'गाड़ियों का मालिक होना ड्रग ट्रैफिकिंग से इनकम का नतीजा नहीं, एकतरफ़ा जानकारी': हाईकोर्ट हाईकोर्ट ने प्रिवेंटिव डिटेंशन रद्द की
Shahadat
22 Nov 2025 10:08 AM IST

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रिवेंटिव डिटेंशन के मामले में कहा कि ड्रग ट्रैफिकिंग से गैर-कानूनी इनकम का अंदाज़ा लगाने के लिए पिटीशनर के पास दो गाड़ियों का मालिक होने पर राज्य का भरोसा एकतरफ़ा और गलत जानकारी पर आधारित था।
चीफ जस्टिस जी.एस. संधावालिया और जस्टिस जिया लाल भारद्वाज की डिवीजन बेंच ने कहा:
“दोनों गाड़ियों को महिंद्रा फाइनेंस से फाइनेंस किया गया। इसलिए यह इंप्रेशन दिया गया कि पिटीशनर गैर-कानूनी कामों में शामिल था। एकतरफ़ा जानकारी पर आधारित लगता है।”
कोर्ट ने रिकॉर्ड किया कि पिटीशनर के पास दोनों गाड़ियों को महिंद्रा फाइनेंस के ज़रिए सही तरीके से फाइनेंस किया गया। इसलिए राज्य का यह अंदाज़ा कि वह गैर-कानूनी कामों से काफी पैसा कमा रहा था, टिक नहीं पाता।
बेंच ने आगे कहा कि इस गलत अंदाज़े ने एडवाइजरी बोर्ड की सिफारिश पर भी असर डाला, जो प्रिवेंटिव डिटेंशन ऑर्डर का आधार बनी। इसलिए कोर्ट ने हिरासत का समर्थन करने वाली राज्य की दलील को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता उवेद खान ने एडिशनल चीफ सेक्रेटरी द्वारा जारी अपने हिरासत आदेश को चुनौती दी, जिसमें उन्हें नारकोटिक्स ड्रग्स और साइकोट्रोपिक सब्सटेंस में अवैध तस्करी की रोकथाम एक्ट, 1988 की धारा 3(1) के तहत तीन महीने के लिए हिरासत में लिया गया था।
उन्हें जून 2025 में हिरासत में लिया गया, मुख्य रूप से उनके खिलाफ दर्ज पांच क्रिमिनल केस के आधार पर।
राज्य ने तर्क दिया कि ड्रग की तस्करी को रोकने और याचिकाकर्ता के उसके क्रिमिनल नेटवर्क से लिंक खत्म करने के लिए प्रिवेंटिव हिरासत ज़रूरी थी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि हिरासत आदेश पास करने से पहले उन्हें रिप्रेजेंटेशन फाइल करने का मौका नहीं दिया गया, जो भारत के संविधान के आर्टिकल 22(5) के तहत ज़रूरी है।
कोर्ट ने कहा कि पिछले मामलों में केवल थोड़ी-बहुत इंटरमीडिएट मात्रा ही बरामद हुई। याचिकाकर्ता की सज़ा सिर्फ़ तीन महीने और नौ दिन के लिए थी। कोर्ट ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि याचिकाकर्ता को रिप्रेजेंटेशन फाइल करने का मौका नहीं दिया गया, जो आर्टिकल 22(5) के तहत संवैधानिक ज़रूरत है। इस ज़रूरी सुरक्षा का पालन न करने से डिटेंशन प्रोसेस खराब हो गया।
इन नतीजों को देखते हुए कोर्ट ने माना कि प्रिवेंटिव डिटेंशन ऑर्डर कानूनी तौर पर टिकने लायक नहीं है।
Case Name: Uved Khan v/s State of H.P. & others

