वालयार रेप-डेथ केस: केरल हाईकोर्ट ने सीबीआई को जारी जांच पर एक रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

23 Nov 2021 5:19 AM GMT

  • वालयार रेप-डेथ केस: केरल हाईकोर्ट ने सीबीआई को जारी जांच पर एक रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया

    केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को कुख्यात वालयार मामले में अब तक की गई जांच में प्रगति पर एक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। इस केस के चलते राज्य में सार्वजनिक आक्रोश पैदा हो गया था।

    न्यायमूर्ति पी. गोपीनाथ ने मामले में मुख्य आरोपी द्वारा दायर नियमित जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। सीबीआई को 10 दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया।

    आवेदकों की ओर से अधिवक्ता सादिक इस्माइल पेश हुए। यह मामला करीब दो महीने से कोर्ट में लंबित है।

    एएसजी पी. विजयकुमार सीबीआई की ओर से पेश हुए और कहा कि आवेदक रिमांड पर है। कोर्ट ने तब कहा कि उस मामले में वह इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

    हालांकि, यह देखते हुए कि मामले में वैधानिक जमानत की अवधि समाप्त हो गई है, सीबीआई को 10 दिनों के भीतर एक सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया।

    क्या है वालयार केस?

    इस मामले में केरल के वालयार जिले में क्रमशः 13 जनवरी और 4 मार्च, 2017 को 13 साल और नौ साल की दो नाबालिग दलित बहनों की अप्राकृतिक मौत हो गई थी।

    घटना का पता तब चला जब वे संबंधित तारीखों को अपने एक कमरे के घर में पंखे से लटकी हुई पाई गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि मौत से पहले उनके साथ रेप किया गया था।

    पुलिस मामले के अनुसार, आरोपियों द्वारा उनके साथ किए गए अप्राकृतिक यौन संबंध के कारण असहनीय दर्द और पीड़ा से लड़कियों की मौत हुई थी।

    इस मामले में पांच आरोपी मधु उर्फ ​​वालिया मधु, मधु एम उर्फ ​​कुट्टी मधु, शिबू, प्रदीप कुमार एम और अपराध के समय 16 साल का एक नाबालिग शामिल हैं।

    हालांकि, चौथे आरोपी प्रदीप कुमार ने कथित तौर पर नवंबर 2020 में आत्महत्या कर ली थी।

    बाद में इस मामले में एक विशेष POCSO अदालत ने अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत एक कमजोर मामले का हवाला देते हुए तीन आरोपियों को बरी कर दिया। विशेष कोर्ट के इस फैसले ने राज्य में व्यापक जनाक्रोश को पैदा किया था। इसने राज्य में नागरिक समाज संगठनों और विपक्षी दलों के साथ पुलिस जांच और मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप की निंदा करने के साथ विरोध प्रदर्शनों की आंधी चला दी थी।

    मामले ने एक सनसनीखेज मोड़ तब आया जब शुरू में इसकी जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों पर आरोपियों की मदद करने के आरोप लगे।

    इसलिए, राज्य ने मामले में फिर से जांच की मांग करने वाली अपील के साथ हाईकोर्ट का रुख किया। अदालत ने मामले में आगे की जांच की मांग करने के लिए अभियोजन पक्ष को दी गई स्वतंत्रता के साथ अभियुक्तों को बरी कर दिया।

    इसके बाद हाईकोर्ट ने सीबीआई को वालयार बलात्कार और मौत के मामलों की जांच करने का आदेश दिया।

    तदनुसार, इस साल अप्रैल में सीबीआई की तिरुवनंतपुरम इकाई ने इस मामले की जांच शुरू की। इस तरह सीबीआई ने एक विशेष अदालत के समक्ष यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत अपनी जांच के बाद मामले में दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज की।

    एफआईआर में आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत भी मामला दर्ज किया गया। आरोपियों को जल्द ही फिर से गिरफ्तार कर लिया गया।

    तीसरे आरोपी एम. मधु को हाईकोर्ट ने जमानत दे दी।

    बाद में वालिया मधु और शिबू ने अतिरिक्त सत्र न्यायालय के समक्ष जमानत आवेदनों को प्राथमिकता देते हुए दावा किया कि उन्हें तीन महीने से अधिक समय तक जेल में रखा गया, लेकिन उनकी इस दलील को इस साल जून में खारिज कर दिया गया।

    केस शीर्षक: मधु उर्फ ​​वलिया मधु बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो

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