पत्नी को अलग रहने वाले पति के घर की बिक्री में बाधा डालने का कोई अधिकार नहीं है जब वह उसे समान वैकल्पिक आवास देने को तैयार है: बॉम्बे हाईकोर्ट
Shahadat
11 Feb 2023 10:55 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि महिला को अपने अलग रह रहे पति के घर की बिक्री में बाधा डालने का अधिकार नहीं है, अगर वह उसे समान सुविधाओं के साथ किराए का आवास देने को तैयार है।
कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश में दखल देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें बकाया कर्ज चुकाने के लिए पति को फ्लैट बेचने की इजाजत दी गई। फैमिली कोर्ट ने पत्नी को आवास से बाहर जाने और उपयुक्त दो बेडरूम वाला किराये के फ्लैट चुनने का निर्देश दिया। यदि ऐसा नहीं होता है तो पत्नी को प्रति माह 50,000 रुपए देने के निर्देश दिए।
जस्टिस अमित बोरकर ने कहा,
"यह अच्छी तरह से स्थापित है कि पत्नी को पति के समान जीवन शैली जीने का अधिकार है। हालांकि, पति के स्वामित्व वाले फ्लैट की बिक्री में बाधा डालने का उसे कोई अधिकार नहीं है यदि पति आसपास के समान वैकल्पिक आवास देता है। यदि पति समान लाभ वाले वैकल्पिक किराये के आवास प्रदान करने के लिए तैयार है तो वह इसे इस आधार पर मना नहीं कर सकती है कि वह मौजूदा फ्लैट में रहने की आदी है।”
अदालत ने कहा कि ऐसा आदेश दोनों पक्षों के अधिकारों का ख्याल रखता है और पत्नी को यह कहते हुए नहीं सुना जा सकता कि वह बिक्री में बाधा डालेगी क्योंकि वह फ्लैट की आदी है।
मामला
पति ने 2021 में फैमिली कोर्ट में लंबित अपनी तलाक याचिका में फ्लैट बेचने की अर्जी दाखिल की। फैमिली कोर्ट ने आवेदन को स्वीकार कर लिया, जिसके बाद पत्नी ने हाईकोर्ट के समक्ष आदेश को चुनौती दी।
इस जोड़े ने 1996 में शादी की और उनकी 24 और 16 साल की दो बेटियां हैं।
एडवोकेट मोहित भारद्वाज के माध्यम से पति ने प्रस्तुत किया कि उसने फ्लैट के लिए रुपये की चौवालीस (44) किश्तों यानी ब्याज समेत 1.15 करोड़ रूपये का भुगतान किया। हालांकि, COVID-19 प्रतिबंधों के कारण वह यूके वापस नहीं जा पाया और उसे भारत में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। उसने कहा कि अब वह ईएमआई का भुगतान करने और दो घरों का खर्च वहन करने में असमर्थ हैं।
उसने इसके बदले किराया देने की पेशकश की। उसके वकील ने कहा कि अगर बैंक वसूली की कार्यवाही शुरू करता है तो उसकी वित्तीय विश्वसनीयता और क्रेडिट रिकॉर्ड को नुकसान होगा।
अजिंक्य उदाने के निर्देश पर पत्नी के वकील अभिजीत सरवटे ने दलील दी कि पति ने शेयर खरीदने के लिए फ्लैट गिरवी रखा था। यह आरोप लगाया गया कि उसका मुख्य उद्देश्य पत्नी को उसके वैवाहिक घर से बेदखल करना है। वकील ने इस बात से इनकार किया कि उसके पति को किसी भी वित्तीय समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
टिप्पणियां
कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश पर दोनों पक्षों के संतुलित अधिकारों का अवलोकन किया। यह अच्छी तरह से स्थापित है कि पत्नी को पति के समान जीवन शैली का नेतृत्व करने का अधिकार है।
अदालत ने कहा,
"यदि पति समान लाभ वाले वैकल्पिक किराये के आवास देने के लिए तैयार है तो वह इसे इस आधार पर मना नहीं कर सकती कि वह मौजूदा फ्लैट में रहने की आदी है।"
पत्नी के बेदखली की आशंका के बारे में अदालत ने कहा कि पति पहले ही एक वचन दे चुका है कि वह मासिक आधार पर वैकल्पिक परिसर का किराया देगा।
इस तर्क पर कि फैमिली कोर्ट ने पति को उसकी मांग से अधिक दिया, बेंच ने राहत को संशोधित किया- इसने पति को परिसर बेचने की अनुमति दी और उसे फिक्स्ड डिपॉजिट में राष्ट्रीयकृत बैंक में 2 करोड़ रूपये रखने का निर्देश दिया, जो कि फैमिली की अनुमति के बिना समाप्त नहीं किया जाएगा।
अदालत ने देखा,
"रिकॉर्ड पर सामग्री से पता चलता है कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के अलग होने के बाद भी पति ने सूट परिसर की ईएमआई का भुगतान करना जारी रखा। यह इंगित करता है कि पति का इरादा याचिकाकर्ता को वाद परिसर से बेदखल करना नहीं है बल्कि उसे वैकल्पिक आवास में स्थानांतरित करना है जो उसके लिए उपयुक्त है। 13 जनवरी 2023 का उपक्रम पत्नी के अधिकारों का ख्याल रखता है।”
केस का शीर्षक: आरएमएस बनाम एमओपी