कर्मचारियों को केवल उसी तत्काल निचले पद पर वापस किया जा सकता है, जहां से उन्हें पदोन्नत किया गया, न कि सबसे निचले पद पर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
Shahadat
26 Oct 2025 11:03 PM IST

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि किसी कर्मचारी को केवल उसी तत्काल निचले पद पर वापस किया जा सकता है जहां से उन्हें पदोन्नत किया गया और उन्हें उससे निचले पद पर वापस करना असंवैधानिक और कानून की दृष्टि से अनुचित है।
पृष्ठभूमि तथ्य
याचिकाकर्ता की नियुक्ति शुरू में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में तकनीशियन ग्रेड-III के पद पर हुई। उन्हें क्रमिक रूप से पदोन्नति मिली। वे कनिष्ठ अभियंता (विद्युत) के पद पर पहुंचे। 15.07.2013 को उन्हें 19.06.2013 से 15.07.2013 तक अनधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने के लिए आरोप-पत्र जारी किया गया। विभागीय जांच के बाद अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने सेवा से हटाने का कठोर दंड लगाया।
याचिकाकर्ता ने इस आदेश के विरुद्ध अपील दायर की। अपीलीय प्राधिकारी ने दंड में संशोधन किया। इसलिए याचिकाकर्ता को तीन वर्ष की अवधि के लिए जूनियर इंजीनियर (विद्युत) के पद से तकनीशियन ग्रेड-III के पद पर वापस भेज दिया गया। व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने पुनर्विचार याचिका दायर की। पुनर्विचार प्राधिकारी ने वापसी बरकरार रखी। हालांकि, दंड की अवधि तीन वर्ष से घटाकर एक वर्ष कर दी। इसके बाद उसे जूनियर इंजीनियर के पद पर बहाल किया जाना था। याचिकाकर्ता ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, जबलपुर में आवेदन दायर करके इस दंड को चुनौती दी। हालांकि, न्यायाधिकरण ने आवेदन खारिज कर दिया।
न्यायाधिकरण के आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि न्यायाधिकरण द्वारा जूनियर इंजीनियर (विद्युत) के पद से तकनीशियन ग्रेड-III के पद पर वापस भेजने की सजा की पुष्टि करना अनुचित था। याचिकाकर्ता ने रेलवे सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियम, 1968 के नियम 6(vi) का हवाला दिया। यह वेतन, ग्रेड, पद या सेवा के निचले समयमान में पदावनति के प्रमुख दंड का प्रावधान करता है। यह तर्क दिया गया कि इस नियम के अनुसार, किसी पदोन्नत व्यक्ति को केवल उसी निम्नतर पद पर वापस भेजा जा सकता है, जहां से उसे पदोन्नत किया गया, न कि उसकी सेवा के निम्नतम पद पर। इसलिए याचिकाकर्ता को मास्टर क्राफ्ट्समैन के पद पर वापस भेजा जाना चाहिए, जो कि जूनियर इंजीनियर के पद पर पदोन्नति से पहले उसका निम्नतम पद था।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के कदाचार की प्रकृति और गंभीरता को देखते हुए उसे दी गई सजा उचित और आनुपातिक थी। प्रतिवादियों ने न्यायाधिकरण के आदेश का समर्थन किया और रिट याचिका को खारिज करने का अनुरोध किया।
न्यायालय के निष्कर्ष
न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता को जूनियर इंजीनियर (विद्युत) के पद से तकनीशियन ग्रेड-III के पद पर वापस भेजने का दंड कानूनी रूप से उचित है। न्यायालय ने रेलवे सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियम, 1968 के नियम 6(vi) का उल्लेख किया, जिसमें वेतन, ग्रेड, पद या सेवा के निम्नतर समयमान में पदावनति के प्रमुख दंड का प्रावधान है। यह माना गया कि "पद में कमी" के संदर्भ में पद शब्द आधिकारिक पदानुक्रम के भीतर एक विशिष्ट स्तरीकरण को दर्शाता है।
न्यादर सिंह बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया गया, जिसमें यह माना गया कि पद में कमी का अर्थ किसी वर्ग, ग्रेड या श्रेणी से निचले पद पर स्थानांतरण है। इसके अलावा, हुसैन सासन साहेब कलादगी बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले का हवाला दिया गया, जिसमें यह माना गया कि किसी पदोन्नत व्यक्ति को केवल उसी पद पर वापस भेजा जा सकता है, जहां से उसे पदोन्नत किया गया था, उससे निचले पद पर नहीं।
न्यायालय ने यह माना कि अपीलीय प्राधिकारी और पुनरीक्षण प्राधिकारी दोनों ने याचिकाकर्ता पर जूनियर इंजीनियर (विद्युत) के पद से तकनीशियन ग्रेड-III के पद पर वापस भेजने का दंड लगाना अनुचित था, क्योंकि उसे मास्टर क्राफ्ट्समैन के निचले पद पर वापस भेजा जाना चाहिए, जिस पर वह जूनियर इंजीनियर (विद्युत) के पद पर पदोन्नत होने से पहले कार्यरत था। हालांकि, उन्हें तकनीशियन ग्रेड-III के निम्नतम पद पर वापस भेज दिया गया, जिस पर उनकी मूल नियुक्ति हुई, जो कि न्यायसंगत नहीं है और कानून की दृष्टि से अनुचित है।
तदनुसार, न्यायाधिकरण के आदेश को उस सीमा तक रद्द कर दिया गया, जिस सीमा तक उसने याचिकाकर्ता को तकनीशियन ग्रेड-III के पद पर वापस भेजा था। यह माना गया कि याचिकाकर्ता को एक वर्ष की अवधि के लिए मास्टर क्राफ्ट्समैन के पद पर वापस भेजा जाएगा, जबकि पुनर्विचार प्राधिकारी द्वारा लगाई गई अन्य सभी शर्तें यथावत रहेंगी।
उपरोक्त टिप्पणियों और निर्देशों के साथ याचिकाकर्ता कर्मचारी द्वारा दायर रिट याचिका को न्यायालय ने आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया।
Case Name : C.C.S. Rao Vs. Union of India & Others

