जब जारीकर्ता प्राधिकरण ने अनुभव प्रमाणपत्र की पुष्टि की है, तब प्रति-हस्ताक्षरकर्ता प्राधिकरण की ओर से किया गया इनकार, जांच के अभाव में सेवा समाप्ति का आधार नहीं हो सकताः जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

13 March 2023 10:36 AM GMT

  • जब जारीकर्ता प्राधिकरण ने अनुभव प्रमाणपत्र की पुष्टि की है, तब प्रति-हस्ताक्षरकर्ता प्राधिकरण की ओर से किया गया इनकार, जांच के अभाव में सेवा समाप्ति का आधार नहीं हो सकताः जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा, उचित जांच या नतीजे के अभाव में एक प्रमाण पत्र पर काउंटर सिग्नेचर से इनकार करने भर से सेवा समाप्ति (Termination of Service) की गंभीर सजा नहीं दी जा सकती है।

    जस्टिस वसीम सादिक नर्गल ने याचिकाओं के एक समूह पर फैसला देते हुए कहा, ऐसी सजा प्रकृति में दंडात्मक हो जाती है, विशेषकर तब जबकि टर्मिनेशन का आदेश साधारण नहीं है, बल्‍कि उससे कलंक भी जुड़ गया है।

    याचिकाकर्ताओं ने मुख्य अभियंता परियोजना, बीकन सी/ओ 56 एपीओ की ओर से जारी टर्मिनेशन ऑर्डर को चुनौती दी थी।

    मामला

    मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता को नर्सिंग सहायक पद पर नियुक्त किया गया था। हालांकि चयन प्रक्रिया के बाद चयनित उम्मीदवारों की ओर से दिए गए दस्तावेजों की प्रामणिकता का निर्धारण करने के लिए नियुक्ति प्राधिकारी ने एक सत्यापन प्रक्रिया शुरू की।

    जिसमें यह सामने आया कि याचिकाकर्ता पर उसके अनुभव प्रमाण पत्र जाली होने का आरोप लगाया गया। जिसके बाद, चीफ इंजीनियर बीकन ने 26 सितंबर 2009 को याचिकाकर्ता के खिलाफ टर्मिनेशन नोटिस जारी किया था।

    दलील

    याचिकाकर्ता ने 14 अक्टूबर, 2009 को नोटिस का जवाब प्रस्तुत किया। 23 अक्टूबर, 2009 को अनुशंसाओं के आधार पर, याचिकाकर्ता को टर्मिनेश्ट करने सूचना को वापस ले लिया गया और आगे जांच का निर्देश दिया गया। आगे की जांच में महाजन अस्पताल ने याचिकाकर्ता के संबंध में सत्यापन प्रमाणपत्र की पुष्टि की।

    उन्होंने यह सत्यापित किया कि याचिकाकर्ता ने उनके अस्पताल में अपेक्षित अनुभव प्राप्त किया था और प्रमाण पत्र वास्तविक था। हालांकि, 30 मई 2011 को याचिकाकर्ता संख्या एक के खिलाफ एक और टर्मिनेशन ऑर्डर पारित किया गया। उन्हें एक महीने का नोटिस दिया गया और कहा गया कि 30 जून 2011 को उनकी सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी।

    टर्मिनेशन के आदेश के ‌खिलाफ याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसने अपने पहले टर्मिनेशन ऑर्डर का जवाब उचित माध्यम से (through proper channel) दिया था और स्पष्ट किया कि उसकी ओर से दिया गया अनुभव प्रमाण पत्र जाली नहीं है, बल्कि सच्चा है।

    उसने कहा कि नियुक्ति से पहले उसके पास महाजन अस्पताल सोलापुर महाराष्ट्र में नर्सिंग सहायक के रूप में कार्य करने का अनुभव है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि उन्होंने ऐसा कोई घोषणापत्र प्रस्तुत नहीं किया है, जो झूठा हो या किसी भौतिक तथ्य को दबाया गया है।

    प्रतिवाद

    दलील के विरोध में प्रतिवादियों ने कहा कि अनुभव प्रमाण पत्र की प्रासंगिकता संबंधी याचिकाकर्ता का तर्क झूठा है, और वह अनुभव प्रमाण पत्र की सत्यता संदिग्ध है, क्योंकि संबंधित प्राधिकारी (प्रतिहस्ताक्षर प्राधिकरण) ने इसे जाली बताया है।

