दिल्ली दंगे: पुलिस का कहा- UAPA के तहत ज़मानत के लिए सिर्फ़ देरी कोई कारण नहीं, हाईकोर्ट ने तस्लीम अहमद की ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा
Shahadat
9 July 2025 7:26 AM

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को UAPA मामले में आरोपी तस्लीम अहमद की ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। तस्लीम अहमद ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों में बड़ी साज़िश का आरोप लगाया था।
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने अहमद की ओर से वकील महमूद प्राचा और दिल्ली पुलिस की ओर से एसपीपी अमित प्रसाद की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
बता दें, मंगलवार को प्राचा ने मुकदमे में देरी के आधार पर दलीलें पेश करते हुए कहा कि उन्होंने निचली अदालत से एक दिन की भी स्थगन याचिका नहीं ली और आरोपों पर बहस एक ही दिन में, 10-15 मिनट के भीतर पूरी कर ली। फिर भी वह पांच साल से जेल में सड़ रहे हैं।
सुनवाई के दौरान, विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने दलील दी कि UAPA की धारा 43डी(4) के मामले में केवल देरी ही ज़मानत देने का कारण नहीं हो सकती।
उन्होंने यह भी कहा कि जब देरी के आधार पर ज़मानत मांगी जाती है तो तथ्यों को अलग नहीं किया जा सकता। प्रसाद ने आंध्र प्रदेश राज्य बनाम मोहम्मद हुसैन और वर्नोन बनाम महाराष्ट्र राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया।
प्रसाद ने यह भी तर्क दिया कि निचली अदालत द्वारा ज़मानत खारिज करने की अपील पर सुनवाई करते हुए आकस्मिक कारणों के अभाव में हाईकोर्ट अंतरिम ज़मानत नहीं दे सकता।
प्रसाद ने दलील दी कि एक आरोपी के रूप में अहमद खुद को पूरी साज़िश से अलग नहीं कर सकता तो जस्टिस प्रसाद ने टिप्पणी की:
“एक व्यक्ति साज़िश का हिस्सा हो सकता है। अलग-अलग ताकतें एक व्यक्ति को अलग-अलग दिशाओं में खींच रही हैं। जो लोग बाहर हैं, वे कह रहे हैं कि मुझे बताओ कि जांच पूरी हुई है या नहीं... अलग-अलग आरोपी हैं। एक आरोपी जिसने कुछ नहीं किया, वह बेचारा कुछ होने का इंतज़ार कर रहा है... उस आदमी का क्या किया जाए?"
प्रसाद ने आगे कहा कि अगर तस्लीम अहमद को सिर्फ़ देरी के आधार पर ज़मानत दे दी जाती है तो अन्य सह-आरोपियों के लिए भी उसी आधार पर राहत पाना बहुत आसान हो जाएगा।
उन्होंने कहा,
"अगर आज माननीय जज उन्हें ज़मानत देने के लिए तैयार हैं तो दूसरों के लिए यह कहना बहुत आसान हो जाएगा कि मैंने कुछ नहीं किया और यह सुनिश्चित किया कि देरी हो और ज़मानत मिल जाए।"
प्रसाद ने आगे कहा,
"जब आप कहते हैं कि आपने मुकदमे में देरी नहीं की तो आपने मुकदमे को सुगम भी नहीं बनाया... आप बहस नहीं करते और फिर कहते हैं कि मुकदमे में देरी हुई। क्या उन्हें बहस के लिए आगे न आने के लिए सज़ा दी जा सकती है?"
प्रतिवाद प्रस्तुत करते हुए प्राचा ने तर्क दिया कि अगर अदालत रोज़ाना सुनवाई का आदेश भी देती है तो भी निचली अदालत पर काम का बोझ होने के कारण ऐसा नहीं हो पाएगा।
उन्होंने कहा,
"अगर माननीय जज कोई आदेश भी देते हैं तो भी ऐसा नहीं होगा। काम के बोझ के कारण निचली अदालतों के लिए रोज़ाना सुनवाई करना संभव नहीं है। वे सुपर कंप्यूटर नहीं हैं, सिर्फ़ न्यायाधीश ही सुपर कंप्यूटर हैं।"
प्राचा ने कहा कि अहमद के त्वरित सुनवाई के अधिकार को तो भूल ही जाइए, उनकी ज़मानत याचिका पर भी फैसला नहीं सुनाया गया।
प्राचा ने जोर देकर कहा,
“शीघ्र सुनवाई तो छोड़िए, मेरी ज़मानत याचिका पर भी सुनवाई नहीं हो रही। बात मुक़दमे की नहीं है। मैं मजबूर हूं... मुझे इससे बेहतर कोई शब्द नहीं सूझ रहा। बोझ के कारण ज़मानत पर बहस करते हुए भी मुझे अपने अधिकारों का त्याग करना पड़ रहा है। यह व्यवस्था के अत्यधिक बोझ का असर है। मैं बार में बयान दे रहा हूं कि अगर मैंने एक भी स्थगन लिया तो मेरी ज़मानत रद्द हो सकती है।”
दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) और गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) के तहत विभिन्न अपराधों के तहत 2020 की FIR नंबर 59 दर्ज की थी।
सह-आरोपी उमर खालिद, शरजील इमाम, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, शादाब अहमद, अतहर खान, खालिद सैफी और गुलफिशा फातिमा द्वारा दायर ज़मानत याचिकाओं पर एक समन्वय पीठ सुनवाई कर रही है।
मामले में ताहिर हुसैन, उमर खालिद, खालिद सैफी, इशरत जहां, मीरान हैदर, गुलफिशा फातिमा, शिफा-उर-रहमान, आसिफ इकबाल तन्हा, शादाब अहमद, तस्लीम अहमद, सलीम मलिक, मोहम्मद सलीम खान, अतहर खान, सफूरा जरगर, शरजील इमाम, फैजान खान और नताशा नरवाल आरोपी हैं।
Case Title: Tasleem Ahmed v. State