दिल्ली हाईकोर्ट ने मृतक पिता के बैंक लॉकर के विवरण के लिए बेटे की याचिका खारिज की, कहा- 'व्यापक जनहित' में व्यक्तिगत हित शामिल नहीं
Shahadat
25 July 2024 11:01 AM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एकल न्यायाधीश की पीठ के आदेश के खिलाफ अपील खारिज की। उक्त आदेश में सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के तहत व्यक्ति को उसके मृतक पिता के बैंक लॉकर से संबंधित जानकारी देने से केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) का इनकार बरकरार रखा गया था।
अपीलकर्ता रवि प्रकाश सोनी ने कहा कि उनके पिता ने राजस्थान के चूरू जिले में बैंक ऑफ बड़ौदा की सरदारशहर शाखा में बैंक लॉकर किराए पर लिया था।
वर्ष 2011 में अपने पिता के निधन के बाद, जबकि RTI आवेदन दाखिल करने की तिथि तक बैंक लॉकर सक्रिय और चालू था, सोनी-अपने मृतक पिता के कानूनी उत्तराधिकारी होने के नाते लॉकर के संबंध में विशिष्ट जानकारी प्राप्त करने के लिए ऑनलाइन RTI आवेदन दायर किया। सूचना देने से इस आधार पर मना कर दिया गया कि इसे RTI Act की धारा 8(1)(ई) और (जे) के तहत छूट दी गई।
सूचना देने से मना किए जाने के बाद सोनी ने CIC में शिकायत दर्ज कराई। दो सुनवाई हुई- अगस्त 2023 में, जिसमें वे मेडिकल कारणों से उपस्थित नहीं हो सके और इस साल जनवरी में जिसमें सोनी के अधिकृत प्रतिनिधि यानी उनके बेटे ने भाग लिया।
सोनी ने दावा किया कि सुनवाई के दौरान आयुक्त (CIC की ओर से मामले की अध्यक्षता कर रहे) ने सोनी के अधिकृत प्रतिनिधि की दलीलों पर विचार करने से इनकार किया। इसके बाद सोनी ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन का दावा करते हुए हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ का रुख किया, जिसने इस साल 20 मार्च को उनकी याचिका खारिज कर दी।
एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने 18 जुलाई के अपने आदेश में एकल न्यायाधीश पीठ की राय से अलग होने का कोई कारण नहीं पाया, जिसने सोनी की याचिका खारिज करते हुए कहा कि सोनी की शिकायत का निपटारा करते समय CIC द्वारा दिया गया तर्क गलत नहीं है और इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
RTI Act की धारा 8(1)(ई) और (जे) के आवेदन पर जिसके आधार पर सूचना देने से इनकार किया गया, खंडपीठ ने कहा कि धारा 8(1) गैर-बाधा खंड है, जिसका "सामान्य रूप से अधिनियम के शेष प्रावधानों पर अधिभावी प्रभाव होगा" और कहा कि "प्रावधानों को सख्ती से पढ़ा जाना चाहिए"।
हाईकोर्ट ने कहा,
"एक बार जब अपीलकर्ता के दिवंगत पिता के कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच विवाद लंबित हो जाता है तो बैंक निर्णायक की भूमिका नहीं निभा सकता है या किसी भी पक्ष के साथ अपनी पहचान नहीं बना सकता है, ऐसा न हो कि उस पर पक्षपात करने का आरोप लगाया जाए। इसके अलावा, अपीलकर्ता के पास कानून के अनुसार, जब भी आवश्यकता हो अदालत में ऐसी कोई भी जानकारी मांगने के लिए पर्याप्त प्रभावी और वैकल्पिक उपाय हैं। इस प्रकार, मांगी गई जानकारी का खुलासा करने से इनकार करना गलत नहीं हो सकता।"