    उत्तरदाताओं ने आगे प्रस्तत किया उपयुक्त पदों पर उम्मीदवारों की नियुक्ति के बाद, जीआरईएफ सेंटर (रिक्रूटमेंट सेंटर), उम्मीदवारों के प्रमाणपत्रों की सत्यता की पुष्टि करता है। जीआरईएफ सेंटर ने जिला स्वास्थ्य अधिकारी, स्वास्थ्य विभाग जिला परिषद, सोलापुर अनुभव प्रमाणपत्र की सत्यता की जांच की थी।

    जिला स्वास्थ्य अधिकारी, स्वास्थ्य विभाग, जिला परिषद सोलापुर ने 09 जुलाई 2009 को पत्र संख्या ZPS/Health/PUB/196/09 के जरिए सूचित किया कि उनके कार्यालय ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश किए गए प्रमाण पत्र को जारी नहीं किया है और ना ही उस पर काउंटर साइन किया है।

    फैसला

    इस मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस नरगल ने कहा कि काउंटर साइन एक अतिरिक्त हस्ताक्षर है, जिसे एक दस्तावेज पर किया जाता है, जिस पर पहले ही हस्ताक्षर किए जा चुके हैं और काउंटर साइन दस्तावेज की प्रामाणिकता की पुन: पुष्टि प्रदान करता है।

    विरोधाभासों की ओर इशारा करते हुए, अदालत ने कहा कि अस्पताल के अधिकारी, जिन्हें इस तथ्य की प्राथमिक जानकारी है कि याचिकाकर्ता ने उनके साथ काम किया है, वे इसे मान्य और सत्यापित कर रहे हैं, हालांकि, प्रति हस्‍‌ताक्षरकर्ता-प्राधिकरण ने इस आधार पर इनकार किया कि उन्होंने अनुभव प्रमाण पत्र पर प्रतिहस्ताक्षर नहीं किया है और यह जाली है।

    कोर्ट ने कहा, "अगर याचिकाकर्ता पर लगे आरोपों को तार्किक निष्कर्ष तक ले जाया जाए तो भी यह अदालत इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकती कि दस्तावेज पहले से ही प्रामाणित है और जारीकर्ता प्राधिकरण की ओर से हस्ताक्षर कर सत्यापित किया गया है और प्रमाणित किया गया है।" .

    इस तथ्य की ओर इशारा करते हुए कि प्रारंभिक टर्मिनेश ऑर्डर और अंतिम ऑर्डर जिला स्वास्थ्य अधिकारी की ओर से किए गए इनकार के एक ही आदेश पर आधारित थे, अदालत ने कहा कि आगे की जांच की समाप्त‌ि के बाद एकमात्र कम्यूनिकेशन अस्पताल की ओर से किया गया था, जहां उक्त अस्पताल अधिकारियों ने अनुभव प्रमाण पत्र की प्रामाणिकता और वैधता की पुष्टि की है, इसलिए यह सुरक्षित रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उत्तरदाताओं की ओर से की गई जांच याचिकाकर्ता संख्या एक के पक्ष में है और इस प्रकार, उत्तरदाताओं की ओर से उसी आधार पर दूसरा टर्म‌िनेश ऑर्डर जारी करने का कोई औचित्य नहीं था।

    प्रतिवादी के इस तर्क को खारिज करते हुए कि डीएचओ के हस्ताक्षर से इनकार किया गया है और जाली होने का आरोप लगाया गया है, अदालत ने कहा कि यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि प्रतिवादियों द्वारा दर्ज की गई किसी भी जांच या नतीजे के अभाव में केवल इनकार करना पर्याप्त नहीं होगा।

    कोर्ट ने कहा,

    "जालसाजी साबित करने की सीमा बहुत लंबी है और इसे पर्याप्त साक्ष्य के जर‌िए समर्थित किया जाना चाहिए। इस संबंध में की गई विस्तृत जांच के अभाव में, यह नहीं माना जा सकता है कि याचिकाकर्ता संख्या एक ने जाली दस्तावेज बनाया है।"

    यह देखते हुए कि जारीकर्ता प्राधिकारी की ओर से प्रमाण पत्र की वैधता से इनकार नहीं किया गया है, अदालत ने कहा कि उत्तरदाताओं की ओर से केवल प्रतिहस्ताक्षर को अस्वीकार किया गया है और उचित जांच के अभाव में प्रमाण पत्र पर प्रतिहस्ताक्षर से इनकार भर सेवा समाप्ति जैसी गंभीर सजा का आधार नहीं हो सकती है।

    केस टाइटल: रोकाडे संतोष संदाशिव और अन्य बनाम और यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (जेकेएल) 50

    कोरम: जस्टिस वसीम सादिक नरगल

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