'शुभ मुहूर्त' के इंतजार में पत्नी ने 10 साल तक ससुराल जाने से इनकार कियाः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इसे 'परित्याग' बताते हुए पति को तलाक की मंजूरी दी

LiveLaw News Network

11 Jan 2022 9:54 AM GMT

  • शुभ मुहूर्त के इंतजार में पत्नी ने 10 साल तक ससुराल जाने से इनकार कियाः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इसे परित्याग बताते हुए पति को तलाक की मंजूरी दी
    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पति के पक्ष में तलाक की डिक्री देते हुए कहा है कि यह एक परित्याग का मामला है क्योंकि उसकी पत्नी ने वैवाहिक घर वापस लौटने के शुभ मुहूर्त की आड़ में दस वर्ष तक अपने मायके में रहना जारी रखा और ससुराल वापस आने से इनकार कर दिया।

    हाईकोर्ट ने पति की तरफ से दायर उस अपील को स्वीकार कर लिया है,जो उसने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने उसे तलाक की डिक्री देेने से इनकार कर दिया था।

    कोर्ट ने कहा कि

    ''यदि प्रतिवादी/पत्नी इस तथ्य के प्रति इतनी संवेदनशील है तो मामले की परिस्थितियों और मामले की प्रकृति को देखते हुए,यह शुभ क्षण का तथ्य उसके वैवाहिक घर को नष्ट कर देगा। उसे आगे बढ़ना चाहिए था,जिसका प्रयास उसके पति ने दो बार किया था परंतु उसने अपने पति को रोक दिया।''

    जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस रजनी दुबे की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि मामले के तथ्यों को देखते हुए पति हिंदू विवाह (एचएम) अधिनियम, 1955 की धारा 13 (आईबी) के तहत तलाक का डिक्री प्राप्त करने का हकदार है।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि एचएम अधिनियम की धारा 13 (आईबी) में 'परित्याग' को तलाक के आधार के रूप में रखा गया है क्योंकि यह अनिवार्य रूप से एक पति या पत्नी को पत्नी/पति द्वारा निरंतर अवधि (दो साल से कम नहीं)के लिए छोड़ देने के आधार पर विवाह के विघटन के बारे में बताता है।

    संक्षेप में मामला

    अपीलकर्ता (पति) और प्रतिवादी (पत्नी) की शादी 8 जुलाई, 2010 को हुई थी और वे 19 जुलाई, 2010 तक लगभग 11 दिनों तक साथ रहे। इसके बाद पत्नी के परिजन आए और किसी जरूरी काम के बहाने उसे वापस ले गए।

    इसके बाद, वह वापस नहीं आई और जब 2010 में दो मौकों पर पति ने उसे वापस लाने की कोशिश की, तो वह इस आधार पर वापस नहीं आई कि अभी शुभ मुहूर्त नहीं है। उसके बाद, प्रतिवादी / पत्नी ने कभी भी अपने पति के पास वापस आने के लिए स्वयं से इच्छा नहीं जताई।

    इसके बाद, अपीलकर्ता/पति ने दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए एक वाद दायर किया, जिसमें एकतरफा निर्णय दिया गया। पत्नी ने दावा किया कि दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए आवेदन का नोटिस प्रतिवादी / पत्नी को प्राप्त हुआ था, लेकिन वह अदालत के समक्ष पेश नहीं हो सकी, क्योंकि वह अपने (सरकारी) आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में फंस गई थी।

    इसके बाद, पति ने तलाक की डिक्री की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट में आवेदन दायर किया, हालांकि उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया क्योंकि कोर्ट ने कहा कि पति परित्याग का आधार साबित करने में असफल रहा है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए एक डिक्री प्राप्त करने के बाद भी इसे निष्पादन के लिए नहीं रखा गया था। इसलिए, इससे साफ है कि पति का इरादा परिवार को फिर से शुरू करने और बहाल करने का नहीं था। फैमिली कोर्ट के इसी आदेश को चुनौती देते हुए पति ने हाईकोर्ट का रुख किया।

