फैमिली कोर्ट सीपीसी, साक्ष्य अधिनियम में निर्धारित प्रक्रिया से सख्ती से नहीं बंधा; यदि जरूरी हो तो अपनी प्रक्रिया निर्धारित कर सकता है: तेलंगाना हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

12 March 2024 7:52 AM GMT

  • फैमिली कोर्ट सीपीसी, साक्ष्य अधिनियम में निर्धारित प्रक्रिया से सख्ती से नहीं बंधा; यदि जरूरी हो तो अपनी प्रक्रिया निर्धारित कर सकता है: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि फैमिली कोर्ट नागरिक प्रक्रिया संहिता में निर्धारित प्रक्रिया से बंधा नहीं हुआ है और यदि आवश्यक हो तो मामले की सच्चाई तक पहुंचने के लिए अपनी प्रक्रिया निर्धारित कर सकता है।

    जस्टिस टी विनोद कुमार के समक्ष सवाल यह था कि क्या वाद-विवाद में कोई आधार न होने के बावजूद फैमिली कोर्ट की याचिका में ‌निस्तारण विलेख की फोटोकॉपी को द्वितीयक साक्ष्य के रूप में पेश किया जा सकता है। इसी का जवाब देने हुए उन्होंने यह टिप्पणी की।

    पीठ ने फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 10 और 14 पर भरोसा करते हुए कहा कि फैमिली कोर्ट सीपीसी में निर्धारित प्रक्रिया से सख्ती से बंधा नहीं है और सच्चाई का निर्धारण करने के लिए अपनी प्रक्रिया स्थापित कर सकता है। यह साक्ष्य अधिनियम पर भी लागू हो सकता है।

    पीठ ने कहा,

    "[सीपीसी] एक पक्ष की ओर से कही जा रही है और दूसरे पक्ष की ओर से अस्वीकार किए जा रही तथ्यों की सच्चाई तक पहुंचने के लिए फैमिली कोर्ट को अपनी प्रक्रिया निर्धारित करने से नहीं रोकता है... इसलिए, अधिनियम, 1984 की धारा 14 के आवेदन द्वारा, फैमिली कोर्ट एक्ट, 1872 के नियमों का सख्ती से पालन करने के लिए बाध्य नहीं हैं। हालांकि, 'हो सकता है' शब्द का उपयोग इंगित करता है कि ऐसे साक्ष्य को स्वीकार करने का विवेक फैमिली कोर्ट पर निहित है कि क्या उसे इसे सच को उजागर करने के लिए प्रासंगिक मानना चाहिए।''

    निष्कर्ष

    हाईकोर्ट ने अधिनियम की धारा 14 के तहत फैमिली कोर्ट को दिए गए व्यापक विवेक को स्वीकार किया और माना कि फैमिली कोर्ट कुछ परिस्थितियों में फोटोकॉपी या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पर भी विचार कर सकती हैं, भले ही वे साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार्य न हों।

    हालांकि, अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह विवेक पूर्ण नहीं है। इसमें कहा गया है कि फैमिली कोर्ट को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि पेश किए जा रहे सबूत, भले ही अपरंपरागत हों, मामले के लिए प्रासंगिक हैं।

    मामले में अदालत ने मूल दस्तावेज़ के संबंध में याचिकाकर्ताओं की दलीलों में विसंगतियां देखीं। इसमें कहा गया है कि जबकि उन्होंने दावा किया कि वे इसे प्रस्तुत नहीं कर सके, उन्होंने असंगत रूप से यह भी कहा कि उसी दस्तावेज़ की एक प्रति पहले प्रतिवादी की आपत्ति के बिना किसी अन्य आवेदन में चिह्नित की गई थी।

    हाईकोर्ट ने फोटोकॉपी पेश करने के आवेदन को यंत्रवत रूप से खारिज करने के लिए फैमिली कोर्ट की आलोचना की। इसमें निचली अदालत के आदेश में दोष पाया गया कि उसने इस बात पर विचार नहीं किया कि दस्तावेज़ वास्तव में विवाद को सुलझाने के लिए महत्वपूर्ण था या नहीं। हालांकि, हाईकोर्ट ने फोटोकॉपी को साक्ष्य के रूप में तत्काल स्वीकार करने की अनुमति देने से भी परहेज किया।

    इन्हीं टिप्‍पणियों के साथ अदालत ने मामले को वापस फैमिली कोर्ट में भेज दिया। इसने निचली अदालत को याचिकाकर्ताओं की टिप्पणियों के आलोक में उनके अनुरोध का पुनर्मूल्यांकन करने का निर्देश दिया।

    नागरिक पुनरीक्षण याचिका क्रमांक 491, 528, 530/2024

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