कामगार मुआवजा अवॉर्ड को यह रिकॉर्ड करना चाहिए कि क्या चोट/बीमारी सेवा के कर्तव्यों की आनुषंगिक हैः आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Avanish Pathak

17 Sep 2022 10:22 AM GMT

  • कामगार मुआवजा अवॉर्ड को यह रिकॉर्ड करना चाहिए कि क्या चोट/बीमारी सेवा के कर्तव्यों की आनुषंगिक हैः आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि कामगार मुआवजा अधिनियम, 1923 के तहत एक अवॉर्ड में आयुक्त को विशिष्ट रूप से यह रिकॉर्ड करना चाहिए कि क्या चोट कर्मचारी को रोजगार के दरमियान हुई दुर्घटना के कारण लगी है या कर्मचारी को व्यवसायिक बीमारी हुई, जो उस रोजगार के कारण होती है।

    संक्षिप्त तथ्य

    मौजूदा मामले में न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने कर्मकार मुआवजा अधिनियम, 1923 की धारा 30 के तहत अपील दायर की थी, जिसमें उसने मुआवजे की अनुमति देने वाले आयुक्त के फैसले को चुनौती दी थी।

    पहली प्रतिवादी के पति की 2005 में मृत्यु हो गई। प्रतिवादियों ने लॉरी चालक और न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी के खिलाफ मुआवजे का दावा करते हुए कामगार मुआवजे के लिए आवेदन दायर किया। दलील दी कि रोजगार के दौरान चालक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए उसके पति को पेट दर्द हुआ और उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई।

    लॉरी चालक ने दावेदारों के मामले को स्वीकार किया और प्रस्तुत किया कि घटना की तारीख को अपीलकर्ता के साथ वाहन का बीमा किया गया था और पॉलिसी लागू थी। आयुक्त ने एक अवॉर्ड पारित किया, जिसमें कामगारों को 3,33,034 रुपये की राशि के मुआवजे की अनुमति दी गई।

    शामिल मुद्दे

    अपील में तैयार किए गए कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न थे:

    1. क्या आयुक्त का आदेश इस कानून के मद्देनजर सही था कि कामगार को होने वाली बीमारी उसके द्वारा किए गए कार्य से संबंधित होनी चाहिए?

    2. क्या आयुक्त का आदेश सही है जब कामगार को होने वाला रोग कामगार क्षतिपूर्ति अधिनियम की अनुसूची III में निर्दिष्ट व्यावसायिक रोग के अंतर्गत नहीं आता है?

    निर्णय

    कोर्ट ने कहा, कामगार को हुई पेट दर्द की बीमारी का उसके द्वारा किए गए काम से कोई संबंध नहीं था। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला कि कामगार पुरानी "इडियोपैथिक इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज" से पीड़ित था। इसके अलावा, उक्त रोग व्यावसायिक रोग के अंतर्गत नहीं आता है।

    कामगार मुआवजा अधिनियम की धारा 3(1) और 3(2) का केवल अवलोकन यह स्पष्ट करता है कि कर्मचारी को मुआवजे का भुगतान करना नियोक्ता का दायित्व है, यदि कर्मचारी को रोजगार के दरमियान हुई दुर्घटना के कारण लगी है या यदि कर्मचारी को ऐसी व्यावसायिक बीमारी हुई है, जो उस रोजगार के कारण होती है।

    जस्टिस रविनाथ तिलहरी ने मैकिनॉन मैकेंज़ी एंड कंपनी बनाम इब्राहिम महम्मद इस्साक (1969) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि दुर्घटना के मामले में, "कामगार पर यह साबित करने के सबूत का बोझ होता है कि चोट ड्यूटी से जुड़े खतरों के कारण लगी है....दुर्घटना और रोजगार के बीच कारण संबंध होना चाहिए।"

    मौजूदा निर्णय में यह देखा गया कि आयुक्त ने आदेश में कोई विशेष निष्कर्ष नहीं निकाला था कि दुर्घटना रोजगार के दरमियान हुई थी। अदालत ने कहा कि आयुक्त ने किसी मुद्दे को फ्रेम नहीं किया था और फैसले में भौतिक पहलुओं का निस्तारण नहीं किया था।

    उन परिस्थितियों का उल्लेख भी नहीं किया गया था, जिनके तहत दावे की अनुमति दी गई थी। इस प्रकार अपील की अनुमति दी गई और मामले को नए सिरे से विचार के लिए आयुक्त के पास भेज दिया गया।

    केस टाइटल: द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम श्रीमती एम लक्ष्मी रामतीर्थम

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