आंतरिक शिकायत समिति POSH Act के तहत तीन महीने की परिसीमा अवधि से परे दायर शिकायतों पर विचार नहीं कर सकती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Shahadat

16 Dec 2024 3:00 AM

  • आंतरिक शिकायत समिति POSH Act के तहत तीन महीने की परिसीमा अवधि से परे दायर शिकायतों पर विचार नहीं कर सकती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) के तहत प्राधिकरण के पास अधिनियम की धारा 9(1) के दूसरे प्रावधान के तहत तीन महीने की क्षमा योग्य सीमा अवधि से परे दायर शिकायतों पर कार्रवाई करने और निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।

    इन आधारों पर याचिकाकर्ता मोहम्मद अल्ताफ भट के खिलाफ आंतरिक शिकायत समिति (ICC) द्वारा शुरू की गई कार्यवाही रद्द करते हुए जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने के. रीजा परमबथ नालुथारा बनाम प्रदीप टी.सी. और अन्य 2017 एससीसी ऑनलाइन केर 10625 में रिपोर्ट का हवाला दिया और पाया गया,

    “2013 के अधिनियम के तहत प्राधिकरण के पास धारा 9(1) के प्रावधान 2 के तहत प्रदान की गई 3 महीने की क्षमा योग्य परिसीमा अवधि से परे उसके समक्ष दायर की गई शिकायत पर कार्रवाई करने और उस पर आदेश पारित करने का कोई अधिकार नहीं था।”

    आयकर विभाग के एक सीनियर अधिकारी भट पर प्रतिवादी नंबर 4, जो उनके पर्यवेक्षण के तहत एक कर सहायक है, ने उत्पीड़न का आरोप लगाया। आरोप 25 अप्रैल, 2016 की कथित घटना से उत्पन्न हुए। प्रतिवादी की 2016 में दायर की गई शिकायत को सबूतों के अभाव में वापस ले लिया गया। इसके बावजूद, प्रतिवादी ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, श्रीनगर के समक्ष शिकायत दर्ज कराई, जिसके कारण धारा 354 आरपीसी के तहत FIR दर्ज की गई। सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता को सितंबर 2018 में बरी कर दिया गया।

    इसके बाद अक्टूबर, 2017 में प्रतिवादी ने उसी कथित घटना के संबंध में आईसीसी के समक्ष एक और शिकायत दर्ज कराई। आईसीसी ने फरवरी 2021 में एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ ₹1 लाख का जुर्माना लगाने और कदाचार की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश की गई।

    हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही की आलोचना करते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ICC की कार्यवाही कानूनी रूप से अस्थिर थी, क्योंकि शिकायत POSH Act की धारा 9(1) के तहत निर्धारित तीन महीने की सीमा अवधि से परे दायर की गई। याचिकाकर्ता ने इस बात पर प्रकाश डाला कि देरी को माफ करने के लिए ICC द्वारा कोई कारण दर्ज नहीं किया गया, जिससे उसकी कार्रवाई अधिकार क्षेत्र से बाहर हो गई।

    इसके अलावा यह तर्क दिया गया कि ICC ने संबंधित आपराधिक कार्यवाही में याचिकाकर्ता को बरी किए जाने के फैसले की अवहेलना की और प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए जांच की गई।

    इसके विपरीत प्रतिवादियों ने कहा कि उत्पीड़न के आरोप जारी थे और शिकायत दर्ज करने में देरी को उचित ठहराया। उन्होंने आगे तर्क दिया कि ICC ने POSH Act के अनुसार पूरी जांच की और दोनों पक्षों को अपने मामले पेश करने के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान किए।

    जस्टिस वानी ने वैधानिक ढांचे और अभिलेखों की जांच करने के बाद POSH Actकी धारा 9(1) की अनिवार्य प्रकृति को रेखांकित किया, जो कथित घटना के तीन महीने के भीतर शिकायत दर्ज करने की अनुमति देता है। न्यायालय ने रेखांकित किया कि सीमा अवधि को केवल तभी तीन महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है, जब दर्ज कारणों से उचित ठहराया जाए।

    न्यायालय ने नोट किया कि कथित घटना 25 अप्रैल, 2016 को हुई, लेकिन शिकायत 16 अक्टूबर, 2017 को अनुमेय अवधि से बहुत आगे दर्ज की गई। न्यायालय ने कहा कि इस देरी को माफ करने के कारणों को दर्ज करने में ICC की विफलता ने उसके कार्यों को अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया और स्पष्ट किया कि POSH Act के तहत प्राधिकरण के पास कानून द्वारा अनिवार्य तीन महीने की क्षमा योग्य सीमा अवधि से परे दायर की गई शिकायत पर कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं है।

    अदालत ने टिप्पणी की,

    "इन परिस्थितियों में प्रतिवादी 4 द्वारा 2013 के अधिनियम के तहत 16 अक्टूबर 2017 को याचिकाकर्ता के खिलाफ 25 अप्रैल 2016 की कथित घटना के संबंध में दायर की गई शिकायत पर निर्विवाद रूप से न तो विचार किया जा सकता था और न ही ICC द्वारा इसका संज्ञान लिया जा सकता था और उसके बाद निपटा जा सकता था।"

    ICC की सिफारिशों को प्रक्रियात्मक रूप से अमान्य करार देते हुए अदालत ने शिकायत खारिज की और कहा कि जांच के दौरान याचिकाकर्ता को प्राकृतिक न्याय से वंचित किया गया।

    केस टाइटल: मोहम्मद अल्ताफ भट बनाम प्रिंसिपल चीफ ऑफ कमिश्नर और अन्य।

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