'उचित परिस्थितियों' के तहत अलग घर के लिए पत्नी का दावा क्रूरता नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

12 Oct 2023 5:19 AM GMT

  • उचित परिस्थितियों के तहत अलग घर के लिए पत्नी का दावा क्रूरता नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि "उचित परिस्थितियों" के तहत अलग घर के लिए पत्नी के दावे को पति के प्रति क्रूरता का कार्य नहीं माना जा सकता।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा,

    “ससुराल वालों के साथ मतभेद, उसकी अपनी कार्य प्रतिबद्धताएं या विचारों में मतभेद जैसी असंख्य स्थितियां हो सकती हैं, जो शादी को बनाए रखने के लिए अलग घर की उसकी मांग को उचित बना सकती हैं। जहां कुछ उचित कारण मौजूद हैं, वहां अलग घर के दावे को क्रूरता का कार्य नहीं कहा जा सकता।

    हालांकि, अदालत ने कहा कि भारतीय संदर्भ में जहां पति ने अपने माता-पिता के साथ संयुक्त परिवार में रहना चुना, उसे "केवल अपनी पत्नी की इच्छा पर" शादी के पहले दिन से अलग होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

    अदालत ने कहा,

    "व्यक्ति की अपने माता-पिता और जीवनसाथी के प्रति समान जिम्मेदारी होती है, जिसके लिए दोनों के बीच नाजुक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।"

    खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1)(आईए) और (आईबी) के तहत क्रूरता और परित्याग के आधार पर पति को तलाक देने के फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली पत्नी की अपील खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

    दोनों ने जनवरी 2012 में शादी की और तीन महीने बाद ही अलग हो गए।

    फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखते हुए अदालत ने कहा कि दोनों पक्षकारों के बीच विवाह न केवल बमुश्किल तीन महीने तक चला, बल्कि वैवाहिक अधिकारों से वंचित होने के कारण पूरी तरह से विफल हो गया।

    अदालत ने कहा,

    “इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि 12 साल से अधिक की अवधि में इस तरह का अभाव मानसिक क्रूरता के समान है जैसा कि समर घोष बनाम जया घोष (सुप्रा) के मामले में देखा गया है।“

    पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी ने उसके साथ क्रूरता की, क्योंकि उसने उस वैवाहिक घर में रहने से इनकार कर दिया जहां उसके माता-पिता उसके साथ रह रहे हैं और वह शुरू से ही अलग घर की मांग करने लगी थी। खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि पत्नी अलग घर के अपने दावे को सही नहीं ठहरा पाई।

    अदालत ने कहा,

    “वैवाहिक रिश्ते को पूर्ण वैवाहिक रिश्ते में बदलने से पहले पोषण, देखभाल, करुणा, सहयोग और समायोजन की आवश्यकता होती है। यहां ऐसा मामला है जहां अपीलकर्ता ने बमुश्किल तीन महीने में वैवाहिक घर छोड़ने का फैसला किया। उसके द्वारा दावा किया गया कोई भी आधार किसी भी सबूत से साबित नहीं हुआ है।”

    इसमें कहा गया कि पत्नी शादी के तीन महीने बाद बिना किसी कारण के पति से अलग हो गई और उसका उसके साथ अपने रिश्ते को फिर से शुरू करने का कोई इरादा नहीं है।

    अदालत ने कहा,

    "हमें अपील में कोई योग्यता नहीं मिली, जिसे लंबित आवेदनों के साथ खारिज किया जाता है।"

    अपीलकर्ता के लिए वकील: अशोक कुमार शर्मा, दुर्गेश गुप्ता, कमल पुंडीर, क्षितिज मुद्गल और अंशुल राजोरा और प्रतिवादी के वकील: राशिद हाशमी, वकील।

    केस टाइटल: एक्स वी. वाई

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