मध्यस्थता के लिए तीन राजपत्रित रेलवे अधिकारियों के पैनल की नियुक्ति के लिए जीसीसी क्लॉज A&C एक्ट की धारा 12(5) का उल्‍लंघनः कलकत्ता हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

26 Feb 2024 10:42 AM GMT

  • मध्यस्थता के लिए तीन राजपत्रित रेलवे अधिकारियों के पैनल की नियुक्ति के लिए जीसीसी क्लॉज A&C एक्ट की धारा 12(5) का उल्‍लंघनः कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि अनुबंध की सामान्य शर्तों में मध्यस्थता के लिए तीन राजपत्रित रेलवे अधिकारियों के एक पैनल की नियुक्ति का प्रावधान मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 12(5) सहपठित अधिनियम की पांचवीं और सातवीं अनुसूची का उल्लंघन है। जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की सिंगल जज बेंच के समक्ष मामले की सुनवाई हो रही थी।

    तथ्य

    4 अगस्त 2018 को एक एमओयू निष्पादित किया गया था, जिसके बाद 7 दिसंबर 2018 को प्रतिवादी, मेट्रो रेलवे की ओर से एक स्वीकृति पत्र जारी किया गया।

    इस समझौते के अनुसार, याचिकाकर्ता को सिविल इंजीनियर‌िग के कार्यों के निष्पादन का काम सौंपा गया था, जो नोआपाड़ा से एयरपोर्ट सर्कुलर रेलवे ट्रैक के आरसीसी रैंप तक फैले ‌थे। समझौते की शर्तें अनुबंध की सामान्य शर्तों द्वारा शासित थीं।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी की ओर से समझौते को समाप्त करना गैरकानूनी था। उसने यह दावा किया कि यह प्रतिवादी द्वारा दी गई विस्तार अवधि के भीतर हुआ। निवारण की मांग करते हुए, याचिकाकर्ता ने अंतरिम सुरक्षा के लिए राजारहाट वाणिज्यिक न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद प्रतिवादी बैंक गारंटी भुनाने से रोकने में सफल हो पाया।

    इसके बाद याचिकाकर्ता ने नोटिस के प्रतिवादी के साथ एक नोटिस के माध्यम से जीसीसी के खंड 64 को लागू करते हुए मध्यस्थता कार्यवाही शुरू की। याचिकाकर्ता ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 के तहत मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट से संपर्क किया।

    हालांकि, विवाद के समाधान को प्रतिवादी द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्ति का सामना करना पड़ा। यह तर्क दिया गया है कि याचिकाकर्ता जीसीसी के खंड 64(3)(ए)(ii) से बंधा हुआ था, जो 25 लाख रुपये से अधिक के मामलों के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति से संबंधित था।

    इस खंड में तीन राजपत्रित रेलवे अधिकारियों के एक पैनल की कल्पना की गई, जो एक निर्दिष्ट रैंक से नीचे का नहीं होगा। प्रतिवादी ने जोर देकर कहा कि निर्दिष्ट पैनल के समझौते सहित खंड 64(3)(ए)(ii) का अनुपालन याचिकाकर्ता के लिए अनिवार्य था।

    हाईकोर्ट की टिप्‍पण‌ियां

    हाईकोर्ट ने कहा कि जीसीसी के खंड 64(3)(ए)(ii) में एक निर्दिष्ट रैंक के अधीन, तीन राजपत्रित रेलवे अधिकारियों के तहत मध्यस्थता के लिए एक समझौते को अनिवार्य किया गया है। हाईकोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 12(5), पांचवीं और सातवीं अनुसूची के साथ मिलकर, हितों के संभावित टकराव वाले मध्यस्थों की नियुक्ति के खिलाफ सुरक्षा करती है।

    इसमें सातवीं अनुसूची की प्रविष्टि-एक पर प्रकाश डाला गया है, जो विशेष रूप से मध्यस्थों को पार्टियों, परामर्शदाताओं के साथ संबंधों या संघर्षों पर रोक लगाता है, या यदि मध्यस्थ का किसी पार्टी के साथ व्यावसायिक संबंध है।

    जीसीसी के खंड 64(3)(ए)(ii) के एकतरफा होने और 1996 अधिनियम की धारा 12(5) को माफ करने के खिलाफ याचिकाकर्ता के रुख को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों द्वारा उठाए गए तर्कों को खारिज कर दिया। नतीजतन, हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों श्री रवीन्द्रनाथ सामंत और श्री सिद्धार्थ रॉय चौधरी को दो मध्यस्थों के रूप में नियुक्त करके याचिका को अनुमति दी गई और उसका निपटारा किया गया, जबकि वरिष्ठ वकील श्री विकास रंजन भट्टाचार्य को पीठासीन मध्यस्थ के रूप में नामित किया गया।

    केस टाइटलः आरकेडी नीरज जेवी बनाम द यूनियन ऑफ इंडिया।

    केस नंबर: AP-COM/54/2024.

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