प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन में पारित वैधानिक मध्यस्थ के अवॉर्ड के खिलाफ रिट सुनवाई योग्य: कलकत्ता हाईकोर्ट

Avanish Pathak

12 Sep 2022 10:44 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के तहत वैधानिक मध्यस्थ द्वारा पारित एक अवॉर्ड, जहां न तो मध्यस्थता का नोटिस दिया गया था और न ही अपीलकर्ताओं को अवॉर्ड की कॉपी दी गई थी, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

    जस्टिस अरिजीत बनर्जी और जस्टिस कौशिक चंदा की खंडपीठ ने कहा कि ए एंड सी एक्ट की धारा 34 के तहत वैकल्पिक प्रभावकारी उपचार की उपलब्धता प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्‍लंघन में पास एक अवॉर्ड के खिलाफ रिट याचिका के सुनवाई योग्य होने के ‌लिए बाधा नहीं हो सकती।

    कोर्ट ने आगे कहा कि एक ही दिन में बढ़े हुए मुआवजे की 299 याचिकाओं के निस्तारण की मध्यस्थ की कार्रवाई, वह भी पक्षों को सुने बिना, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है....

    तथ्य

    प्रतिवादी/एनएचएआई ने वर्ष 2009 में राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के तहत अपीलकर्ताओं की भूमि का अधिग्रहण किया था। इसके बाद, वर्ष 2015 में प्रतिवादी ने अपीलकर्ताओं को मुआवजे की राशि एकत्र करने के लिए नोटिस दिया और उन्हें मध्यस्थ के समक्ष बढ़े हुए मुआवजे का दावा करने के उनके अधिकार के बारे में भी सूचित किया गया।

    तदनुसार, अपीलकर्ताओं ने बढ़े हुए मुआवजे के लिए आवेदन किया। हालांकि अपीलकर्ताओं को कभी भी मध्यस्थता का कोई नोटिस नहीं दिया गया और मध्यस्थ ने पक्षों को सुने बिना ही निर्णय पारित कर दिया। निर्णय से व्यथित होकर अपीलकर्ताओं ने रिट याचिका दायर की।

    एकल पीठ ने अपीलकर्ताओं को ए एंड सी एक्ट की धारा 34 के तहत अवॉर्ड को चुनौती देने के निर्देश के साथ याचिका का निस्तारण किया। कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपीलकर्ताओं ने मौजूदा अपील दायर की।

    विवाद

    अपीलकर्ताओं ने निम्नलिखित आधार पर अवॉर्ड को चुनौती दी

    -अपीलकर्ताओं को कभी भी मध्यस्थता का नोटिस नहीं दिया गया था, इस प्रकार, अपीलकर्ताओं को अपना मामला पेश करने का कोई अवसर दिए बिना अवॉर्ड पारित किया गया है।

    -अपीलकर्ताओं को मध्यस्थता की कार्यवाही के परिणाम के बारे में भी जानकारी नहीं थी क्योंकि उन्हें अवॉर्ड की एक प्रति भी नहीं दी गई थी।

    -मध्यस्थ ने कानून के प्रासंगिक प्रावधानों को ध्यान में रखे बिना मुआवजे का निर्धारण किया।

    प्रतिवादी ने निम्नलिखित आधार पर याचिका के सुनवाई योग्य होने पर आपत्ति जताई

    -सभी हितधारकों को सुनने के बाद मध्यस्थ ने निर्णय पारित किया और मुआवजे की दर में वृद्धि की।

    -अधिनियम की धारा 3एच(6) के तहत मुआवजे की बढ़ी हुई दर को सक्षम अधिकारी के पास जमा करा दिया गया है और अपीलार्थी को बढ़ा हुआ मुआवजा भी मिल गया है।

    -एकल न्यायाधीश द्वारा अपीलकर्ताओं को ए एंड सी एक्ट की धारा 34 के तहत वैकल्पिक प्रभावकारी उपचार का लाभ उठाने का निर्देश देना उचित था क्योंकि हाईकोर्ट द्वारा अपने रिट अधिकार क्षेत्र में मध्यस्थ अवॉर्डों से संबंधित शिकायत पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।

    विश्लेषण

    अदालत ने पाया कि बढ़े हुए मुआवजे के लिए 299 याचिकाओं का निस्तारण करते समय केवल 96 भूमि मालिक मौजूद थे और केवल 3 पक्षों को अपने मामले पेश करने का मौका दिया गया था। अदालत ने माना कि मध्यस्थ का कार्य प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

    न्यायालय ने माना कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के तहत वैधानिक मध्यस्थ द्वारा पारित निर्णय जहां न तो मध्यस्थता का नोटिस दिया गया था और न ही अपीलकर्ताओं को अवॉर्ड की प्रति दी गई थी, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

    न्यायालय ने यह भी देखा कि ए एंड सी एक्ट की धारा 34 के तहत वैकल्पिक प्रभावकारी उपयार की उपलब्धता प्राकृतिक न्याय के खुले उल्लंघन में पारित अवॉर्ड के खिलाफ रिट याचिका के सुनवाई योग्य होने के लिए बाधा नहीं हो सकती है।

    तदनुसार, न्यायालय ने मध्यस्थ निर्णय को रद्द कर दिया और मामले अधिकारी के पास वापस भेज दिया, जिसके अपीलकर्ताओं को उनके मामलों की योग्यता के आधार पर सुनने के बाद मुआवजे का निर्धारण करने के लिए मध्यस्थ के रूप में अधिकृत किया गया है।

    केस टाइटल: श्री गणेश चंद्र और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य। MAT No 1520 Of 2019

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