गुवाहाटी हाईकोर्ट ने पत्नी की कथित हत्या के लिए अभियुक्त की दोषसिद्धि खारिज की, कहा- साक्ष्य दोषसिद्धि की परिकल्पना की ओर संकेत नहीं करते

Shahadat

30 May 2024 11:01 AM IST

  • गुवाहाटी हाईकोर्ट ने पत्नी की कथित हत्या के लिए अभियुक्त की दोषसिद्धि खारिज की, कहा- साक्ष्य दोषसिद्धि की परिकल्पना की ओर संकेत नहीं करते

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में अभियुक्त की दोषसिद्धि खारिज की। उक्त दोषी को निचली अदालत ने पत्नी की हत्या के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया था। अब हाईकोर्ट ने उक्त दोषसिद्धि इस आधार पर खारिज कर दी कि अभियोजन पक्ष ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत करने में असमर्थ था, जो उक्त अभियुक्त के दोषसिद्धि की ओर स्पष्ट रूप से संकेत करते हों।

    जस्टिस मनीष चौधरी और जस्टिस रॉबिन फुकन की खंडपीठ ने कहा:

    “जिन परिस्थितियों से दोषसिद्धि का निष्कर्ष निकाला जाना है, उन्हें पूरी तरह से स्थापित किया जाना चाहिए। संबंधित परिस्थितियों को 'अवश्य या चाहिए' स्थापित किया जाना चाहिए, न कि 'स्थापित किया जा सकता है'। इस प्रकार स्थापित तथ्य केवल अभियुक्त के दोषसिद्धि की परिकल्पना के अनुरूप होने चाहिए, अर्थात, उन्हें किसी अन्य परिकल्पना पर व्याख्यायित नहीं किया जाना चाहिए। सिवाय इसके कि अभियुक्त दोषी है और परिस्थितियाँ निर्णायक प्रकृति और प्रवृत्ति की होनी चाहिए।”

    मामले के तथ्य

    अभियुक्त-अपीलकर्ता पर यौनहत्या का आरोप लगाया गया। सिमसिमपुर के वी.डी.पी. सचिव (पी.डब्लू. 1) द्वारा दी गई टेलीफोनिक सूचना के आधार पर 30 नवंबर, 2015 को प्रातः 09:00 बजे सामान्य डायरी प्रविष्टि (जीडीई) दर्ज की गई। जीडीई के अनुसार पी.डब्लू. 1 ने फोन पर सूचना दी कि पिछली रात को उसके सह-ग्रामीण (अपीलकर्ता) ने उसकी पत्नी पर हमला करके उसकी हत्या कर दी तथा शव उसके घर के अन्दर पड़ा हुआ है।

    30 नवंबर, 2015 को रात्रि लगभग 08:15 बजे पी.डब्लू. 1 ने जांच अधिकारी (आई.ओ.) [पी.डब्लू. 7] के समक्ष एफआईआर दर्ज कराई, जिसे उचित धाराओं के अन्तर्गत मामला दर्ज करने के लिए रताबाड़ी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को भेज दिया गया। उक्त एफआईआर प्राप्त होने पर आरोपी-अपीलकर्ता के विरूद्ध आईपीसी की धारा 302 के अन्तर्गत मामला दर्ज किया गया।

    एफआईआर के अनुसार, पीडब्लू 1 ने उल्लेख किया कि अभियुक्त उसके घर आया और उसे बताया कि 29 नवंबर, 2015 और 30 नवंबर, 2015 की मध्य रात्रि को लगभग 12:30/01:00 बजे, अभियुक्त अब्दुल सुक्कुर ने अपने घर के अंदर अपनी पत्नी को कुदाल से काट डाला और शव अभियुक्त के घर के अंदर पड़ा था। शिकायतकर्ता पीडब्लू 1 ने आगे कहा कि वह इसके तुरंत बाद अभियुक्त के घर गया और वहां शव को देखकर पुलिस को मामले की सूचना दी।

    ट्रायल कोर्ट ने 12 जून, 2017 के निर्णय और आदेश के तहत अभियुक्त-अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास और 500/- रुपये का जुर्माना भरने की सजा सुनाई।

    इस प्रकार, अभियुक्त-अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष वर्तमान अपील दायर की।

    अभियुक्त-अपीलकर्ता की ओर से पेश एमिक्स क्यूरी ने दलील दी कि हालांकि घटना अभियुक्त-अपीलकर्ता और मृतक के घर के अंदर हुई थी, लेकिन वे अकेले नहीं थे, क्योंकि संबंधित समय पर घर में अन्य लोग भी मौजूद थे।

    इसके अलावा यह भी दलील दी गई कि अभियोजन पक्ष के किसी भी गवाह ने अभियुक्त-अपीलकर्ता पर हमले का आरोप नहीं लगाया। इस तरह, ट्रायल कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकालने में गलती की कि अभियोजन पक्ष ने सभी उचित संदेहों से परे हत्या के अपराध का आरोप लगाया।

    दूसरी ओर, अतिरिक्त लोक अभियोजक (एपीपी) ने दलील दी कि शत्रुतापूर्ण गवाहों की गवाही के शेष हिस्से रिकॉर्ड पर मौजूद अन्य साक्ष्य या सामग्रियों के साथ विचार करने के लिए पर्याप्त विश्वसनीय पाए गए और ट्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद संपूर्ण साक्ष्य या सामग्रियों की उचित सराहना करने के बाद हत्या के आरोप पर सही निष्कर्ष निकाला।

