दिल्ली हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग केस में तीन आरोपियों को जमानत दी, ED के रवैये को बताया मनमाना

Amir Ahmad

29 Sept 2025 12:25 PM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग केस में तीन आरोपियों को जमानत दी, ED के रवैये को बताया मनमाना

    दिल्ली हाईकोर्ट ने 641 करोड़ रुपये के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में तीन आरोपियों विपिन यादव, अजय और राकेश करवा को ज़मानत दी। अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्यवाही पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुख्य आरोपी रोहित अग्रवाल जिसका रोल अधिक गंभीर बताया गया, उसको गिरफ्तार न करना और अन्य आरोपियों को जेल में रखना स्पष्ट रूप से मनमाना है।

    जस्टिस अमित महाजन ने कहा,

    “जब ऐसे आरोपी को गिरफ्तार ही नहीं किया गया, जिसका रोल आवेदकों से अधिक गंभीर बताया गया। एक ऐसे व्यक्ति को भी शामिल नहीं किया गया, जिस पर म्यूल अकाउंट के संचालन में मदद करने का आरोप है तो ED का यह रवैया मनमाना प्रतीत होता है। ऐसे में समानता का लाभ आवेदकों से नहीं छीना जा सकता।”

    मामले में आरोप है कि अभियुक्तों ने नकली निवेश योजनाओं फर्जी नौकरियों और अन्य धोखाधड़ी गतिविधियों के ज़रिए भारतीय नागरिकों से 641 करोड़ रुपये की ठगी की। CBI की जांच में सामने आया कि 937 बैंक खातों में से 12 खाते इन आरोपियों और उनके सहयोगियों द्वारा संचालित किए जा रहे थे।

    ED ने दावा किया कि अजय और विपिन ने पूछताछ में सहयोग नहीं किया दस्तावेज़ छिपाए और धन के स्रोत की जानकारी नहीं दी। वहीं राकेश करवा पर तलाशी के दौरान फरार होने डिजिटल सबूत नष्ट करने और समन की अवहेलना करने का आरोप था। दूसरी ओर बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया है और ED केवल सह-अभियुक्त रोहित अग्रवाल के बयान पर निर्भर है, जबकि अग्रवाल को अब तक गिरफ्तार भी नहीं किया गया।

    दालत ने कहा कि अजय और विपिन लेन-देन की श्रृंखला में अंतिम चरण पर थे जबकि अग्रवाल को अपराध से प्राप्त धन एकत्र करने में प्रत्यक्ष भूमिका निभाने वाला बताया गया। राकेश करवा की भूमिका भी अग्रवाल के समान मानी गई लेकिन फिर भी अग्रवाल को गिरफ्तार नहीं किया गया।

    जस्टिस महाजन ने यह भी टिप्पणी की कि आरोपियों की गिरफ्तारी नवंबर, 2024 और जनवरी, 2025 में हुई थी। हालांकि, जांच अब तक पूरी नहीं हुई और गवाहों की बड़ी संख्या देखते हुए ट्रायल जल्द समाप्त होने की संभावना नहीं है। ऐसे में लंबी कैद को देखते हुए ज़मानत उचित है।

    अदालत ने अंत में कहा कि आवेदकों का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और उनके ज़मानत पर रहने से अपराध करने की संभावना भी नहीं है।

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