'प्रवासी मजदूरों सहित अन्य लोगों को उत्तराखंड लौटने का हक है, बॉर्डर पर हो रैपिड एंटीबाडी टेस्ट', उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य-सरकार को दिए निर्देश

SPARSH UPADHYAY

20 May 2020 1:46 PM GMT

  • प्रवासी मजदूरों सहित अन्य लोगों को उत्तराखंड लौटने का हक है, बॉर्डर पर हो रैपिड एंटीबाडी टेस्ट, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य-सरकार को दिए निर्देश

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार (20-मई-2020) को प्रवासियों की दुर्दशा और अन्य जरूरतमंद लोगों द्वारा लॉकडाउन में सहे जा रहे कष्ट को लेकर दाखिल जनहित याचिकाओं के सम्बन्ध में यह आदेश दिया कि राज्य सरकार, उत्तराखंड राज्य की सीमाओं पर कार्यात्मक करन्तीन (Quarantine) केंद्रों को स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी।

    न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैथानी एवं न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने यह आदेश जारी करते हुए यह भी कहा कि इन क्वारन्टीन केंद्रों में मौजूद व्यक्तियों में से, जिनमे आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के अनुसार कोरोना के आवश्यक लक्षण दिखाई पड़ते हैं, उनका रैपिड टेस्ट किया जाएगा।

    अदालत ने अपने आदेश में यह भी देखा कि,

    "हालांकि रैपिड एंटीबॉडी परीक्षण को नैदानिक उद्देश्यों (diagnostic purposes) के लिए आईसीएमआर द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है, लेकिन चूंकि इस परीक्षण का परिणाम बहुत कम समय में उपलब्ध हो जाता है, इसलिए ऐसे परीक्षणों का उपयोग, केवल सर्विलांस उद्देश्यों (surveillance purposes) के लिए किया जा सकता है।"

    कोर्ट का यह आदेश, प्रवासियों की दुर्दशा और अन्य जरूरतमंद लोगों द्वारा लॉकडाउन में सहे जा रहे कष्ट को लेकर, हरिद्वार के सच्चदानंद डबराल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए आया।

    गौरतलब है कि, राज्य की सीमा के खुलने के बाद से उत्तराखंड में दो लाख से अधिक लोगों के आने की संभावना है। उत्तराखंड में नब्बे हजार से ज्यादा लोग पहले ही पहुंच चुके हैं। शेष लोग, लगातार प्रदेश में आ रहे हैं और लगभग 6000 - 7000 व्यक्ति प्रत्येक दिन विभिन्न सीमा बिंदुओं से उत्तराखंड में प्रवेश कर रहे हैं।

    अदालत के पूर्व के आदेश

    बीते बुधवार (13-मई-2020) को, हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार से दो मुद्दों पर जवाब मांगा था, - क्या, राज्य में लौटने वाले प्रत्येक व्यक्ति की चिकित्सकीय रूप से जांच की जा रही थी, क्योंकि 'थर्मल स्क्रीनिंग पर्याप्त नहीं है' और क्या राज्य में लौटने वाले लोगों का एंटीजन टेस्ट, या कोई अन्य रैपिड टेस्ट हो सकता है।

    अदालत ने इससे पहले मंगलवार (12-मई-2020) को राज्य सरकार से यह भी पूछा था कि क्या राज्य में 'खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013' और 'अन्तर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक(रोज़गार और सेवा शर्त विनियमन) अधिनियम, 1979' का सही तरीके से पालन किया जा रहा है अथवा नहीं।

    15-मई-2020 को सुनवाई के दौरान अदालत ने यह देखा था कि,

    "वर्तमान में दो लाख से अधिक व्यक्ति, पहले से ही उत्तराखंड राज्य के साथ पंजीकृत हैं। ये ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अपनी इच्छा व्यक्त की है और उन्हें उत्तराखंड लौटने की आवश्यकता है। लगभग यह सभी ऐसे व्यक्ति हैं, जो उत्तराखंड के स्थायी निवासी हैं, लेकिन देश के विभिन्न राज्यों में काम कर रहे हैं।

