सार्वजनिक निकायों के खिलाफ निजी कानून के उपाय रिट क्षेत्राधिकार के माध्यम से लागू नहीं किए जा सकते: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट
Amir Ahmad
5 Feb 2024 1:40 PM IST
सार्वजनिक और निजी कानून मामलों और उनके निवारण सिस्टम के बीच अंतर करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया कि निजी उपचारों को असाधारण रिट क्षेत्राधिकार के माध्यम से लागू नहीं किया जा सकता। यहां तक कि सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ भी नहीं।
जस्टिस जावेद इकबाल वानी की पीठ ने स्पष्ट किया कि भले ही कर्तव्य निभाने वाला कोई निकाय इसे रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायी बनाता है, लेकिन सार्वजनिक तत्व वाले कार्यों को छोड़कर उसके सभी कार्य न्यायिक पुनर्विचार के अधीन नहीं हैं।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला नाबालिग स्टूडेंट से जुड़ा है, जिसे कथित तौर पर स्कूल प्रशासन के खिलाफ उसके पिता की कानूनी कार्रवाइयों के कारण निजी स्कूल में 11वीं कक्षा में एडमिशन से वंचित कर दिया गया। स्टूडेंट के पिता ने रिट याचिका के माध्यम से उसके एडमिश और कथित उत्पीड़न के लिए मुआवजे की मांग की।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि स्कूल की कार्रवाई स्टूडेंट के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है और उत्पीड़न के समान है। उन्होंने दलील दी कि सरकारी सहायता प्राप्त करने और राज्य बोर्ड से संबद्ध होने के बावजूद स्कूल ने व्यक्तिगत कारणों से दुर्भावनापूर्ण इरादे से काम किया।
वहीं उत्तरदाताओं ने आपत्तियों का विरोध किया परीक्षाओं के दौरान कदाचार का दावा किया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के परिवार का स्कूल कर्मचारियों को परेशान करने का इतिहास रहा है।
न्यायालय की टिप्पणियां
जस्टिस वानी ने विवाद की प्रकृति की जांच करने पर कहा कि याचिका मुख्य रूप से स्कूल प्रशासन द्वारा कथित तौर पर की गई निजी गलतियों और आरोपों में सार्वजनिक तत्व की पूर्ण अनुपस्थिति को संबोधित करती है।
अदालत ने कहा,
“यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि रिट याचिका को बनाए रखने और राहत मांगने के लिए बिना किसी सार्वजनिक तत्व के इसमें उत्तरदाताओं 3 से 6 द्वारा निजी गलतियां की गई, जैसा कि रिट याचिका मांगा गया।
आगे यह रेखंकित किया गया,
"सेंट मैरी एजुकेशन सोसाइटी बनाम राजेंद्र प्रसाद भार्गव और के.के. सक्सेना बनाम सिंचाई और जल निकासी पर अंतर्राष्ट्रीय आयोग का हवाला देते हुए पीठ ने दोहराया कि निजी कानून के उपायों को रिट क्षेत्राधिकार के माध्यम से लागू नहीं किया जा सकता। यहां तक कि सार्वजनिक प्राधिकरणों के खिलाफ भी नहीं। इसलिए जहां कोई कार्रवाई अनिवार्य रूप से निजी चरित्र की है, वहां एक रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं होगी।”
यह भी ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता ने याचिका के लंबित रहने के दौरान स्कूल से ट्रांसफर सर्टिफिकेट प्राप्त कर लिया, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के उक्त अधिनियम ने मामले को निरर्थक बना दिया। इसलिए प्रार्थना की गई राहत नहीं दी जा सकती।
तदनुसार याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल- महीन शौकत बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश
साइटेशन- लाइव लॉ (जेकेएल) 13 2024