'इस देश में कोई भी नागरिक दूसरे से कम नहीं': पुलिस द्वारा अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल से जुड़े मामले में केरल हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों से कहा

Amir Ahmad

18 Jan 2024 12:23 PM GMT

  • इस देश में कोई भी नागरिक दूसरे से कम नहीं: पुलिस द्वारा अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल से जुड़े मामले में केरल हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों से कहा

    Kerala High Court

    केरल हाइकोर्ट ने स्टेट पुलिस चीफ को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया कि पुलिस अधिकारी प्रत्येक नागरिक के साथ नम्रतापूर्वक तरीके से व्यवहार किया जाए। इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि इस देश में कोई भी नागरिक दूसरे से कम नहीं है।

    यह मामला पलक्कड़ जिले के अलाथुर पुलिस स्टेशन में पुलिस अधिकारी द्वारा वकील के खिलाफ इस्तेमाल किए गए अपमानजनक शब्दों से संबंधित है।

    स्टेट पुलिस चीफ शेख दरवेश अदालत के समक्ष ऑनलाइन उपस्थित हुए। उन्होंने अदालत को बताया कि पुलिस विभाग में बदलाव के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने न्यायालय को आश्वासन दिया कि एडिशनल सर्कुलर जारी किया जाएगा। इसमें सभी अधिकारियों को कड़ी चेतावनी दी जाएगी, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि नागरिकों के खिलाफ किसी भी अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।

    जस्टिस देवन रामचन्द्रन ने पुलिस प्रमुख के साथ बातचीत पर कहा,

    "राज्य पुलिस प्रमुख ने कहा कि इस न्यायालय के इरादे का उल्लंघन नहीं किया जा सकता और किसी भी अधिकारी को इसके विपरीत कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इसमें 'एडा', 'पोडी' और 'नी' जैसे प्रतिबंधित शब्दों का उपयोग शामिल है। उन्होंने कहा कि वह प्रत्येक अधिकारी को कड़ी चेतावनी के रूप में एक और सर्कुलर भी जारी करेंगे, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी नागरिक को उस तरीके से संबोधित नहीं किया जाए, जैसा कि इस घटना में आरोप लगाया गया।''

    इसके अतिरिक्त न्यायालय ने कहा कि लोक सेवक होने के नाते पुलिस अधिकारियों को भारत के संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करना होगा।

    कोर्ट ने कहा,

    “मुझे सभी अधिकारियों को स्पष्ट करने के उद्देश्य से रिकॉर्ड करना चाहिए कि इस देश में कोई भी नागरिक दूसरे से कम नहीं है। हमारा सर्वोपरि दस्तावेज़ भारत का संविधान हममें से प्रत्येक को परिभाषित करता है। जैसा कि हमारी प्रस्तावना में कहा गया है कि हम एक गणतंत्र हैं और इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक नागरिक संप्रभु है। पुलिस अधिकारी लोक सेवक हैं। उन्हें अपने "मालिकों" के साथ संविधान द्वारा निर्धारित सम्मान के साथ व्यवहार करना होगा।''

    कोर्ट ने आगे कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा अगर पुलिस अधिकारियों को नागरिकों के साथ अपनी इच्छानुसार व्यवहार करने की अनुमति दी गई। इसमें कहा गया कि पुलिस अधिकारियों को सबसे कठिन परिस्थितियों में भी अपना संयम बनाए रखने के लिए सख्त प्रशिक्षण दिया गया है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि पुलिस अधिकारियों को क्रोध से बोलना नहीं चाहिए और अपना संयम बनाए रखना चाहिए। इसमें टिप्पणी की गई कि नागरिकों को कानून के प्रति सम्मान के कारण पुलिस बल का सम्मान करना चाहिए, डर के कारण नहीं।

    कोर्ट ने आगे कहा कि कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने वाले और नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले अधिकारियों के खिलाफ तुरन्त और कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। केवल त्वरित और मजबूत कार्रवाई ही निवारक के रूप में काम करेगी।

    चीफ स्टेट ऑफ पुलिस ने अदालत को यह भी बताया कि आरोपित पुलिस अधिकारी का तबादला कर दिया गया और उसे चेतावनी दी गई। अदालत को यह भी बताया गया कि अधिकारी के खिलाफ जांच की कार्यवाही शुरू कर दी गई और जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाएगी।

    यह पाए जाने पर कि पुलिस अधिकारी के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया गंभीर प्रकृति के हैं, क्योंकि उसने प्रतिबंधित अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। अदालत ने संबंधित पुलिस अधिकारी को नोटिस जारी किया। इसमें कहा गया कि पुलिस अधिकारी एक वकील नियुक्त कर सकता है, या व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हो सकता है।

    एडिशनल सर्कुलर जारी करने के लिए मामले को दो सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया गया। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख पर राज्य पुलिस प्रमुख की भी उपस्थिति का अनुरोध किया।

    मामले की पृष्ठभूमि

    न्यायालय ने उपरोक्त आदेश पूर्व निर्णय में न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए दायर अवमानना ​​याचिका में पारित किया। इसने पुलिस अधिकारियों को नागरिकों के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करने से परहेज करने का आदेश दिया।

    कोर्ट को बताया गया कि सर्कुलर जारी कर कोर्ट के निर्देशों का अनुपालन कर दिया गया। अनुपालन रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए न्यायालय ने आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि केवल सर्कुलर जारी करना अपर्याप्त है और राज्य पुलिस प्रमुख को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक पुलिस अधिकारी अच्छे व्यवहार और सभ्य आचरण का पालन करे।

    याचिकाकर्ता के वकील- यशवंत शेनॉय, धनुजा एम एस

    प्रतिवादी के वकील- सरकारी वकील सुनील कुमार कुरियाकोस।

    केस टाइटल- महेश बनाम अनिलकांत

    केस नंबर- अवमानना ​​केस (सी) नंबर 869 ऑफ 2023(एस) इन डब्ल्यूपी(सी) 11880/2021

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