    COVID-19 महामारी के इन अजीब और कठिन समय के तहत, वे अपने गृह राज्य में वापस आना चाहते हैं। उन्हें उत्तराखंड राज्य में प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता है, लेकिन न्यायालय की चिंता यह है कि उनमें से कई वायरस (COVID-19) से संक्रमित हो सकते हैं और इसलिए सीमाओं पर उचित जांच आवश्यक है।"

    इसी दिन, अदालत ने अपने आदेश में ऐसे लोगों की रैपिड टेस्टिंग की व्यवहार्यता के बारे में राज्य सरकार से पूछताछ की थी, इसका कारण यह था कि राज्य सरकार द्वारा ऐसे लोगों की केवल थर्मल टेस्टिंग की जा रही थी, जिसे अदालत ने उपयुक्त नहीं पाया था।

    मामले की पिछली सुनवाई [सोमवार, 18-मई-2020] के दौरान, राज्य सरकार ने उत्तराखंड हाईकोर्ट को यह सूचित किया था कि राज्य सरकार द्वारा, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) से राज्य की सीमाओं पर उत्तराखंड लौटने वाले प्रवासियों के रैपिड टेस्टिंग और एंटीजन परीक्षण के बारे में सलाह ली जा रही है।

    इसे देखते हुए अदालत ने राज्य सरकार को 20 मई तक अदालत को इस बारे में सूचित करने का निर्देश दिया था। अदालत को यह बताया गया था कि, यदि ICMR ऐसा सुझाव देता है कि राज्य की सीमा पर, प्रदेश में आ रहे प्रवासियों की रैपिड टेस्टिंग की जा सकती है, तो यह परीक्षण शुरू किया जाएगा।

    अदालत का आज का (20-मई-2020) आदेश

    राज्य के एडवोकेट जनरल श्री एस. एन. बाबुलकर, भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल श्री राकेश थपलियाल और पक्षकारों के लिए पेश अधिवक्ताओं के बीच इन जनहित याचिकाओं को लेकर विस्तार से चर्चा हुई और अदालत ने इस चर्चा को लेकर अपनी प्रसन्नता जताई।

    इस चर्चा में सचिव, स्वास्थ्य विभाग, उत्तराखंड सरकार एवं महानिदेशक, चिकित्सा स्वास्थ्य भी वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शामिल हुए।

    हालाँकि, अदालत ने अपने आदेश में इस बात का जिक्र किया कि वर्तमान समय में जो प्रयास, राज्य प्राधिकरणों द्वारा किए जा रहे हैं, विशेष रूप से उत्तराखंड की सीमाओं पर उन व्यक्तियों की वापसी की जांच करने के लिए, जो तेजी से बढ़ती संख्या में राज्य में आ रहे हैं, वे प्रयास पर्याप्त नहीं हैं।

    राज्य के दूर-दराज इलाकों में मिले संक्रमित मामलों का संज्ञान लेते हुए अदालत ने कहा कि यह डर है कि राज्य में लौटने वाले लोग, इस वायरस से संक्रमित हो सकते हैं।

    अदालत ने ख़ास तौर पर इस बात को रेखांकित किया कि राज्य में किसी को भी आने का हक है।

    अदालत ने अपने आदेश में कहा कि,

    "हम लोगों के आने के खिलाफ नहीं हैं। उन्हें आने का पूरा अधिकार है। हमारी एकमात्र चिंता यह है कि कठिन समय के दौरान सीमा पर एक उचित स्क्रीनिंग होनी चाहिए।"

    अदालत के आदेश में इस बात का जिक्र किया गया है कि मौजूदा समय में राज्य की सीमाओं पर ऐसे लोगों की केवल थर्मल स्क्रीनिंग और उनका साधारण मेडिकल परिक्षण हो रहा है, जोकि काफी नहीं है। उल्लेखनीय है कि अदालत ने मामले की पिछली सुनवाई में भी रैपिड टेस्टिंग परिक्षण की व्यवहारिकता पर जोर दिया था।

    इसी क्रम में, ICMR ने अदालत के समक्ष ऐसे कुछ निर्माताओं की सिफारिश भी की, जो रैपिड टेस्टिंग किट का निर्माण करते हैं। सचिव स्वास्थ्य विभाग, भारत सरकार ने अदालत के समक्ष यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि इस परीक्षण को राज्य की सीमा के बिंदुओं पर एक प्रयोग के आधार पर उपयोग में लिया जा सकता है और इसकी सफलता या विफलता के आधार पर इसे आगे चलते रहने देने या बंद करने का निर्णय किया जा सकता है। अदालत ने इस सुझाव की सराहना की।

