश 18 नियम 17 के तहत कठोरता न्याय के उद्देश्यों के लिए आवश्यक आदेश पारित करने की न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति को प्रभावित नहीं करेगी, जिससे आगे की जांच या क्रॉस एक्जामिनेशन के उद्देश्य से साक्ष्य को फिर से खोला जा सके या नए साक्ष्य पेश किए जा सकें, जिससे न्यायालय को मुकदमे के किसी भी चरण में यहां तक ​​कि साक्ष्य बंद होने के बाद भी शक्ति का प्रयोग करने का अधिकार मिल सके।”

    यह मामला कर्नल (रिटायर्ड) विजय सिंह द्वारा कर्नल (रिटायर्ड) दलबीर सिंह (अब मृत) के खिलाफ भूमि पर कब्जे के लिए निषेधाज्ञा के लिए दायर किया गया मुकदमा है। साक्ष्यों के आदान-प्रदान के शुरुआती दौर के बाद कर्नल दलबीर सिंह के कानूनी वारिसों, विनीता जामवाल और पूर्णिमा पठानिया को रिकॉर्ड पर लाया गया। ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को नए गवाहों के साथ नए हलफनामे दाखिल करने की अनुमति दी।

    इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने गवाह पेश किए और अपनी चीफ एक्जामिनेशन पूरा किया। हालांकि, वादी कर्नल विजय सिंह ने नए गवाहों को अनुमति देने के आदेश को चुनौती देने वाली हाईकोर्ट में लंबित याचिका के कारण उनसे क्रॉस एग्जामिनेशन नहीं की।

    हाइकोर्ट द्वारा वादी की याचिका खारिज किए जाने के बाद उन्होंने प्रतिवादियों के गवाहों से क्रॉस एग्जामिनेशन करने की अनुमति मांगने के लिए निचली अदालत में आवेदन दायर किया। निचली अदालत ने आवेदन को अनुमति दे दी, जिसके कारण याचिकाकर्ताओं ने इस आदेश को हाइकोर्ट में चुनौती दी।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि निचली अदालत ने क्रॉस एग्जामिनेशन की अनुमति देकर गलती की। उन्होंने दावा किया कि यह सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 18 नियम 17 और संबंधित केस कानून का उल्लंघन है।

    जस्टिस वानी ने प्रतिद्वंद्वी दलीलों पर सावधानीपूर्वक विचार करते हुए राम रति मामले का हवाला दिया, जो आदेश 18 नियम 17 और सीपीसी की धारा 151 के तहत निहित शक्तियों के बीच अंतर को स्पष्ट करता है।

    जहां आदेश 18 नियम 17 अदालत को स्पष्टीकरण के लिए गवाहों को वापस बुलाने की अनुमति देता है, वहीं धारा 151 न्याय सुनिश्चित करने के लिए व्यापक निहित शक्तियां प्रदान करती है। न्यायालय ने कहा कि साक्ष्य के बंद होने के बाद भी आगे की जांच या क्रॉस एक्जामिनेशन के लिए साक्ष्य को फिर से खोलने के लिए अंतर्निहित शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है।

    जस्टिस वानी ने कहा कि क्रॉस एक्जामिनेशन में वादी की शुरुआती देरी नए गवाहों को चुनौती देने वाली उनकी याचिका के लंबित रहने के कारण हुई। इस बात पर जोर दिया कि उस अवधि के दौरान कार्यवाही याचिका के परिणाम के अधीन है।

    जस्टिस वानी ने दर्ज किया,

    "यह देखते हुए कि वादी अपने साक्ष्य में अंतराल को भरने का प्रयास नहीं कर रहे है, बल्कि क्रॉस एग्जामिनेशन करने के अपने वैध अधिकार का प्रयोग करने की कोशिश कर रहे हैं, इन परिस्थितियों में वादी/प्रतिवादी 1 के बारे में कभी नहीं कहा जा सकता कि उसने प्रतिवादियों-याचिकाकर्ताओं के गवाहों की क्रॉस एक्जामिनेशन की मांग करते समय खामियों को भरने का इरादा किया, क्योंकि उक्त गवाहों से कभी क्रॉस एक्जामिनेशन नहीं की गई। इस प्रकार, वादी-प्रतिवादी 1 को कानून के अनुसार, उक्त गवाहों की क्रॉस एक्जामिनेशन करने के अपने वैधानिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।”

    उक्त टिप्पणियों के अनुरूप न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि क्रॉस एग्जामिनेशन की अनुमति देने का ट्रायल कोर्ट का निर्णय न्याय के पक्ष में है और किसी भी कानूनी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है, इसलिए याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल- विनीता जामवाल बनाम कर्नल (सेवानिवृत्त) विजय सिंह

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