    पत्नी की दलीलें

    दूसरी ओर, पत्नी ने तर्क दिया कि वह पति के साथ जाने के लिए तैयार थी, लेकिन शुभ समय शुरू होने पर वह उसे वापस लेने के लिए नहीं आया, जो कि उनकी परंपरा के अनुसार जरूरी था।

    उसने यह भी तर्क दिया कि उसने अपीलकर्ता/पति को नहीं छोड़ा था और वास्तव में उसका पति दुवीरागमन की प्रचलित प्रथा के अनुसार उसे वापस ले जाने में विफल रहा है। इसलिए प्रतिवादी की ओर से कोई परित्याग नहीं किया गया था।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने कहा कि पति और पत्नी दोनों के बयान से यह स्पष्ट है कि शुभ मुहूर्त पर ही पति के पास जाने के मुद्दे के कारण पत्नी और पति, दोनों ही एक दूसरे के साथ नहीं रह पाए।

    कोर्ट ने यह भी देखा कि पति और पत्नी का अलगाव 19 जुलाई, 2010 से शुरू हुआ था और अब तक लगभग 11 साल बीत चुके हैं।

    कोर्ट ने कहा कि

    ''शुभ समय सुखी पारिवारिक जीवन के लिए होता है; इसके बजाय वर्तमान मामले में, जैसा कि प्रतीत होता है कि शुभ मुहूर्त को पत्नी ने अपने वैवाहिक घर को शुरू करने के लिए एक बाधा के रूप में इस्तेमाल किया था। तथ्य यह सुझाव दे रहे हैं कि पत्नी ने इस बहाने से पति के पास जाने से खुद को रोकने में अधिक योगदान दिया है और दोनों पक्षकारों के बीच 11 साल से अधिक समय तक टेलीफोन पर कोई बातचीत या पत्रों का आदान-प्रदान नहीं हुआ।''

    आरसीआर की कार्यवाही में पत्नी के उपस्थित न होने के मामले पर न्यायालय ने कहा कि

    ''...अगर उसे इस तथ्य की जानकारी थी कि दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए आवेदन दायर किया गया है, यहां तक कि वह उसकेे पति द्वारा किए गए प्रयास के तथ्य के बारे में जानती थी,तो हो सकता है कि इस तरह के आवेदन पर निर्धारित तिथि पर उपस्थित होने के लिए उसे कुछ बाधा आई हो, लेकिन अगर वह पति के पास वापस जाने का कोई इरादा रखती थी तो वह इस बारे में बातचीत कर सकती थी और इस मुद्दे को सुलझा सकती थी।''

    इसके अलावा, कोर्ट का यह भी विचार था कि इस तथ्य को जानने के बावजूद कि पति द्वारा वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए प्रयास किए जा रहे हैं,पत्नी एकदम सुस्त बैठी रही,जो यह दर्शाता है कि पत्नी का अपने पति के पास जाने का कोई इरादा नहीं था।

    इस मामले की परिस्थितियों को देखते हुए अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि पति द्वारा अपने वैवाहिक घर को बहाल करने के लिए किए प्रयास किए गए थे,परंतु इसके बावजूद उसकी पत्नी ने सहयोग नहीं किया और वापस लौटने के लिए शुभ समय की आड़ में, वह लगातार अपने मायके में रहती रही।

    कोर्ट ने पति की याचिका को स्वीकार करते हुए तलाक की डिक्री द्वारा उनके विवाह के विघटन का आदेश दिया है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि,

    ''पत्नी अदालत के समक्ष आए वैवाहिक अधिकारों की बहाली के तथ्य को जानने के बाद अपने पति के साथ जा सकती थी, जो इस पूरे मुद्दे को हल कर देता।''

    केस का शीर्षक - संतोष सिंह बनाम अमिता सिंह

    केस उद्धरण- 2022 लाइव लॉ (सीएचएच) 1

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