खंडपीठ ने आगे कहा कि सोनी अपने दिवंगत पिता के बैंक लॉकर से संबंधित कुछ जानकारी मांग रहे थे, जबकि कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच विवाद लंबित थे। उन्होंने कहा कि इसमें "संभवतः कोई सार्वजनिक हित नहीं हो सकता। इससे भी बड़ा सार्वजनिक हित नहीं हो सकता। "व्यापक सार्वजनिक हित" शब्द पर पीठ ने कहा कि इसका प्रभाव "समाज के व्यापक वर्ग" पर पड़ता है, न कि किसी व्यक्तिगत हित या संघर्ष पर।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि इस शब्द को "सीधे-सादे फॉर्मूले" में परिभाषित नहीं किया जा सकता और इसकी व्याख्या "मामले दर मामले" के आधार पर की जानी चाहिए। अपील खारिज करते हुए खंडपीठ ने कहा कि सोनी यह प्रदर्शित नहीं कर पाए कि उनके मामले में वह व्यापक सार्वजनिक हित क्या होगा। धारा 8(1)(ई) में कहा गया कि ऐसे मामले में भी जहां प्रत्ययी संबंध मौजूद है, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी संतुष्ट न हो कि व्यापक सार्वजनिक हित ऐसी जानकारी के प्रकटीकरण को उचित ठहराता है, ऐसी जानकारी देने से इनकार किया जा सकता है। इस बीच, धारा 8(1)(जे) भी ऐसी सूचना के प्रकटीकरण से छूट देती है जिसका किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं है, या जो किसी व्यक्ति की निजता पर अनुचित आक्रमण करेगी, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो कि व्यापक सार्वजनिक हित ऐसे प्रकटीकरण को उचित ठहराते हैं।
खंडपीठ के समक्ष सोनी-जिनका प्रतिनिधित्व उनके अधिवक्ता पुत्र ने किया, उन्होंने तर्क दिया कि यह विवादित नहीं है कि सोनी के दिवंगत पिता का बैंक ऑफ बड़ौदा में लॉकर है। यह तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता का अपने पिता की मृत्यु के बाद बैंक के साथ प्रत्ययी संबंध था। इसलिए वह उनके द्वारा मांगी गई जानकारी पाने का हकदार है।
इस तर्क पर खंडपीठ ने कहा कि बैंक और अपीलकर्ता के दिवंगत पिता के बीच प्रत्ययी संबंध “केवल” है। अपीलकर्ता ने आगे तर्क दिया कि उनकी याचिका खारिज करते समय CIC ने अपने आदेश में लॉकर धारक के नामांकित व्यक्तियों या उत्तराधिकारियों के नाम का उल्लेख नहीं किया, जिनके हित कथित रूप से प्रभावित होने वाले थे।
उन्होंने यह भी कहा कि उनके तर्क CIC के आदेश में दर्ज नहीं किए गए, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का गंभीर उल्लंघन है, जिस पर एकल न्यायाधीश की पीठ विचार करने में विफल रही। सोनी ने तर्क दिया कि एकल न्यायाधीश ने यह स्वीकार करने के बावजूद कि वह मृतक लॉकर धारक का पुत्र था, इस बात की जांच की कि क्या मांगी गई जानकारी व्यापक जनहित में है या इससे व्यक्ति की निजता पर अनुचित आक्रमण होगा।
इस तर्क पर खंडपीठ ने कहा कि अधिकारियों और एकल न्यायाधीश की पीठ द्वारा दिए गए तर्क में “ऐसी कोई बुराई” नहीं है।
खंडपीठ ने रेखांकित किया,
“वैसे भी एकल न्यायाधीश ने मामले के गुण-दोष के साथ इस मुद्दे पर पहले ही विचार किया और विवादित निर्णय पारित किया। हमें इस मुद्दे पर एकल न्यायाधीश द्वारा दी गई राय से अलग होने का कोई कारण नहीं मिलता है। वास्तव में आदेशों में ऊपर बताए अनुसार जानकारी देने से इनकार करने का स्पष्ट और सटीक औचित्य निहित है। इन परिस्थितियों में हम उक्त तर्क को भी अस्वीकार करते हैं।”
केस टाइटल: रवि प्रकाश सोनी बनाम केंद्रीय सूचना आयोग और अन्य।