दिल्ली हाईकोर्ट ने पैरोल याचिकाओं पर निष्पक्ष निर्णय के लिए निर्देश जारी किए, अस्वीकृति के 'बार-बार होने' वाले पैटर्न का हवाला दिया

Shahadat

19 Oct 2025 7:20 PM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने पैरोल याचिकाओं पर निष्पक्ष निर्णय के लिए निर्देश जारी किए, अस्वीकृति के बार-बार होने वाले पैटर्न का हवाला दिया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए कि दोषियों के पैरोल और फर्लो के आवेदनों पर निष्पक्ष और तर्कसंगत तरीके से निर्णय लिया जाए ताकि बिना उचित कारण के उनकी अस्वीकृति के "बार-बार होने" वाले पैटर्न से बचा जा सके।

    जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा ने सक्षम प्राधिकारी को निर्देश दिया कि वह अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट रूप से दर्ज करे, जिसमें दोषियों द्वारा किए गए कदाचार या प्रतिकूल आचरण के विशेष उदाहरणों का स्पष्ट रूप से उल्लेख हो। साथ ही अस्वीकृति के आधार के रूप में उद्धृत प्रासंगिक तिथि भी हो, जैसा कि नाममात्र सूची में दर्शाया गया।

    अदालत ने कहा,

    "सक्षम प्राधिकारी इस बात पर भी ध्यान देगा कि किसी दोषी को दी गई सजा (यदि कोई हो) बड़ी या छोटी प्रकृति की थी। क्या उसे संबंधित जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने दिल्ली कारागार नियमों के अनुसार अनुमोदित किया।"

    अदालत ने सक्षम प्राधिकारी को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि कोई भी निर्णय लेने से पहले दोषी के जेल आचरण के पूरे इतिहास और उसकी रिहाई के रिकॉर्ड पर विधिवत विचार किया जाए।

    अदालत ने कहा कि फर्लो, पैरोल, आपातकालीन पैरोल या अंतरिम जमानत पर किसी भी पूर्व रिहाई का संदर्भ, साथ ही यह भी कि क्या दोषी ने समय पर आत्मसमर्पण किया और लगाई गई शर्तों का पालन किया था, प्राधिकारी द्वारा दर्ज किया जाना चाहिए।

    जस्टिस शर्मा ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अधिकारी निर्देशों का अक्षरशः पालन करेंगे ताकि पैरोल और फर्लो आवेदनों से संबंधित निर्णय निष्पक्षता और कारावास के सुधारात्मक उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए दिए जा सकें।

    अदालत ने आदेश दिया,

    "इस फैसले की कॉपी रजिस्ट्री द्वारा दिल्ली के सभी जेल अधीक्षकों और दिल्ली सरकार के गृह विभाग के सचिव को सूचना और अनुपालन के लिए भी भेजी जाए।"

    जज एक हत्या के दोषी द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रहे थे, जिसमें एक महीने के लिए पैरोल पर रिहाई की मांग की गई ताकि वह अपने परिवार के साथ सामाजिक संबंध फिर से स्थापित कर सके और समाज में फिर से घुल-मिल सके।

    उस व्यक्ति को शस्त्र अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया और उसे आजीवन कठोर कारावास की सजा सुनाई गई, जिसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में की थी।

    याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि दोषी के पैरोल का आवेदन केवल इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उसका समग्र जेल आचरण असंतोषजनक बताया गया।

    हालांकि, अदालत ने आगे कहा कि उसके नामांकन पत्र से पता चलता है कि पिछले एक वर्ष के दौरान उसका आचरण विशेष रूप से संतोषजनक पाया गया।

    अदालत ने पाया कि सक्षम प्राधिकारी ने विवादित आदेश पारित करते समय दोषी के छह वर्षों के अच्छे आचरण के साथ-साथ इस तथ्य को भी ध्यान में नहीं रखा कि उसने कभी भी उसे दी गई पैरोल या फर्लो की स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं किया।

    अदालत ने कहा,

    "ऐसा प्रतीत होता है कि सक्षम प्राधिकारी ने याचिकाकर्ता को वर्ष 2018-2019 में दी गई दो छोटी सजाओं पर यंत्रवत् भरोसा किया, बिना यह समझे कि तब से याचिकाकर्ता का आचरण संतोषजनक रहा है और उसे कई बार फर्लो का लाभ दिया गया।"

    Title: KANTA PRASAD v. STATE OF NCT OF DELHI

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