पीड़िता और याचिकाकर्ता एक दूसरे से प्यार करते थे, 4 सालों से साथ रह रहे थे, इससे पोक्सो अधिनियम के तहत किया गया अपराध क्षमायोग्य नहीं हो जाताः मद्रास हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

19 March 2021 2:27 PM GMT

  • पीड़िता और याचिकाकर्ता एक दूसरे से प्यार करते थे, 4 सालों से साथ रह रहे थे, इससे पोक्सो अधिनियम के तहत किया गया अपराध क्षमायोग्य नहीं हो जाताः मद्रास हाईकोर्ट

    Madras High Court

    मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मंगलवार (16 मार्च) को कहा कि पीड़िता एक बार पोक्सो अधिनियम के तहत अपराध की शिकायत करती है और मामला दर्ज हो जाता है तो यह राज्य के खिलाफ अपराध बन जाता है और बाद में किए गए समझौता से अपराध समाप्त नहीं होता है।

    यह मानते हुए कि पोक्सो अधिनियम के तहत किया गया कोई भी अपराध क्षमायोग्य अपराध नहीं है, जस्टिस पी वेलमुरुगन की पीठ ने कहा, "पोक्सो अधिनियम का दायरा बहुत स्पष्ट है, प्यार में पड़ना कोई अपराध नहीं है, लेकिन एक व्यक्ति जो 18 साल से अध‌िक उम्र का का है और जिसने 18 साल से कम उम्र की लड़की का जानबूझकर यौन उत्पीड़न किया है, वह अपराध है।"

    मामला

    याचिकाकर्ता के खिलाफ पोक्सो अधिनियम के धारा 5, धारा 6 के साथ पढ़ें, के तहत मामला दर्ज किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी ठहराया और 10 साल की कठोर कारावास की सजा दी गई।

    फैसले के खिलाफ उसने मद्रास हाईकोर्ट में अपील दायर की और अपील लंबित होने तक धारा 482 और 391 सीआरपीसी के तहत मौजूदा आवेदन दायर किया।

    उल्लेखनीय है कि सीआरपीसी की धारा 482 हाईकोर्ट की निहित शक्तियों से संबंधित है और धारा 391 अपीलीय अदालत की शक्ति से संबंधित है कि वह आगे सबूत ले या उसे ऐसा करने के लिए निर्देशित किया जाए।

    मौजूदा आवेदन में अदालत के समक्ष पीड़िता का बयान दर्ज करके और हलफनामे को चिह्नित करके अतिरिक्त सबूत की मांग की गई।

    हलफनामे में पीड़िता ने कहा था कि अपीलकर्ता और पीड़िता, दोनों पिछले चार साल से साथ रह रहे हैं, उन्होंने मामले को सुलझा लिया है। हलफनामे में अपील की अनुमति को अनुमति देने, ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करने और उन्हें शांति से जीने देने की प्रार्थना की गई थी।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि उसने मुकदमे के दरमियान ट्रायल कोर्ट के समक्ष, पीड़िता के हलफनामे के साथ याचिका दायर की थी, हालांकि उसे खारिज कर दिया गया।

    दलील

    सरकारी अधिवक्ता (आपराधिक पक्ष) ने कहा कि पर्याप्त अवसर होने के बावजूद, अपीलकर्ता ने किसी भी साक्ष्य को न तो लेने दिया और न ही ट्रायल कोर्ट के समक्ष कोई दस्तावेज पेश किया।

    आगे कहा गया कि ट्रायल के बाद, कानून के शिकंजे से बचने के लिए, उसने ट्रायल कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की, हालांक‌ि उसे खारिज कर दिया गया क्योंकि यह कानून के तहत सुनवाई योग्य नहीं था।

    अवलोकन

    शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के समक्ष धारा 164 सीआरपीसी के तहत पीड़ित लड़की का बयान दर्ज किया गया था, जिसमें उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि अपीलकर्ता ने अपराध किया है।

    उल्लेखनीय है कि अपराध के समय, पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम ‌थी और इसलिए, वह पोक्सो अधिनियम की धारा 2 (1) (डी) के तहत बच्‍चा है।

    कोर्ट ने कहा, "पीड़िता के सबूतों से स्पष्ट है कि वह घटना के दिन 17 साल की थी। अपीलकर्ता ने उससे शादी का झूठा वादा किया और उसकी इच्छा के खिलाफ, पीड़िता के साथ जबरदस्ती कई बार संभोग किया। बाद में उसने शादी से इनकार कर दिया।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों का परीक्षण पूरा होने के बाद, अपीलकर्ता ने पीड़िता को मना लिया और एक हलफनामा दायर किया। हालांकि हलफनामे में भी पीड़िता ने यह नहीं कहा कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई है, उसने केवल यह कहा था कि वह चार साल से साथ रह रहे थे।

    कोर्ट ने फैसले में कहा, "यह मानते हुए कि पीड़िता को अपीलकर्ता के साथ प्यार हो गया था और उसने स्वीकार किया कि वे चार साल से साथ रह रहे हैं, फिर भी जिस दिन अपराध किया गया, उस दिन पोक्सो अधिनियम के प्रावधान लागू होते हैं। यह क्षमायोग्य अपराध नहीं है।"

    यह कहते हुए कि याचिकाकर्ता ने कानून के शिकंजे से बचने के लिए और मामले को लंबा खींचने के लिए याचिका दायर की है, कोर्ट ने याचिका में कोई मेरिट नहीं पाते हुए, याचिका खारिज कर दी।

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