पत्नी का विभिन्न मंचों पर यह आरोप लगाना कि पति का अपनी मां के साथ अवैध संबंध है, मानसिक क्रूरता के समान: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
Avanish Pathak
16 Aug 2023 3:40 PM IST
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि जब एक पत्नी विभिन्न मंचों पर यह आरोप लगाती है कि उसके पति का अपनी मां के साथ अवैध संबंध है, तो यह निश्चित रूप से मानसिक क्रूरता का कारण होगा।
जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस अग्रवाल की पीठ ने कहा कि जब पत्नी द्वारा अपने पति के खिलाफ ऐसा आरोप लगाया जाता है, तो पति की मां का भी चरित्र हनन होता है और इससे पति और पत्नी का एक दूसरे की नज़रों में प्रतिष्ठा और मूल्य नष्ट हो जाता है।
कोर्ट ने कहा,
"...इसे सामान्य टूट-फूट या अलग-थलग घटना नहीं कहा जा सकता। जब पत्नी विभिन्न मंचों पर दिए गए अपने बयान की पुष्टि करती है, जहां इस तरह के आरोप से मां और बेटे के पवित्र रिश्ते पर हमला किया जा रहा है तो निश्चित रूप से यह मानसिक क्रूरता की स्थिति को जन्म देगा।''
पीठ ने आगे कहा कि उसने पति द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया और तलाक की डिक्री से इनकार करने वाले पारिवारिक अदालत के आदेश को रद्द कर दिया।
तथ्य
इस जोड़े की शादी 11 मई, 2011 को हुई थी। पति का आरोप है कि शादी के बाद पत्नी का व्यवहार उसके प्रति अच्छा नहीं था, क्योंकि वह उसे और उसकी मां को मां-बहन के नाम पर गालियां देती थी। आगे यह भी कहा गया कि पत्नी अक्सर खाना बनाना छोड़ देती थी, जिससे पति को भूखा रहना पड़ता था या होटल में खाना लेना पड़ता था। आरोप है कि पत्नी उसे किसी झूठे मामले में फंसाने की धमकी देती थी।
इस पृष्ठभूमि में, पति ने तलाक की डिक्री देने के लिए फैमिली कोर्ट के समक्ष एक आवेदन दायर किया। जब आवेदन खारिज कर दिया गया, तो उन्होंने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के समक्ष मौजूदा अपील दायर की।
दूसरी ओर, पत्नी का आरोप था कि जब वह काम कर रही थी तो पूरा वेतन पति के परिवार के सदस्यों ले रहे थे, और जब भी उसने बच्चा पैदा करने की बात की तो पति ने इस आधार पर इनकार कर दिया कि उन्हें लड़की पैदा हो सकती है। उनके मुताबिक, जब वह अपनी पीएचडी कर रही थीं, उसे केवल छात्रवृत्ति मिलती थी और जादू-टोने के नाम पर उसे अपमानित किया जाता था।
टिप्पणियां
शुरुआत में, अदालत ने रिकॉर्ड पर पेश किए गए सबूतों पर गौर करते हुए कहा कि पत्नी ने दिसंबर 2013 में पति/अपीलकर्ता को छोड़ दिया और उसने धारा 498-ए सहपठित धारा 34 के तहत पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ झूठी रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी और मामले में, अदालत ने उन सभी को इस आधार पर बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित करने में सक्षम नहीं था।
अदालत ने आगे कहा कि पत्नी ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि आपराधिक मामले में, उसने गवाही दी कि अपीलकर्ता/पति ने अपनी मां के साथ अवैध संबंध बनाए रखा था।
पत्नी की इस स्वीकारोक्ति को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा कि शीर्ष अदालत ने माना है कि जब पत्नी अपने पति, उसके परिवार के सदस्यों और सहकर्मियों के खिलाफ लापरवाह, मानहानिकारक और झूठे आरोप लगाती है, तो इससे उसके साथियों की आंखों में उसकी प्रतिष्ठा कम हो सकती है।
कोर्ट ने कहा कि पति और उसकी अपनी मां के बीच अवैध संबंधों का आरोप लगाना मानसिक क्रूरता के समान होगा। इस पृष्ठभूमि में, अदालत ने पति की अपील स्वीकार कर ली और तलाक की डिक्री जारी करने का निर्देश दिया।
पत्नी को गुजारा भत्ता देने के सवाल पर कोर्ट ने कहा कि अगर पति के पास पर्याप्त साधन हैं तो वह अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है और तलाक के बाद भी वह अपनी नैतिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता है।
नतीजतन, अदालत ने कार्यवाही की बहुलता से बचने के लिए पाया कि पत्नी अपीलकर्ता से भरण-पोषण के लिए प्रति माह ₹ 35,000/- पाने की हकदार है, जिसे अपीलकर्ता के वेतन से स्रोत पर काट लिया जाएगा। इसके साथ ही कोर्ट ने मामले को खत्म कर दिया।
केस टाइटलः डी बनाम आर