पुत्र जीवित है तो पुत्री मिताक्षरा हिंदू पिता की संपत्ति की उत्तराधिकारी नहीं हो सकती, जिनकी मृत्यु 1956 से पहले हुई थी: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
Shahadat
17 Oct 2025 10:54 AM IST

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि मिताक्षरा विधि के अनुसार, यदि पुत्र जीवित है तो पुत्री अपने मृत हिंदू पिता की संपत्ति की उत्तराधिकारी नहीं हो सकती, जिनकी मृत्यु 1956 (हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के लागू होने के वर्ष) से पहले हुई।
जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की एकल पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि पुत्र की अनुपस्थिति में पुत्री ऐसी संपत्ति पर अपना अधिकार जता सकती है।
कोर्ट ने कहा,
“यह विधिक स्थिति सर्वविदित है कि मिताक्षरा कानून के अनुसार, पुत्री, अधिनियम, 1956 के लागू होने से पूर्व अपने पिता की संपत्ति की उत्तराधिकारिणी नहीं है...मिताक्षरा कानून के अंतर्गत, पुरुष की स्व-अर्जित संपत्ति भी केवल उसके पुरुष वंशज को हस्तांतरित होती है और केवल पुरुष वंशज के अभाव में ही वह अन्य उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित होती है। उत्तराधिकार कानून के अनुसार, पुरुष की स्व-अर्जित संपत्ति उसके पुरुष वंशज को हस्तांतरित होती है और केवल पुरुष वंशज के अभाव में ही वह अन्य उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित होती है।”
अपीलकर्ता और प्रतिवादी नंबर 1 के पिता भाई-बहन है। उनके पिता की मृत्यु के बाद प्रतिवादी नंबर 1 के पिता के पास संपत्ति का अधिकार था। इसके बाद उन्होंने प्रतिवादी नंबर 1 के पक्ष में संपत्ति के दाखिल-खारिज के लिए क्षेत्राधिकारी नायब तहसीलदार के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया। इसकी जानकारी होने पर अपीलकर्ता ने इस दाखिल-खारिज पर आपत्ति दर्ज की, जिसे अस्वीकार कर दिया गया।
व्यथित होकर अपीलकर्ता ने विवादित संपत्ति में अपने हिस्से का दावा करते हुए सिविल जज, वर्ग-II, सरगुजा के कोर्ट में वाद दायर किया। हालांकि, सिविल जज ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए इस दावा खारिज कर दिया कि उसके पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के लागू होने से पहले हो गई। इसलिए यह माना गया कि अधिनियम में 2005 का संशोधन अपीलकर्ता के लिए लाभकारी नहीं होगा, क्योंकि उसका मामला पुराने मिताक्षरा कानून द्वारा शासित होगा, जो 1956 से पहले लागू था।
यद्यपि सिविल जज के निर्णय के विरुद्ध एडिशनल जिला जज के न्यायालय में अपील की गई। हालांकि, परिणाम में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सका। इस प्रकार, हाईकोर्ट के समक्ष सीपीसी की धारा 100 के अंतर्गत द्वितीय अपील प्रस्तुत की गई।
पीठ ने तीन महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न निर्धारित करते हुए अपील स्वीकार कर ली, जो मूलतः हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और उसके संशोधन अधिनियम, 2005 की इस मामले में प्रयोज्यता से संबंधित थे। एक प्रश्न यह भी था कि यदि विभाजन 1956 से पहले हुआ हो तो अपीलकर्ता को उत्तराधिकार के रूप में संपत्ति प्राप्त करने का अधिकार होगा या नहीं।
शिकायत का अवलोकन करने के बाद कोर्ट ने रेखांकित किया कि याचिका में अपीलकर्ता के पिता की मृत्यु के वर्ष का कहीं भी उल्लेख नहीं है। हालांकि, प्रतिवादी नंबर 1 ने अपने लिखित बयान में स्पष्ट रूप से यह दलील दी कि अपीलकर्ता के पिता का निधन वर्ष 1950-51 में हुआ था। न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी नंबर 1 द्वारा ऐसी दलील दिए जाने के बावजूद, अपीलकर्ता ने अपनी दलील में संशोधन करके इसका विरोध करने से परहेज किया। इसके अतिरिक्त, एक गवाह की गवाही पर भी भरोसा किया गया, जिसने अपने साक्ष्य दर्ज करते समय (17.10.2008) कहा था कि अपीलकर्ता के पिता की मृत्यु साठ वर्ष पहले हो गई थी।
अर्शनूर सिंह बनाम हरपाल कौर एवं अन्य (2019) और अरुणाचल गौंडर (मृत) बनाम पोन्नुसामी एवं अन्य, 2022 लाइवलॉ (एससी) 71 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कोर्ट ने यह मत व्यक्त किया कि हिंदू उत्तराधिकार विधि (संशोधन) अधिनियम, 1929, उत्तराधिकार से संबंधित शास्त्रीय हिंदू विधि की मूलभूत अवधारणाओं को संशोधित करने के लिए नहीं बनाया गया, बल्कि इसने केवल कुछ महिला उत्तराधिकारियों को शामिल करके पुरुष संतान की अनुपस्थिति में उत्तराधिकार प्राप्त करने वाले उत्तराधिकारियों की संख्या बढ़ा दी थी।
कोर्ट ने आगे कहा,
अरुणाचल गौंडर मामले (सुप्रा) में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित विधि से यह स्पष्ट है कि उत्तराधिकार की मिताक्षरा विधि, उस व्यक्ति पर लागू होती है, जिसकी मृत्यु 1956 से पहले हो गई हो और जो प्राचीन मिताक्षरा विधि द्वारा शासित हो, किसी पुरुष की पत्नी या पुत्री को उसकी पृथक संपत्ति तभी विरासत में मिलेगी, जब उसकी मृत्यु बिना पुत्र संतान के हुई हो।"
इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकाला गया कि यदि मिताक्षरा कानून द्वारा शासित किसी हिंदू की मृत्यु 1956 से पहले हो जाती है तो उसकी पृथक संपत्ति पूरी तरह से उसके पुत्र को हस्तांतरित हो जाएगी। पुत्री ऐसी संपत्ति में केवल पुरुष संतान की अनुपस्थिति में ही अधिकार का दावा कर सकती है। न्यायालय ने आगे यह भी माना कि हिंदू उत्तराधिकार विधि (संशोधन) अधिनियम, 1929 पुत्र के अपने पिता की संपत्ति के उत्तराधिकार के पूर्ण अधिकार को प्रभावित नहीं करता।
तदनुसार, दूसरी अपील में कोई दम नहीं पाया गया और अपीलकर्ता के विरुद्ध विधि के सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर दिए गए।
दिलचस्प बात यह है कि अरुणाचल गौंडर (सुप्रा) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि पुत्री अपने हिंदू पिता की सहदायिक संपत्ति के विभाजन में प्राप्त स्व-अर्जित संपत्ति या हिस्से को उत्तराधिकार में प्राप्त करने में सक्षम है, जिनकी मृत्यु बिना वसीयत के हुई हो।
कोर्ट ने आगे यह भी माना-
"एक विधवा या पुत्री का स्व-अर्जित संपत्ति या सहदायिक संपत्ति के विभाजन में प्राप्त हिस्से को उत्तराधिकार में प्राप्त करने का अधिकार, जिसकी मृत्यु बिना वसीयत के हुई हो, न केवल पुराने प्रथागत हिंदू कानून के तहत, बल्कि विभिन्न न्यायिक निर्णयों द्वारा भी अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त है..."
Case Title: Smt. Ragmania (Dead) through LRs v. Jagmet & Ors.

