दिल्ली हाईकोर्ट ने 'कंस्ट्रक्टिव रेस ज्यूडिकाटा' की अवधारणा स्पष्ट की, कहा- यह रिट कार्यवाही पर भी लागू होता है

Shahadat

6 May 2025 11:01 AM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने कंस्ट्रक्टिव रेस ज्यूडिकाटा की अवधारणा स्पष्ट की, कहा- यह रिट कार्यवाही पर भी लागू होता है

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि यद्यपि सीपीसी के आदेश II नियम 2 और धारा 11 (न्यायिक निर्णय के सिद्धांत से संबंधित) में निहित प्रावधान रिट कार्यवाही पर सख्ती से लागू नहीं हो सकते हैं, तो भी कंस्ट्रक्टिव रेस ज्यूडिकाटा (Constructive Res Judicata) के सिद्धांत सहित इसमें निहित व्यापक सिद्धांत रिट कार्यवाही पर भी लागू होंगे।

    चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा,

    “नागरिक प्रक्रिया संहिता द्वारा निर्धारित न्यायिक निर्णय का सिद्धांत यद्यपि तकनीकी या कृत्रिम प्रतीत होता है, तथापि उक्त सिद्धांत सार्वजनिक नीति के विचारों पर भी आधारित है, क्योंकि यदि कंस्ट्रक्टिव रेस ज्यूडिकाटा के सिद्धांत को रिट कार्यवाही पर लागू नहीं किया जाता तो यह ऐसी स्थिति पैदा कर सकता है, जहां एक पक्ष एक के बाद एक कार्यवाही करने का हकदार होगा। हर बार नए आधारों का आग्रह करेगा, जो सार्वजनिक नीति के विचार के साथ असंगत होगा।”

    सीपीसी की धारा 11 में रेस जुडिकाटा का सिद्धांत शामिल है, जिसके अनुसार, यदि उसी मुद्दे से संबंधित पहले के मुकदमे की सुनवाई हो चुकी है तो उन्हीं पक्षों के बीच दावे के संबंध में बाद में मुकदमा दायर करने पर रोक लगा दी जाती है।

    कंस्ट्रक्टिव रेस ज्यूडिकाटा का सिद्धांत रेस जुडिकाटा के सिद्धांत का विस्तार है। कानून में इस सिद्धांत की उत्पत्ति सीपीसी की धारा 11 के साथ आदेश II नियम 2 में निहित प्रावधानों में पाई जा सकती है।

    सीपीसी की धारा 11 में संलग्न स्पष्टीकरण IV में यह प्रावधान है कि कोई भी मामला जिसे किसी पूर्ववर्ती मुकदमे में बचाव या हमले का आधार बनाया जा सकता था या बनाया जाना चाहिए था,, उसे ऐसे मुकदमे में सीधे और मूल रूप से मुद्दा माना जाएगा।

    आदेश II नियम 2 दावे के भाग के त्याग से संबंधित है, जिसके अनुसार, ऐसी स्थिति में जहां वादी अपने दावे के किसी भाग के संबंध में मुकदमा करने से चूक जाता है, या जानबूझकर त्याग देता है, वह बाद में अपने दावे के छूटे हुए भाग या त्यागे गए दावे के संबंध में मुकदमा नहीं कर सकता।

    इस समय धारा 141 पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है, जिसके अनुसार संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत किसी भी कार्यवाही पर रेस जुडिकाटा का सिद्धांत लागू नहीं होता।

    हालांकि, हाईकोर्ट ने माना कि उक्त प्रावधान के बावजूद, यह अच्छी तरह से स्थापित है कि क्रमिक रिट कार्यवाही की स्थिरता और रेस जुडिकाटा के सिद्धांत के अनुप्रयोग के संबंध में सार्वजनिक नीति का विचार भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

    इस प्रकार, इसने माना कि कंस्ट्रक्टिव रेस ज्यूडिकाटा का सिद्धांत रिट कार्यवाही पर लागू होगा। इसके विपरीत कुछ भी कहना स्पष्ट रूप से सार्वजनिक नीति के विरुद्ध होगा, "क्योंकि निर्णयों की अंतिमता इसका एक महत्वपूर्ण पहलू है"।