    इसके अलावा, यह भी दलील दी गई कि रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य या सामग्रियों से यह सामने आया कि किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा अपराध करने की कोई संभावना नहीं थी। इस प्रकार, यह अभियुक्त-अपीलकर्ता ही था जिसने सभी संभावनाओं में अपनी पत्नी की हत्या की थी।

    न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष के किसी भी गवाह ने यह नहीं कहा कि उसने घटना या हमले की किसी घटना को देखा था। न्यायालय ने आगे कहा कि केवल इसलिए कि न्यायालय ने लोक अभियोजक को अपने ही गवाह से क्रॉस एग्जामिनेशन करने की अनुमति दे दी है, जिसमें उसे शत्रुतापूर्ण गवाह बताया गया है। इससे उसका साक्ष्य पूरी तरह से समाप्त नहीं हो जाता।

    न्यायालय ने कहा,

    "साक्ष्य मुकदमे में स्वीकार्य है और ऐसे गवाह की गवाही के आधार पर दोषसिद्धि के लिए कोई कानूनी रोक नहीं है, यदि अन्य विश्वसनीय साक्ष्यों द्वारा इसकी पुष्टि की जाती है। प्रत्येक मामले में न्यायालय को यह विचार करना है कि क्या इस तरह की क्रॉस एक्जामिनेशन और विरोधाभास के परिणामस्वरूप, गवाह पूरी तरह से बदनाम हो गया है या उसकी गवाही के एक हिस्से के संबंध में अभी भी उस पर विश्वास किया जा सकता है। यदि न्यायालय पाता है कि इस प्रक्रिया में गवाह की साख पूरी तरह से डगमगाई नहीं है तो न्यायालय, गवाह के साक्ष्य को समग्र रूप से पढ़ने और विचार करने के बाद उचित सावधानी और देखभाल के साथ रिकॉर्ड पर मौजूद अन्य साक्ष्यों के प्रकाश में उसकी गवाही के उस हिस्से को स्वीकार कर सकता है, जिसे न्यायालय विश्वसनीय पाता है और उस पर कार्रवाई कर सकता है।"

    न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अभियोजन पक्ष के गवाहों अर्थात् पी.डब्लू.2, पी.डब्लू.3 और पी.डब्लू.5 को न्यायालय की अनुमति से शत्रुतापूर्ण घोषित करने के पश्चात अभियोजन पक्ष द्वारा उनसे की गई क्रॉस एक्जामिनेशन में कोई विरोधाभास नहीं पाया गया। न्यायालय ने आगे कहा कि अभियोजन पक्ष ने मृतक पर जानलेवा हमले के कृत्य के संबंध में कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया।

    न्यायालय ने कहा,

    "यदि अभियोजन पक्ष को परिस्थितियों के आधार पर आरोप सिद्ध करना है तो भी यह सिद्धांत कि अभियोजन पक्ष को सभी उचित संदेहों से परे अपने मामले को सिद्ध करना है, भिन्न नहीं होता। इसलिए अभियोजन पक्ष को परिस्थितियों की पूरी श्रृंखला को सिद्ध करके सभी उचित संदेहों से परे मामले को सिद्ध करना आवश्यक है, आरोपी के भागने के लिए कोई कड़ी छूटने नहीं देना चाहिए।"

    न्यायालय ने कहा कि पूरी घटना आरोपी और मृतक के घर के अंदर मध्य रात्रि के समय हुई थी, जो अपने बच्चों के साथ सो रहे थे। न्यायालय ने कहा कि आरोपी (पी.डब्लू.2) की बेटी से इस बारे में कोई प्रश्न नहीं किया गया कि जब वह अपने माता-पिता की चीख सुनकर नींद से जागी तो प्रकाश था या नहीं।

    अदालत ने टिप्पणी की,

    "रात में लाइट बंद करके सोना, लाइट जलाकर सोने से ज़्यादा सामान्य है। अभियोजन पक्ष ने इस बात का कोई सबूत भी नहीं दिया कि अभियुक्त और मृतक के घर में बिजली थी या नहीं।"

    अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अगर अभियुक्त कोई स्पष्टीकरण नहीं देता है तो यह इस बात को पुख्ता तौर पर साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता कि अभियुक्त अपराध का दोषी है, लेकिन बिना कोई स्पष्टीकरण दिए चुप रहने के कृत्य को कुछ स्थितियों में उसके खिलाफ़ परिस्थिति माना जा सकता है।

    अदालत ने आगे कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित मामले में मकसद बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसे श्रृंखला की कड़ी माना जाता है।

    "इस मामले में अभियोजन पक्ष ने मकसद के बारे में कोई सबूत नहीं दिया। अभियुक्त द्वारा उस रात जो कुछ हुआ था, उसके बारे में दिए गए स्पष्टीकरण से यह नहीं कहा जा सकता कि यह प्रशंसनीय स्पष्टीकरण नहीं था। दिया गया स्पष्टीकरण यह है कि उस रात अभियुक्त दूसरे कमरे में सो रहा था और जानलेवा हमला उसके दीपक जलाने के बाद अपनी पत्नी के कमरे में पहुँचने से पहले हुआ था।

    अदालत ने कहा,

    "पी.डब्लू.2 ने इस बारे में कोई गवाही नहीं दी कि जब वह अपने माता-पिता यानी आरोपी और मृतक की चीखें सुनकर जागी तो क्या कमरे के अंदर रोशनी थी।"

    इस प्रकार, अदालत ने माना कि आरोपी को संदेह का लाभ मिलना चाहिए। इसलिए निचली अदालत द्वारा पारित सजा के आदेश और विवादित फैसला खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: अब्दुल सुक्कुर बनाम असम राज्य

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