एनडीपीएस एक्ट | जांच के लिए समय विस्तार केवल लोक अभियोजक की रिपोर्ट प्राप्त होने पर ही दिया जा सकता है, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अधूरी जांच पर जमानत दी

LiveLaw News Network

9 April 2024 8:35 AM GMT

  • एनडीपीएस एक्ट | जांच के लिए समय विस्तार केवल लोक अभियोजक की रिपोर्ट प्राप्त होने पर ही दिया जा सकता है, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने    अधूरी जांच पर जमानत दी

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस एक्ट) के तहत एक मामले की जांच के लिए समय विस्तार देने के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि लोक अभियोजक की रिपोर्ट में विस्तार की मांग संबंधी आवेदन का समर्थन नहीं किया गया था।

    एनडीपीएस एक्ट की धारा 36 ए (4) के अनुसार, वाणिज्यिक मात्रा से जुड़े अपराध में, यदि एक सौ अस्सी दिनों की अवधि के भीतर जांच पूरी करना संभव नहीं है तो विशेष न्यायालय उक्त लोक अभियोजक की रिपोर्ट पर अवधि को एक वर्ष तक बढ़ा सकता है। उस रिपोर्ट में जांच की प्रगति और एक सौ अस्सी दिनों की उक्त अवधि से परे अभियुक्तों की हिरासत के विशिष्ट कारणों का संकेत दिया गया हो।

    जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने कहा, कि जब जांच एजेंसी "निर्धारित वैधानिक अवधि के भीतर जांच समाप्त करने में विफल रहती है तो सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत एक अपरिहार्य अधिकार आरोपी को मिलता है, हालांकि, एनडीपीएस एक्ट की धारा 36 ए (4) के प्रावधान जांच अवधि के विस्तार की अनुमति देता है, बशर्ते कि कानून द्वारा अनिवार्य शर्तों का परिश्रमपूर्वक पालन किया गया हो, जिसमें लोक अभियोजक द्वारा एनडीपीएस एक्ट की धारा 36ए(4) के तहत एक रिपोर्ट प्रस्तुत करना भी शामिल है।"

    न्यायालय ने कहा कि धारा 36 ए (4) के पीछे विधायी मंशा स्पष्ट है, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है कि न्यायालय केवल लोक अभियोजक से रिपोर्ट प्राप्त होने पर ही विस्तार दे सकता है। कोर्ट ने ये टिप्पणियां भारत भूषण नामक व्यक्ति की ओर से दायर याचिका के जवाब में की, जिस पर एनडीपीएस एक्ट की धारा 21 (सी) और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के प्रावधानों और आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471 के तहत मामला दर्ज किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने जांच एजेंसी को चालान/अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के लिए दो बार समय दिया था।

    दोनों पक्षों की प्रस्तुतियां सुनने और प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद, न्यायालय ने पाया कि "यह स्पष्ट है कि वर्तमान मामले में एनडीपीएस एक्ट की धारा 36 ए (4) में उल्लिखित आवश्यकताओं और आदेश का पालन नहीं किया गया है। ट्रायल कोर्ट की ओर से जांच एजेंसी को जांच पूरी करने के लिए समय विस्तार देना गलत था।"

    नतीजतन, न्यायालय ने पहले आदेश को रद्द कर दिया जिसमें जांच के लिए विस्तार दिया गया था। एक अन्य आदेश को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि ट्रायल कोर्ट ने 365 दिनों की अनुमेय हिरासत अवधि को पार कर लिया था।

    न्यायालय ने कहा कि "इसमें कोई संदेह नहीं है, राज्य की ओर से पेश वकील की दलीलों के अनुसार, लोक अभियोजक ने एनडीपीएस एक्ट की धारा 36 ए (4) के तहत अनिवार्य रूप से अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, हालांकि, राज्य की ओर से पेश वकील ने इस पर भी विवाद नहीं किया याचिकाकर्ता की हिरासत की कुल अवधि 390 दिन थी, जो एनडीपीएस एक्ट की धारा 364 (ए) के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है।"

    संजय कुमार केडिया उर्फ संजय केडिया बनाम इंटेलिजेंस ऑफिसर, नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो और अन्य [2010 (1) एससीआर 555], शीर्ष अदालत के फैसले पर भरोसा किया गया, जिसमें न्यायालय ने कहा, “संहिता की धारा 167 (2) के तहत निर्धारित 90 दिनों की अधिकतम अवधि को अधिनियम के तहत अपराधों की कई श्रेणियों के लिए 180 दिनों तक बढ़ा दिया गया है, लेकिन प्रावधान हिरासत की एक और अवधि को अधिकृत करता है जो कुल मिलाकर एक वर्ष तक जा सकती , बशर्ते उसमें प्रदान की गई कठोर शर्तें पूरी हों और उनका अनुपालन किया जाए।

    शर्तें इस प्रकार हैं-

    (1) लोक अभियोजक की एक रिपोर्ट,

    (2) जो जांच की प्रगति को इंगित करती हो, और

    (3) रिपोर्ट में अभियुक्त की हिरासत को 180 दिनों की अवधि से अधिक की मांग संबंधी अनिवार्य कारण निर्दिष्ट हो,

    (4) इस संबंध में आरोपी को नोटिस दिया गया हो।”

    कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने जांच पूरी करने के लिए जांच एजेंसी को 180 दिनों का दूसरा समय देकर "गलती की"। इसलिए वह आदेश भी निरस्त कर दिया गया। न्यायालय ने फैसेल में क‌ि कि याचिकाकर्ता ने जिस दिन सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत आवेदन दायर किया था, चूंकि उस दिन जांच अधूरी रही, इसलिए वह डिफ़ॉल्ट जमानत का हकदार है।

    केस टाइटलः भारत भूषण बनाम हरियाणा राज्य

    साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (पीएच) 108

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