    इसने देवीलाल मोदी बनाम बिक्री कर अधिकारी, रतलाम और अन्य (1964) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि रिस जुडिकाटा का सिद्धांत रिट कार्यवाही पर भी लागू होगा।

    उत्तर प्रदेश राज्य बनाम नवाब हुसैन (1977) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी इसी प्रकार का दृष्टिकोण व्यक्त किया गया, जिसमें कहा गया कि ऐसी स्थिति हो सकती है कि तथ्यों का एक ही समूह दो या अधिक कारण उत्पन्न कर सकता है। तथापि, ऐसे मामले में यदि किसी व्यक्ति को एक समय में एक कारण चुनने और मुकदमा करने की अनुमति दी जाती है तथा दूसरे को बाद के मुकदमे के लिए सुरक्षित रखा जाता है तो इससे मुकदमे का बोझ बढ़ जाएगा। इसलिए इस प्रकार की कार्रवाई कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगी।

    इस प्रकार, शिकायतकर्ताओं और सरकारी कर्मचारियों को अवार्ड प्रदान करने के लिए दिशा-निर्देश, 2015 के खंड 3.3 को याचिकाकर्ता की चुनौती खारिज कर दी गई।

    दिशा-निर्देशों में कुछ अधिनियमों, अर्थात् सीमा शुल्क अधिनियम, 1962, केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम, 1944, स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (NDPS Act) और वित्त अधिनियम, 1994 के अंतर्गत उल्लंघन/शुल्क/सेवा कर की चोरी आदि के संबंध में सूचना देने वाले शिकायतकर्ता और सरकारी कर्मचारियों को अवार्ड प्रदान करने का प्रावधान है।

    धारा 3.3 अवार्ड प्रदान करने के लिए मानदंड निर्धारित करती है और सक्षम प्राधिकारी को मामले-दर-मामला आधार पर अवार्ड के मूल्यांकन के लिए विवेक का प्रयोग करने की अनुमति देती है।

    याचिकाकर्ता इस मामले में उसे दिए गए इनाम की मात्रा से व्यथित था। इसलिए उसने इस प्रावधान को चुनौती दी।

    हालांकि, हाईकोर्ट ने पाया कि इनाम की मात्रा के बारे में याचिकाकर्ता के दावे को हाईकोर्ट ने मुकदमे के पिछले दौर में पहले ही खारिज कर दिया था।

    यद्यपि याचिकाकर्ता ने उन कार्यवाहियों में दिशानिर्देशों के खंड 3.3 को चुनौती नहीं दी थी, हाईकोर्ट ने कहा कि यह प्रार्थना याचिकाकर्ता के लिए तब उपलब्ध थी। इसलिए वर्तमान रिट याचिका कंस्ट्रक्टिव रेस ज्यूडिकाटा के सिद्धांत द्वारा वर्जित है।

    अदालत ने चुनौती खारिज करते हुए कहा,

    "दिशानिर्देशों के खंड 3.3 को चुनौती, जिसे याचिकाकर्ता ने मुकदमेबाजी के पिछले दौर में छोड़ दिया था, हमारी राय में कंस्ट्रक्टिव रेस ज्यूडिकाटा के सिद्धांत को लागू करके तत्काल रिट याचिका, जिसमें दिशानिर्देशों के खंड 3.3 को असंवैधानिक बताते हुए उसे रद्द करने की प्रार्थना की गई, वह बनाए रखने योग्य नहीं होगी। यदि ऐसी चुनौती की अनुमति दी जाती है तो याचिकाकर्ता और प्रतिवादियों के बीच मुकदमेबाजी का कोई अंत नहीं होगा। कंस्ट्रक्टिव रेस ज्यूडिकाटा का सिद्धांत एक मुद्दे पर मुकदमों की बहुलता को रोकने के लिए सार्वजनिक नीति के रूप में विकसित हुआ है।"

    केस टाइटल: एससी गुप्ता बनाम भारत संघ और अन्य।

    Next Story