यौन अपराधों के पीड़ित या शिकायतकर्ता को आम तौर पर प्रतिवादी के रूप में शामिल होने की आवश्यकता नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट ने 'विचारित दृष्टिकोण' लेने के लिए एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया

Shahadat

30 Jan 2023 5:52 AM GMT

  • यौन अपराधों के पीड़ित या शिकायतकर्ता को आम तौर पर प्रतिवादी के रूप में शामिल होने की आवश्यकता नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट ने विचारित दृष्टिकोण लेने के लिए एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने सीनियर एडवोकेट रेबेका जॉन को एमिकस क्यूरी के रूप में नियुक्त करते हुए यह तय करने में सहायता मांगी की कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत पीड़ित या यौन अपराधों के शिकायतकर्ता को जमानत याचिका या अपील पर सुनवाई की सूचना देना या पीड़ित या शिकायतकर्ता को पक्षकार के रूप में शामिल करने की आवश्यकता है या नहीं।

    सीआरपीसी की धारा 439 (1ए) में कहा गया,

    "भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (3) या 376AB या 376DA या 376DB के तहत जमानत अर्जी की सुनवाई के समय शिकायतकर्ता या उसके द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति की उपस्थिति अनिवार्य होगी।"

    जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने यह देखने के बाद कि यौन अपराधों में पीड़ित की निजता बनाए रखना कानून का जनादेश है और पीड़ित को "सामान्य रूप से आवश्यक नहीं है" इस तरह के मामले में "विचारित दृष्टिकोण" लेने के लिए जॉन की सहायता मांगी।

    अदालत ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट जगजीत सिंह और अन्य बनाम आशीष मिश्रा @ मोनू और अन्य के हालिया फैसले के आलोक में इस सवाल पर विचार करेगी, जिसमें कहा गया कि पीड़िता को जांच से लेकर अपील या पुनर्विचार में मुकदमे की परिणति तक मुकदमे के हर चरण में भाग लेने का अधिकार है।

    यह इस बात पर भी विचार करेगी कि क्या किसी अन्य न्यायिक फैसले या वैधानिक प्रावधान के लिए इस तरह के कार्यान्वयन की आवश्यकता है।

    अदालत ने कहा,

    “चूंकि यौन अपराधों में पीड़ित पक्ष की निजता बनाए रखना अन्य बातों के साथ-साथ आईपीसी की धारा 228A और पॉक्सो एक्ट की धारा 23 के तहत कानून का जनादेश है; और शिकायतकर्ता को आमतौर पर ऐसे मामलों में पक्षकार बनाने की आवश्यकता नहीं होती है, इस पहलू पर विचार करने के लिए यह अदालत सीनियर एडवोकेट रेबेका मैमन जॉन को अदालत की सहायता के लिए एमिक्स क्यूरी के रूप में नियुक्त करती है।"

    अदालत आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दर्ज एफआईआर में हिरासत में रह रहे आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    जस्टिस भंभानी ने पिछले महीने अपनी रजिस्ट्री से यह स्पष्ट करने के लिए कहा कि क्या ऐसे मामलों में पीड़िता को पक्षकार बनाने के लिए कोई निर्णय या अभ्यास निर्देश है।

    16 जनवरी को रजिस्ट्रार ने सीआरपीसी की धारा 439(1ए) का हवाला दिया। 24 सितंबर, 2019 को जारी किए गए अदालत के अभ्यास निर्देशों में पहचान छिपाने के बाद प्रतिवादी के रूप में पार्टियों के मेमो में पीड़ित या शिकायतकर्ता को शामिल करने की आवश्यकता है।

    राकेश भटनागर बनाम राज्य (सरकार) एनसीटी ऑफ दिल्ली में 21 फरवरी, 2022 की समन्वय पीठ के आदेश का भी संदर्भ दिया गया, जिसमें अदालत ने शिकायतकर्ता को समान मामले में प्रतिवादी के रूप में पक्षकार बनाने की अनुमति दी थी।

    आरोपी की ओर से पेश वकील ने कहा कि पीड़िता को मामले में प्रतिवादी के रूप में पक्षकार बनाया गया, क्योंकि रजिस्ट्री को इसकी आवश्यकता थी।

    दूसरी ओर, राज्य ने कहा कि रजिस्ट्री केवल सीआरपीसी की धारा 439(1A) और 2019 अभ्यास निर्देश के मद्देनजर आवश्यकता पर जोर दे रही थी।

    रीना झा और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य में समन्वय पीठ के निर्णय पर भरोसा किया गया, जिसमें सीआरपीसी की धारा 439 (1ए) के तहत केवल निर्दिष्ट यौन अपराधों तक ही सीमित रखने के बजाय पॉक्सो एक्ट के तहत मामलों को बढ़ाया गया।

    “इस आदेश की एक प्रति सुश्री जॉन को 03 दिनों के भीतर भेजी जाए। उनसे अगली तारीख पर मामले में अदालत की मदद करने का अनुरोध किया जाता है।'

    केस टाइटल: सलीम बनाम द स्टेट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य।

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