दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: आरोपित को नोटिस दिए बिना जांच अवधि बढ़ाना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन, NDPS मामले में डिफॉल्ट जमानत मंजूर
Amir Ahmad
12 Dec 2025 6:08 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने NDPS मामले में आरोपी को डिफॉल्ट जमानत देते हुए कहा कि जांच अवधि बढ़ाने के लिए अदालत द्वारा लिया गया फैसला यदि आरोपी की उपस्थिति या उसे नोटिस दिए बिना किया जाए तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का गंभीर उल्लंघन है।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि जब भी जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाने का अनुरोध किया जाता है। आरोपी की शारीरिक या वर्चुअल उपस्थिति अनिवार्य है।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया कोई औपचारिकता नहीं बल्कि एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय है, जिससे आरोपी को जानकारी मिलती है कि उसके खिलाफ क्या हो रहा है और उसे आपत्ति जताने का अवसर भी मिलता है।
अदालत ने कहा,
“यदि आरोपी को न तो उपस्थित किया जाए और न ही सूचित किया जाए तो यह प्रक्रिया उसके लिए अनुचित हो जाती है। चूंकि समय बढ़ाने का आदेश सीधे उसके डिफॉल्ट जमानत के अधिकार को प्रभावित करता है, इसलिए आरोपी की अनुपस्थिति में दिया गया आदेश गंभीर संवैधानिक त्रुटि है।”
ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द आरोपी को डिफॉल्ट जमानत
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा जांच अवधि 120 दिन बढ़ाने के आदेश खारिज करते हुए आरोपी जैवर्धन धवन को डिफॉल्ट जमानत दी।
जैवर्धन को मई में अंतरराज्यीय ड्रग तस्करी रैकेट के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया। NCB ने जनवरी में एक DHL पार्सल से 3.6 किलो कोडीन फॉस्फेट टैबलेट जब्त करने के बाद दिल्ली, गाजियाबाद, हरिद्वार और देहरादून में कई ठिकानों से और भी खेप बरामद की।
हालाँकि, आरोपी का कहना था कि उसके घर से केवल 29.89 ग्राम संदिग्ध टैबलेट बरामद किए गए तथा उसके कब्जे से कोई व्यावसायिक मात्रा नहीं मिली। उसने यह भी आरोप लगाया कि बरामदगी फर्जी है और सैंपलिंग में 69 दिनों की देरी NDPS Act की धारा 52A का उल्लंघन है।
आरोपी ने आरोप पत्र दाखिल करने के लिए समय बढ़ाए जाने के आदेश तथा डिफॉल्ट जमानत खारिज किए जाने को चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट: आरोपी को नोटिस न देना मौलिक त्रुटि
जस्टिस कृष्णा ने कहा कि जब जांच अवधि बढ़ाने की याचिका सुनी गई उस समय आरोपी न तो उपस्थित था और न ही उसे कोई नोटिस दिया गया। यह प्रक्रिया स्थापित कानूनी सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन है।
अदालत ने कहा,
“आरोपी की अनुपस्थिति और नोटिस न देना कोई छोटी तकनीकी गलती नहीं, बल्कि गंभीर गैर-कानूनी कृत्य है, जो अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों का हनन करता है।”
डिफॉल्ट जमानत स्वतः लागू
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब समय बढ़ाने का आदेश ही अवैध है तो आरोपी का डिफॉल्ट जमानत का अधिकार स्वतः प्रभावी हो जाता है।
अदालत ने कहा कि आरोपी को अनिवार्य जानकारी दिए बिना समय विस्तार का आदेश मूल रूप से त्रुटिपूर्ण है। इसके कारण आरोपी को डिफॉल्ट जमानत पाने का पूर्ण अधिकार प्राप्त होता है।

