पहली सुनवाई से ही निर्णय लेने में आसानी के लिए जमानत आवेदन दाखिल करने के तुरंत बाद केस डायरी उपलब्ध कराई जानी चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Amir Ahmad

3 July 2024 7:15 AM GMT

  • पहली सुनवाई से ही निर्णय लेने में आसानी के लिए जमानत आवेदन दाखिल करने के तुरंत बाद केस डायरी उपलब्ध कराई जानी चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने सोमवार को इस बात पर जोर दिया कि पहली सुनवाई पर ही निर्णय लेने में आसानी के लिए जमानत आवेदन दाखिल करने के तुरंत बाद केस डायरी उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

    यह देखते हुए कि जमानत आवेदनों पर आदर्श रूप से इस न्यायालय द्वारा सुनवाई की पहली तारीख को ही निर्णय लिया जाना चाहिए, जस्टिस अतुल श्रीधरन की पीठ ने रेखांकित किया,

    “यह तभी संभव है जब केस डायरी को सुनवाई की पहली तारीख को ही न्यायालय द्वारा जांच के लिए उपलब्ध कराया जाए।”

    इस विषय पर एडवोकेट जनरल कार्यालय को सामान्य निर्देश देते हुए न्यायालय ने कहा कि जब भी इस न्यायालय के समक्ष जमानत आवेदन दायर किया जाता है और उसकी कॉपी एडवोकेट जनरल कार्यालय को प्राप्त होती है तो मामले में प्रासंगिक उचित केस डायरी को संबंधित पुलिस थाने से तत्काल मंगाया जाना चाहिए।

    जस्टिस श्रीधरन ने आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार के आरोपी गौरव सयाल द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश पारित किए।

    इस मामले में एफआईआर दाखिल करने (कथित घटना के छह महीने बाद) और जमानत आवेदन की सुनवाई (दिसंबर 2022 से लंबित) दोनों में देरी को उजागर किया गया।

    जस्टिस श्रीधरन ने राज्य के लिए प्रत्येक जमानत आवेदन में लिखित आपत्तियां दर्ज करने की कानूनी आवश्यकता की कमी की ओर इशारा किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि जमानत के फैसले केवल केस डायरी में मौजूद सामग्री पर आधारित होने चाहिए।

    पीठ ने रेखांकित किया,

    “जमानत आवेदन में राज्य को लिखित आपत्तियां दर्ज करने का अवसर देने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि ऐसा कानून के तहत अनिवार्य नहीं है। इसकी आवश्यकता केवल उन मामलों में हो सकती है जहां किसी विशेष कानून में इसकी विशेष रूप से आवश्यकता होती है। जमानत आवेदनों पर केस डायरी में मौजूद सामग्री के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए। यदि यही प्रक्रिया अपनाई जाती है, तो उच्च न्यायालय द्वारा जमानत आवेदनों पर निर्णय लेने में कोई देरी नहीं होनी चाहिए।”

    इस विशिष्ट मामले में न्यायालय ने लंबी हिरासत अवधि (1.5 वर्ष से अधिक) विलंबित एफआईआर और अनिर्णायक एमएलसी रिपोर्ट पर ध्यान दिया। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए जमानत कुछ शर्तों के साथ दी गई, जिसमें बांड और निर्दिष्ट पुलिस स्टेशन में नियमित रूप से उपस्थित होना शामिल है।

    केस टाइटल- गोरव सयाल बनाम यूटी ऑफ जेएंडके

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