    इसी के मद्देनजर अदालत द्वारा वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सभी लोगों से चर्चा करने के बाद राज्य सरकार के लिए कुछ निर्देश जारी किये गए।

    अदालत द्वारा राज्य सरकार के लिए जारी किये गए निर्देश

    * राज्य की प्रत्येक सीमा बिंदु पर, राज्य सरकार कार्यात्मक करन्तीन केंद्रों (Quarantine Centers) को स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। इन करन्तीन केंद्रों में, ऐसे सभी लोग को, जो देश के अन्य रेड जोन क्षेत्रों से आ रहे हैं, उन्हें एक सप्ताह की अवधि के लिए रखा जाएगा।

    * इन करन्तीन केन्द्रों में मौजूद व्यक्तियों में से, जिनमे आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के अनुसार कोरोना के आवश्यक लक्षण दिखाई पड़ते हैं, उनका आरटी-पीसीआर के लिए परीक्षण किया जाएगा

    * हालांकि रैपिड एंटीबॉडी परीक्षण को नैदानिक उद्देश्यों (diagnostic purposes) के लिए आईसीएमआर द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है, लेकिन चूंकि इस परीक्षण का परिणाम बहुत कम समय में उपलब्ध हो जाता है, इसलिए ऐसे परीक्षणों का उपयोग, केवल सर्विलांस उद्देश्यों (surveillance purposes) के लिए किया जा सकता है। कम से कम थर्मल स्क्रीनिंग द्वारा निगरानी की तुलना में यह एक बेहतर निगरानी होगी।

    गौरतलब है कि अदालत के समक्ष ICMR का प्रतिनिधित्व कर रहे भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल, श्री राकेश थपलियाल, यह बयान दिया कि ICMR को कोई आपत्ति नहीं है यदि केवल सर्विलांस के उद्देश्यों के लिए रैपिड टेस्टिंग की जाती है, लेकिन यह निर्णय राज्य प्राधिकरण द्वारा लिया जाना है।

    * रैपिड टेस्ट किट को तुरंत खरीदा जाए और राज्य की सीमा बिंदुओं पर प्रयोग के आधार पर लोगों का परीक्षण इस पद्धति से किया जाए ।

    एलिसा किट का जिक्र

    अदालत को आईसीएमआर ने यह बताया कि एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (Integrated Disease Surveillance Programme) के तहत "एलिसा किट" नामक एक परीक्षण किट को मंजूरी दी गयी है, जिसे राज्य सरकार को उपलब्ध कराया जा सकता है।

    अदालत ने आदेश दिया कि,

    "उत्तराखंड के जिला पौड़ी गढ़वाल में पहले भी इस तरह के परीक्षण किए जा चुके हैं। इसे अन्य जिलों में भी सर्विलांस के उद्देश्य से किया जाए।"

    भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल, श्री राकेश थपलियाल ने हाईकोर्ट को यह आश्वस्त किया कि जैसे ही राज्य सरकार, इन किटों की मांग करती है, वैसे ही उनकी आवश्यकता के आधार पर बिना किसी और देरी के उन्हें किट की आपूर्ति की जाएगी।

    अदालत ने मामले को 2-जून-2020 के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा कि एडवोकेट जनरल अदालत के समक्ष अदालत द्वारा प्रदान किये गए बिन्दुओं के आधार पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें।

    मामले का विवरण:

    केस टाइटल: सच्च्दानंद डबराल बनाम भारत संघ एवं अन्य

    केस नं: Writ Petition (PIL) No। 58 of 2020

    कोरम: न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैथानी एवं सुधांशु धूलिया

    उपस्थिति: श्री शिव भट्ट (याचिकाकर्ता के लिए); श्री एस। एन। बाबुलकर, एडवोकेट जनरल, श्री एच। एम। रतुरी, डिप्टी एडवोकेट जनरल, श्री विनोद नौटियाल, डिप्टी एडवोकेट जनरल और श्री परेश त्रिपाठी, मुख्य स्टैंडिंग काउंसल। राकेश थपलियाल, भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल

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